गीता कह रही है- 'योगः कर्मसु कौशलम्' अर्थात् जो भी कर्म करो, उसको पूर्णता, निपुणता, सुन्दरता और कुशलता से करो। जो इस तरह से जीवन को जीता है, गीता के अनुसार वह इस जीवन व जगत् को सफल कर लेता है और उसका अगला जन्म भी सुधर जाता है।
तन के श्रृंगार में ही जो समय गंवा देते हैं वह इस नाशवान संसार में भटक कर रह जाते हैं लेकिन जो मन का श्रृंगार कर उसमें बैठे परमात्मा की आराधना करते है वह संसार की मलिनता से बच जाते हैं, वस्तुतः दुर्गुणों से ही जीवन में मलिनता आती है।
इनसे बचने का एकमात्र उपाय वेद शास्त्र और पुराणों का मंथन करना तथा सज्जनों की संगति है। अत: हमें अपने कर्मों पर ध्यान देते हुए जीवन जीना चाहिए।