रहे मुबारक सबको होली

- कैलाश यादव 'सनातन'

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धनवानों की भरी है झोली, नित्य मनाते हैं दीवाली,

जिनके दिल में प्रेमभरा है,जेब रही है सदा से खाली,

हमने देखा वे मतवाले, हर फागुन में खेले होली॥

श्वेत-श्याम का मिटा दे अंतर, गली-गली कान्हा मिल जाते

राधा दिखती सबके अंदर

जाति धर्म का भेद मिटा दे,हर चेहरा बनता रंगोली,

हमने देखा वे मतवाले, हर फागुन में खेले होल ी,

अंतर मन से करूं प्रार्थना, रहे मुबारक सबको होली।

अनेकता में एकता, हिंद की विशेषता,

इंद्रधनुष के रंग हैं कण-कण, रचियता खुद बिखेरता,

कायनात के मौसम सारे, कायनात की सारी ऋतुएं

यदि देखना हो तो आओ, हिंद ही सहेजता,

अनेकता में एकता, हिंद की विशेषता,

जिसने की है जग की रचना, सारे रंग भरे यहीं पर,

लगता है जग रचते-रचते, यहीं पे खेली उसने होली

अंतरमन से करूं प्रार्थना, रहे मुबारक सबको होली।

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