Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

1818 में अंगरेज इंदौर में आकर बसे

Advertiesment
हमें फॉलो करें British people
webdunia

अपना इंदौर

वर्ष 1817 में पेशवा की प्रेरणा से प्रोत्साहित होकर होलकर सेना ने अंगरेजों के विरुद्ध विद्रोह का झंडा खड़ा किया किंतु आपसी फूट और तोपखाने के विश्वासघाती रवैए के कारण पेशवा समर्थक होलकर सैनिकों को सफलता न मिली। ब्रिटिश सरकार ने इस युद्ध का दोषारोपण किशोरवय के शासक मल्हारराव (द्वितीय) पर किया और उन्हें संधि करने के लिए मजबूर कर दिया। 1818 में होलकर व अंगरेजी कंपनी सरकार के मध्य संधि हुई जो मंदसौर में संपन्न हुई थी। कंपनी सरकार ने मालवा पर अपना प्रत्यक्ष प्रभाव जमाने का यह अवसर हाथ से न जाने दिया और इस संधि की विभिन्न धाराओं के माध्यम से होलकर राज्य के आंतरिक प्रशासन और विदेश नीति को अपने नियंत्रण में कर लिया।
 
युद्ध महिदपुर में लड़ा गया था किंतु इस संधि में होलकर से सेंधवा का दुर्ग अंगरेजों ने अपने कब्जे में कर लिया। इसी संधि द्वारा महू (एमएचओडब्ल्यू) (मिलिट्री हेडक्वार्टर्स ऑफ वेस्ट) की स्थापना के लिए भूमि हासिल की गई और इसी संधि में यह व्यवस्था बनाई गई कि होलकर सरकार की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए इंदौर में एक ब्रिटिश रेजीडेंट की नियुक्ति की जाएगी जिसके निवास हेतु इंदौर नगर में पर्याप्त भूमि होलकर नरेशउपलब्ध कराएंगे।
 
उक्त समझौते के तहत इंदौर नगर की तत्कालीन आबादी से काफी दूर, पूर्वी छोर पर काफी बड़ा भू-क्षेत्र 'इंदौर रेसीडेंसी कोठी' की स्थापना हेतु अंगरेजों को हस्तांतरित कर दिया गया। यह क्षेत्र 'रेसीडेंसी एरिया' के नाम से आज भी जाना जाता है। इसका कुल क्षेत्रफल उस समय 1.35 वर्गमील था।
 
रेसीडेंसी क्षेत्र की एक अलग सत्ता थी
 
इंदौर में जब रेसीडेंसी की स्थापना (1820-27) हुई तो उसके साथ यह शर्त भी जोड़ी गई थी कि जो 1.35 वर्गमील का क्षेत्र अंगरेजों को दिया जा रहा है उस क्षेत्र को रेसीडेंसी एरिया कहा जाएगा और वहां होलकर सरकार के नियम-कानून प्रभावशील नहीं होंगे। रेसीडेंसी एरिया राज्य के भीतर राज्य था। रेसीडेंसी के समीप ही छावनी क्षेत्र था जिसका प्रशासन भी रेसीडेंसी अधिकारियों के नियंत्रण में था। इस छावनी के अलावा अन्य निकटवर्ती क्षेत्र की भूमि भी समय-समय पर विभिन्ना उपयोग हेतु अंगरेजों को दी जाती रही, जिसमें उन्होंने अपना चिकित्सालय, स्कूल, वाटर सप्लाय, स्टेशन, पानी की टंकी (हरी टंकी), इम्पीरियल बैंक ऑफ इंडिया, नर्सिंग होम, विक्टोरिया लाइब्रेरी व एंग्लीकन चर्च आदि की स्थापना की। उन्होंने सेंट्रल इंडिया की तमाममहत्वपूर्ण रियासतों के नरेशों को रेसीडेंसी एरिया में अपने-अपने भवन या महल बनाने के लिए भू-खंड आवंटित किए थे। यही कारण है कि इस क्षेत्र में ग्वालियर, राजगढ़, रतलाम, जावरा, झाबुआ, सैलाना, धार व अन्य रियासतों ने अपनी-अपनी कोठियां निर्मित करवाई थीं, जो बदले हुए स्वरूप में आज भी मौजूद हैं। वर्तमान म.प्र. लोक सेवा आयोग भवन में ग्वालियर बोर्डिंग हाउस था। वर्तमान जावरा कम्पाउंड, जावरा के नवाब को भवन निर्माण हेतु दिया गया था।
 
