इंदौर नगर पालिका से निगम बनने का वर्ष अक्टूबर 1956 रहा है। इस तरह इंदौर नगर में पहले महापौर कांग्रेस के ईश्वरचंद जैन (1956-57) चुने गए थे। वर्ष 1958 में पहली नगर निकाय के चुनाव हुए थे। इसमें कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा था। कारण था कॉमरेड होमी दाजी और अन्य दलों द्वारा मिलकर बनाया गया नागरिक मोर्चा। इस नागरिक मोर्चे ने निगम में बहुमत प्राप्त कर पहले गैरकांग्रेसी महापौर के रूप में पुरुषोतम विजय को चुना था। चूंकि महापौर का चयन पार्षदों द्वारा किया जाया था, अत: महापौर का कार्यकाल 1 वर्ष या उससे कम ही हुआ करता था।
नागरिक मोर्चे के कार्यकाल में महापौर पुरुषोतम विजय, प्रभाकर अडसुले, बालकृष्ण गौहर, सरदार शेरसिंह, बीबी पुरोहित, प्रो. एमएन जुस्ती, नारायण प्रसाद शुक्ला और भंवरसिंह भंडारी थे। इस तरह नागरिक मोर्चे ने नगर को 8 महापौर दिए।
वर्ष 1965 के नगर निगम के दूसरे चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला और लक्ष्मण सिंह चौहान, लक्ष्मीशंकर शुक्ला, चांदमल गुप्ता (2 बार) एवं सुरेश सेठ ने महापौर के रूप में कार्य किया। इस तरह 4 व्यक्ति और 5 पद के रूप में कांग्रेस का कार्यकाल रहा।
1970 के वर्ष से चुनावों में भी कुछ ऐसा हुआ कि वे हमेशा ही किसी न किसी प्रक्रिया में उलझते रहे और नगर निगम की सत्ता पर 1970 से 1983 प्रशासक का दौर रहा और निगम की बागडोर उनके हाथों में रही। इस तरह प्रशासकों ने निगम का संचालन किया। करीब 19 अधिकारियों ने 12 वर्षों में 27 बार निगम के प्रशासक का कार्यभार का दायित्व निभाया था।
1980 में भाजपा का जन्म हो चुका था। 1983 के चुनाव में भाजपा की परिषद चुनी गई और राजेन्द्र धारकर, लालचंद मित्तल, नारायण धर्म और पं. श्रीवल्लभ शर्मा महापौर के लिए चयनित किए गए थे।
1987 से 1994 तक फिर प्रशासक का दौर आरभ हुआ, जो 1994 में हुए चुनाव के साथ ख़त्म हुआ। 1994 में निगम के चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला और मधुकर वर्मा महापौर पद के लिए चयनित किए गए।
वर्ष 1999 से पहले यह होता आया था कि जिस दल को निगम में बहुमत हो, उसका ही महापौर चुना जाता था। पर वर्ष 1999 से यह परिवर्तन हुआ कि महापौर का निर्वाचन सीधे मतदाताओं द्वारा ही किया जाएगा और इस तरह सीधे मतदाताओं द्वारा कैलाश विजयवर्गीय को पहला महापौर चुना गया और 1999 के चुनाव में निगम की सत्ता में भाजपा को बागडोर मिली।
इस तरह निगम में भाजपा को लगातार बहुमत मिलता रहा और वर्ष 2004 में डॉ. उमाशशि शर्मा, 2009 में कृष्णमुरारी मोघे एवं 2015 में मालिनी गौड़ महापौर निर्वाचित हुए और भाजपा को निगम में लगातार 4 बार अवसर मिला।
श्री नारायण सिंह 1957-58 में पहले नगर निगम में प्रशासक नियुक्त किए गए थे। वर्ष 1968 में केजी तेलंग एवं पीके गुप्ता (1968-69) में प्रशासक रहे हैं।
तत्कालीन महापौर मालिनी गौड़ का कार्यकाल फरवरी 2019 में समाप्त हो गया, परंतु कोरोना और कुछ कानूनी अड़चनों से चुनाव में विलंब हुआ, तब से इंदौर कमिश्नर डॉ. पवन शर्मा निगम के प्रशासक के रूप में कार्य देख रहे हैं।
इस तरह निगम के गठन होने से जुलाई 2022 के करीब 65 वर्ष 6 माह के कार्यकाल में नगर निगम ने 46 प्रशासक और 23 महापौर के रूप में देखे हैं। अब नगर की जनता 24 वे महापौर का चयन करने वाली है। जाहिर है निगम की सत्ता अफसरों के पास ज्यादा रही है।