मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने के पीछे कुछ धार्मिक भाव भी प्रकट होता है। इस दिन सूर्य मकर रेखा से उत्तर की ओर आने लगता है। सूर्य के उत्तरायण होने की खुशी में पतंग उड़ा कर भगवान भास्कर का स्वागत किया जाता है तथा आंतरिक आनंद की अभिव्यक्ति की जाती है। वर्तमान में यह केवल मनोरंजन या खेल के रूप में ही रह गया है।
मकर संक्रांति पर देशभर में पतंग उड़ा कर मनोरंजन करने का रिवाज है। मकर संक्रांति को 'पतंग पर्व' भी माना जाता है। पतंग उड़ाने की यह परंपरा बहुत प्राचीन है। प्रमाण मिलते हैं कि श्रीराम ने भी पतंग उड़ाई थी!
रामचरितमानस में महाकवि तुलसीदास ने ऐसे प्रसंगों का उल्लेख किया है, जब श्रीराम ने अपने भाइयों के साथ पतंग उड़ाई थी। इस संदर्भ में बाल कांड में उल्लेख मिलता है :
' राम इक दिन चंग उड़ाई।
इंद्रलोक में पहुंची जाई॥'
एक अन्य बड़ा ही रोचक प्रसंग है। पंपापुर से हनुमानजी को बुलवाया गया था। तब हनुमानजी बाल रूप में थे। जब वे आए तब मकर संक्रांति का पर्व था। श्रीराम भाइयों और मित्र मंडली के साथ पतंग उड़ाने लगे। कहा गया है कि वह पतंग उड़ते हुए देवलोक तक जा पहुंची।
उस पतंग को देख कर इंद्र के पुत्र जयंत की पत्नी बहुत आकर्षित हो गई। वह उस पतंग और पतंग उड़ाने वाले के प्रति सोचने लगी :
उधर पकड़ लिए जाने के कारण पतंग दिखाई नहीं दी, तब बालक श्रीराम ने बाल हनुमान को उसका पता लगाने के लिए रवाना किया।
पवन पुत्र हनुमान आकाश में उड़ते हुए इंद्रलोक पहुंच गए। वहां जाकर क्या देखते हैं कि एक स्त्री उस पतंग को अपने हाथ में पकड़े हुए है। उन्होंने उस पतंग की उससे मांग की।
उसने पूछा- 'यह पतंग किसकी है?' हनुमानजी ने रामचंद्रजी का नाम बताया। इस पर उसने उनके दर्शन करने की अभिलाषा प्रकट की। हनुमानजी यह सुनकर लौट आए और सारा वृत्तांत श्रीराम को कह सुनाया। श्रीराम ने यह सुनकर उन्हें यह कह कर वापस वापस भेजा कि वे उन्हें चित्रकूट में अवश्य ही दर्शन देंगे।
हनुमानजी ने यह उत्तर जयंत की पत्नी को कह सुनाया, जिसे सुनकर जयंत की पत्नी ने पतंग छोड़ दी।
कथन है -
' तिन तब सुनत तुरंत ही, दीन्ही छोड़ पतंग।
खेंच लइ प्रभु बेग ही, खेलत बालक संग।'