इस रेसीडेंसी एरिया पर होलकर राज्य को केवल भवन कर आरोपित करने का अधिकार था, जिसे बाद में 15,000 रु. प्रतिवर्ष पाकर होलकर नरेश ने छोड़ दिया था। रेसीडेंसी क्षेत्र में नगर पालिका के समस्त दायित्वों का निर्वाह करने के लिए एक पृथक कमेटी थी और बाजार की व्यवस्था देखने के लिए ब्रिटिश अंडर सेक्रेटरी अधिकृत था, जिसके नियंत्रण में बाजार अधीक्षक सारा कार्य देखता था।
 
इस क्षेत्र में किसी योरपीय व्यक्ति द्वारा यदि कोई फौजदारी अपराध कर दिया जाता था तो उसका मुकदमा बंबई उच्च न्यायालय में ही चलता था। छोटी छावनी जिसे रेसीडेंसी बाजार कहा जाता था, 1931 ई. में होलकर प्रशासन के नियंत्रण में दे दी गई।देश 1947 में आजाद हो गया, किंतु रेसीडेंसी एरिया का इंदौर नगर पालिका सीमा में विलीनीकरण 1 सितंबर 1955 को हो पाया। यह एक उल्लेखनीय तथ्य है कि आज भी इसी क्षेत्र में प्रशासन के अत्यंत महत्वपूर्ण अधिकारीगण निवास करते हैं।
 
गवर्नर एजेंट की 1854 में इंदौर में नियुक्ति
 
अंगरेज अधिकारियों, कर्मचारियों व सैनिकों का पड़ाव इंदौर में 1820 से ही प्रारंभ हो गया था। 1818 की मंदसौर की संधि के पश्चात ही इंदौर नगर को होलकर राज्य की राजधानी बनाया गया। राजधानी की गतिविधियों पर नजर रखने व महाराजा होलकर से सीधा संपर्क बनाए रखने के लिए इंदौर में एक ब्रिटिश रेजीडेंट का पद कायम किया गया था।
 
इंदौर रेसीडेंसी के प्रथम रेजीडेंट के रूप में मिस्टर वेलेजली को नियुक्त किया गया जो एक दूरदर्शी कूटनीतिक था। वह (1818 से 1831 तक) लगभग 13 वर्षों तक इस पद पर इंदौर में कार्यरत रहा। उसने होलकर के साथ प्रारंभिक महत्वपूर्ण सुविधाएं हासिल कीं। इंदौर रेसीडेंसी भवन के निर्माण के लिए लगने वाली समस्त सामग्री उसने होलकर राज्य से प्राप्त की थी।
 
डब्ल्यू.बी. मार्टिन दूसरे रेजीडेंट के रूप में इंदौर रेसीडेंसी पहुंचा, लेकिन उसका कार्यकाल(1832-33) अत्यंत अल्प था। शीघ्र ही उसे यहां से जाना पड़ा और उसका कार्यभार 1834 में जॉन बेक्स ने संभाला। जॉन बेक्स 6 वर्ष तक इंदौर में उक्त पद पर रहा। 1840 में उसने भी बिदा ली और उसके स्थान पर कर्नल मार्टिन वेड को नियुक्त किया गया।
 
1844 में वेड को अन्यत्र भेजते हुए इंदौर रेसीडेंसी में सर राबर्ट हेमिल्टन की नियुक्ति की गई. हेमिल्टन के समय ही महाराजा तुकोजीराव (द्वितीय) को गोद लिया गया जिनके अल्प वयस्क काल के शासन में हेमिल्टन ने बहुत ही स्नेहपूर्ण व्यवहार महाराजा से किया। महाराजा भी हेमिल्टन के प्रति बड़ा सम्मान रखते थे।
 
