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होली के बाद रंगपंचमी कब है, क्या करते हैं इस दिन?

WD Feature Desk
मंगलवार, 18 मार्च 2025 (12:51 IST)
Rang Panchami 2025 : होली के बाद फाल्गुन मास की पंचमी तिथि के दिन रंगपंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार रंग पंचमी का त्योहार 19 मार्च 2025 बुधवार को मनाया जाएगा। होली यानी धुलैंडी की तरह ही रंग पंचमी रंगों वाला त्योहार है। इस त्योहार को खासकर मध्यप्रदेश और छत्तिगढ़ में ज्यादा मनाया जाता है जबकि अन्य जगह धुलैंडी की धूम रहती है। रंग पंचमी को कृष्ण पंचमी तथा देव पंचमी के रूप में भी जाना जाता है। ALSO READ: होली का डांडा कब गाड़ा जाएगा और होलाष्टक कब से हो रहा है प्रारंभ?
 
पंचमी तिथि प्रारंभ- 18 मार्च 2025 को रात्रि 10:09 बजे से। 
पंचमी तिथि समाप्त- 20 मार्च 2025 को मध्यरात्रि 12:36 बजे तक।
उपरोक्त मान से 19 मार्च को पंचमी तिथि पूरे दिन और रात रहेगी।
 
पूजा का शुभ मुहूर्त: अमृत काल सुबह 10:57 से दोपहर 12:44 के बीच।
 
रंगपंचमी पर क्या करते हैं?
1. रंग : धुलेंडी और रंगपंचमी पर रंग खेलने की परंपरा है। इस दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाकर उत्सव मनाते हैं। रंगों के लिए आप प्राकृतिक रंगों का उपयोग करें।
 
2. ठंडाई : कई लोग इस दिन ताड़ी या भांग पीते हैं जो कि उचित है या अनुचित हम नहीं जानते हैं। इसी दिन ठंडाई पीने का भी रिवाज है। दूध में केसर, बादाम पिस्ता, इलायची, शक्कर, खरबूजे के बीज, खसखस, अंगूर आदि मिलाकर उसे अच्छे से घोटकर ठंडाई बनाई जाती है जिसे सभी पीते हैं। कांजी, भांग और ठंडाई इस पर्व के विशेष पेय होते हैं। पर ये कुछ ही लोगों को भाते हैं।ALSO READ: होली पर चंद्र ग्रहण से किन 3 राशियों पर होगा इसका नकारात्मक प्रभाव?
 
3. पकोड़े : इस दिन भजिये या पकोड़े खाने का प्रचलन है। शाम को स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद गिल्की के पकोड़े का मजा लिया जाता है।
 
4. पकवान : इस दिन अलग-अलग राज्यों में अलग अलग पकवान बनाए जाते हैं। जैसे महाराष्ट्र में पूरणपोली बनाई जाती है। इस दिन गिलकी के पकौड़े, दही बड़ा, गुजिया, रबड़ी खीर, बेसन की सेंव, आलू पुरी आदि व्यंजन बनाए जाते हैं। घरों में बने पकवानों का यहां भोग लगाया जाता है। इस आग में नई फसल की गेहूं की बालियों और चने के होले को भी भूना जाता है।
 
5. नृत्य एवं गान : इस दिन नाचना, गाना या किसी भी तरह का मनोरंजन करने का प्रचलन है। आदिवासी क्षेत्र में विशेष नृत्य, गान और उत्सव मनाया जाता है। आदिवासी क्षेत्रों में हाट बाजार लगते हैं और युवक युवतियां मिलकर एक साथ ढोर की थाप और बांसुरी की धुन पर नृत्य करते हैं। इनमें से कई तो ताड़ी पीकर होली का मजा लेते हैं।
 
6. होली के गीत : होली के दिन लोकगीत गाए जाते हैं। गांवों में लोग देर रात तक होली के गीत गाते हैं तथा नाचते हैं। स्थानीय भाषाओं में बने होली के गीतों में कुछ ऐसे गीत हैं जो सदियों से गाए जा रहे हैं।ALSO READ: ब्रज की होली के 5 सबसे लोकप्रिय गीत
 
7. गेर निकालना : लगभग पूरे मालवा प्रदेश में होली और रंग पंचमी पर जलूस निकालने की परंपरा है, जिसे गेर कहते हैं। जलूस में बैंड-बाजे-नाच-गाने सब शामिल होते हैं। इसके लिए सभी अपने अपने स्तर पर तैयारी करते हैं।
 
8. पूजा : होलिका दहन के दिन जहां होलिका, प्रहलाद और नृसिंह भगवान की पूजा की जाती है वहीं धुलेंडी के दिन श्रीहरि विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का प्रचलन है। रंग पंचमी पर श्रीकृष्ण और श्रीराधाजी की पूजा की जाती है। राधारानी के बरसाने में इस दिन उनके मंदिर में विशेष पूजा और दर्शन लाभ होते हैं। मान्यता है कि कुंडली के बड़े से बड़े दोष को इस दिन पूजा आराधना और ज्योतिेष के उपायों से ठीक हो जाते हैं।
 
9. पशुओं की पूजा : होली के कुछ दिन पहले ही गांव में पशुओं के शरीर पर रंग बिरेंगे टेटू बनाए जाते हैं। उनके सिंगों पर मोर पंख, गले में घुंघरू बांधे जाते हैं। उन्हें सजाकर उनकी पूजा भी की जाती है।
 
10. होली मिलन समारोह : समाज या परिवार में होली मिलन समारोह रखा जाता है। इस दिन सभी लोग एक दूसरे से गले मिलकर मनमुटाव दूर करते हैं। होली मिलन समारोह में रंग खेलने के साथ ही तरह तरह के पकवान भी खाए जाते हैं और लोग एक दूसरे को मिठाईयां भी देते हैं।
 

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