भगवान परशुराम ने राम और कृष्ण को क्या दिया?

WD Feature Desk
शनिवार, 26 अप्रैल 2025 (17:45 IST)
परशुराम का जन्म सतयुग और त्रेता के संधिकाल में 5142 वि.पू. वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन-रात्रि के प्रथम प्रहर प्रदोष काल में हुआ था। परशुराम को चिरंजीवी माना गया है। वे आठ चिरंजीवियों में से एक हैं। वे रामायण काल में भी थे और महाभारत काल में भी थे। उन्होंने हजारों लोगों की शिक्षा और दीक्षा दी थी। अक्षय तृतीया पर उनका जन्म हुआ था। इस बार 30 अप्रैल 2025 को उनकी जयंती रहेगी।
 
1. परशुराम ने श्रीराम को दिया कोदंड धनुष: जब प्रभु श्रीराम ने शिवजी का धनुष तोड़ दिया था तब परशुराम जी क्रोधित होकर वहां आ धमके थे। परंतु उन्होंने श्रीराम में विष्णु जी के दर्शन किए और उस समय विश्वामित्र ने भी उन्हें बताया था कि आपके अवतार रहने का समय समाप्त हो चुका है और अब विष्णु जी स्वयं प्रभु श्रीराम के रूप में हैं। तब परशुराम जी ने रामजी को कोदंड नाम का धनुष दिया।
 
2. परशुराम ने कर्ण को दी ब्रह्मास्त्र की शिक्षा: उस काल में द्रोणाचार्य, परशुराम और वेदव्यास को ही ब्रह्मास्त्र चलाना और किसी के द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किए जाने पर उसे असफल कर देना याद था। जब द्रोणाचार्य ने कर्ण को ब्रह्मास्त्र विद्या सिखाने से इंकार कर दिया, तब वे परशुराम के पास पहुंच गए। परशुराम ने प्रण लिया था कि वे इस विद्या को किसी ब्राह्मण को ही सिखाएंगे, क्योंकि इस विद्या के दुरुपयोग का खतरा बढ़ गया था। कर्ण यह सीखना चाहता था तो उसने परशुराम के पास पहुंचकर खुद को ब्राह्मण का पुत्र बताया और उनसे यह विद्या सीख ली। बाद में इस छल का परशुराम जी को पता चला तो उन्होंने कर्ण को श्राप दिया कि जब तुझे इस विद्या की सबसे ज्यादा जरूरत होगी तब तू इसे भूल जाएगा। 
3. परशुराम ने श्रीकृष्ण को दिया सुदर्शन चक्र: महाभारत के काल में परशुराम जी दक्षिण भारत में गोमांतक पर्वत के आगे कहीं आश्रम में रहती थे। जरासंध के आक्रमण के चलते एक बार श्रीकृष्‍ण दक्षिण में चले गए। उस काल में दक्षिण में यादवों के 4 राज्य थे। आदिपुरुष, पद्मावत, क्रौंचपुर और चौथा राज्य यदु पुत्र हरित ने पश्चिमी सागर तट पर बसाया था। पद्मावत राज्य में वेण्या नदी के तट पर भगवान परशुराम निवास करते थे। श्रीकृष्‍ण ने उनसे वहीं उनके आश्रम में मुलाकात की तो परशुराम ने उन्हें सुदर्शन चक्र भेंट करके कहा कि यह तुम्हारा ही अस्त्र है। 
 
4. लोगों को धरती दान दी और केरल को ओणम दिया: केरल बनाया परशुराम जी ने : मान्यता अनुसार परशुराम जी ने हैहयवंशी क्षत्रियों से धरती को जीतकर दान कर दी थी। जब उनके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं बची तो वे सह्याद्री पर्वत की गुफा में बैठकर वरुण देव की तपस्या करने लगे। वरुण देवता ने परशुराम जी को दर्शन दिए और कहा कि तुम अपना फरसा समुद्र में फेंको। जहां तक तुम्हारा फरसा समुद्र में जाकर गिरेगा, वहीं तक समुद्र का जल सूख कर पृथ्वी बन जाएगी। वह सब पृथ्वी तुम्हारी ही होगी। परशुराम जी के ऐसा करते पर समुद्र का जल सूख गया और जो भूमि उनको समुद्र में मिली, उसी को वर्तमान को केरल कहते हैं। परशुरामजी ने सर्वप्रथज्ञ इस भूमि पर विष्णु भगवान का मंदिर बनाया। कहते हैं कि वह मंदिर आज भी 'तिरूक्ककर अप्पण' के नाम से प्रसिद्ध है। जिस दिन परशुराम जी ने मंदिर में मूर्ति स्थापित की थी, उस दिन को 'ओणम' का त्योहार मनाया जाता है।
 
5. परशुराम ने ही समाज को कावड़िया परंपरा दी: कावड़ लाकर भोलेनाथ का जलाभिषेक करने की शुरुआत कब और कहां से हुई कुछ ठीक तरह से कहना मुश्किल है। पर यह जरूर कहा जा सकता है कि भगवान परशुराम पहले कावड़िये थे जिन्होंने गंगा जल से भगवान शिव का जलाभिषेक किया। परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा मानते हुए कजरी वन में शिवलिंग की स्थापना की। वहीं उन्होंने गंगा जल लाकर इसका महाभिषेक किया। इस स्थान पर आज भी प्राचीन मंदिर मौजूद है। कजरी वन क्षेत्र मेरठ के आस पास ही स्थित है। जिस स्थान पर परशुराम ने शिवलिंग स्थापित कर जलाभिषेक किया था। उस स्थान को 'पुरा महादेव' कहते हैं।
 

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