1854 में भारत के गवर्नर जनरल ने राबर्ट हेमिल्टन को, जो इंदौर में रेजीडेंट के पद पर कार्यरत थे, सेंट्रल इंडिया के लिए अपना 'एजेंट' नियुक्त किया जो ए.जी.जी. (एजेंट टू दि गवर्नर जनरल इन सेंट्रल इंडिया) कहलाता था। वह रेसीडेंसी का संपूर्ण प्रशासन, अपने सचिवों के माध्यम से करता था। वहीं होलकर राज्य तथा भारत सरकार के गवर्नर जनरल के मध्य प्रमुख सेतु का कार्य करता था। उसे ब्रिटिश प्रशासित क्षेत्रों तथा मध्यभारत में रेलवे भूमि क्षेत्र पर स्थानीय प्रशासन के अधिकारों के साथ-साथ उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान न्यायिकअधिकार भी प्राप्त थे।
 
सेंट्रल इंडिया की सभी रियासतों ने अपने-अपने वकील इंदौर में नियुक्त कर रखे थे जिनके माध्यम से वे अपना पत्र व्यवहार ए.जी.जी. से करते थे।
 
बदमिजाज ए.जी.जी. डुरेंड
 
सर रॉबर्ट हेमिल्टन जो 1854 में भारत के गवर्नर जनरल का एजेंट भी नियुक्त हुआ था, लंबे अवकाश पर लंदन जाना चाहता था, अतः उसके स्थान पर सैनिक अधिकारी कर्नल एच.एम. डुरेंड को इंदौर का ए.जी.जी. बनाया गया। 4 अप्रैल 1857 को वह इंदौर पहुंचा और उसने अपना कार्यभार ग्रहण किया। डुरेंड इसके पूर्व ब्रिटिश भारत की विभिन्ना प्रकार की सैनिक एवं प्रशासनिक सेवाएं कर चुका था। अफगानिस्तान का सैनिक अभियान डुरेंड के नेतृत्व में ही चलाया गया था। ऐसे अनुभवी सैनिक अधिकारी व कूटनीतिज्ञ की इंदौर में नियुक्ति इस बात की ओर संकेत करती है कि उस समय सेंट्रल इंडिया में अंगरेजों के प्रति व्याप्त असंतोष व संभावित विद्रोह के प्रति कंपनी सरकार पूर्णतः सतर्क थी।
 
डुरेंड शंकालु, अव्यावहारिक और सख्त मिजाज सैनिक अधिकारी था। सीतामऊ रियासत का वकील वजीर बेग डुरेंड के विषय में पहली मुलाकात के बाद ही लिखता है-
 
'मी. 13 मंगलवार (अप्रैल 7, 1857) को शाम के दोपहर परपांच बजे सारे मालवा के व बुंदेलखंड के वकीलों के नजरे डालीयें गुजरीं। सारे इकट्ठे बैठे एक लहमे भर में अतरपान होके दरबार बरखास्त हुआ। ओर मीजाज कड़ा है, खुदा खैर करे, ओर बदमिजाज है, आगे खुदा है।'
 
अपने 29 अप्रैल 1857 के पत्र में वजीर बेग लिखता है- ...'व ये हाकिम (डुरेंड) बड़ा कड़ा है खातर मुलायजा वगैरा कुछ नहीं समजता है। और भाई साहब आज दिन तक तो जेसी बेड़ी गुगी च्याकरी सरकार की बनी, सो की, अब बखत भी नाजुक हे और हाकिम भी येसा आया है, खुदा सरम रखे। कैसा होगा, हुलकर का वकील कालूराम बाजार में साऊकारों कूं सलाम नजरों कूं ले गया था, सो नजरें नहीं लीं व खफा हुआ के हमें रुप्या दिखाकर ललचाते हो और मारने को डंडु उठाया। वकील पर यह वारदात हो रही है। जिस काम का हुकुम दे उस काम में देरी हो तो पेहरे में खड़ा रखकर काम ले। ऐसी बात है सो जरा आप भी ख्याल रखोगे।'
 
यह पत्र वजीर बेग ने अपने स्वामी सीतामऊ नरेश को लिखा था। वजीर बेग के होलकर के विषय में लिखे विवरण को हम प्रामाणिक इसलिए भी मान सकते हैं कि वह अंगरेजों या होलकरों से वेतन नहीं पाता था। डुरेंड के बदमिजाज होने के प्रमाण अन्य सूत्रों से भी मिलते हैं। इसके विपरीत सर रॉबर्ट हेमिल्टन अत्यंत गंभीर, उदार, मृदुभाषी व मिलनसार अधिकारी था। उसका स्थान डुरेंड जैसे व्यक्ति ने लिया, जो शीघ्र ही संपूर्ण सेंट्रल इंडिया में अपनी कड़कमिजाजी व बदसलूकी के लिए बदनाम हो गया।
 
उन्हीं दिनों इंदौर नगर में प्लेग का प्रकोप हुआ था और सैकड़ों लोग मर रहे थे। इंदौर रेसीडेंसी चिकित्सालय ने डुरेंड के व्यवहार के कारण नगरवासियों की विशेष सहायता न की, इससे नागरिकों के मन में नाराजगी फैल रही थी।
 
रेसीडेंसी की सुरक्षा के लिए होलकर सेना
 
ईस्ट इंडिया कंपनी की अत्याचारपूर्ण नीतियों के विरुद्ध भारतीयों में बढ़ते असंतोष का विस्फोट सर्वप्रथम 10 मई 1857 को मेरठ में हुआ, जब मंगल पांडे ने खुल्लम-खुल्ला ब्रिटिश विरोध के लिए शस्त्र उठा लिए। देखते ही देखते इस विद्रोह की चिंगारी नीमच, ललितपुर, हाथरस, नसीराबाद, कानपुर, लखनऊ, बरेली, मुरादाबाद, शाहजहांपुर तथा ग्वालियर आदि में फैल गई। महू में भी 1818 में ब्रिटिश फौजी छावनी कामय की थी जिसका नाम महू मिलिट्री हेड क्वार्टर्स ऑफ वेस्ट (एम.एच.ओ.डब्ल्यू.) अंगरेजों ने रखा था। महू की छावनी पर इंदौर के ए.जी.जी. का नियंत्रण था। महू केभारतीय सिपाहियों व होलकर सैनिकों में अंगरेजों के विरुद्ध भारी असंतोष था। अतः उक्त स्थानों पर बगावत का समाचार जब इंदौर पहुंचा तो विद्रोहियों की गतिविधियां औऱ तेज हो गई। नाना फड़नवीस, तात्या टोपे और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई आदि के गुप्त संदेश इंदौर पहुंच रहे थे। इंदौर में लगातार तनाव बढ़ता जा रहा था।
 
अंगरेजी डाक को जगह-जगह रोककर नष्ट किया जा रहा था। लिहाजा इंदौर से अंगरेजी डाक का आना-जाना बंद-सा हो गया था। अति विशेष समाचार विशेष पत्र-वाहकों के माध्यम से ही भेजे जा रहे थे। मेरठ के विद्रोह का समाचार जानकर इंदौर का ए.जी.जी. डुरेंड भयभीत हो उठा। उसने 14 मई को एक्सप्रेस समाचार भेजकर सीहोर से भोपाल कांटीजेंट की 2 तोपें, 2 इंफेन्ट्री कंपनियां और दो अश्वारोही दल इंदौर रेसीडेंसी भिजवाने का आग्रह किया। सीहोर की पल्टन इंदौर पहुंचने के पूर्व ही यहां बगावत हो जाएगी, ऐसी आशंका से ग्रसित डुरेंड सहायता की याचना के साथ होलकर नरेश तुकोजीराव (द्वितीय) से जाकर मिला। उसने तमाम औपचारिकताओं का पालन न करते हुए महाराजा से सैनिक सहायता देने का आग्रह किया। महाराजा सहायता देने के लिएतो तैयार हो गए, किंतु उन्होंने डुरेंड को स्पष्ट कर दिया कि उनके सिपाही उतने कार्यकुशल नहीं हैं जितने ब्रिटिश फौज के हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि उनके पास अधिक गोला-बारूद भी नहीं है, फिर भी यदि सैनिकों की आवश्यकता रेसीडेंसी में पड़े तो डुरेंड कम से कम तीन घंटे पूर्व महाराजा को सूचित करें।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

भीषण गर्मी से भीमकुंड का जलस्तर घटा, वैज्ञानिक भी नहीं उठा पाए हैं इस अथाह कुंड के रहस्य से पर्दा