राधा-कृष्ण की निराली होली कथा

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होली प्रेम का दायरा बढ़ाती है और सामाजिक बंदिशों को तोड़ती है। यह दिन भेदभाव से परे जाकर सभी के समान होने का दिन है और यह प्रेम से ही संभव है। ब्रज में होली का त्योहार करीब एक हफ्ते तक चलता है और रंगपंचमी पर खत्म होता है।


होली मनाने से जुडी मान्यताओं में होलिका दहन को खास माना जाता है। होली मनाने का और खासतौर पर रंगों से सराबोर होने के पीछे एक और कहानी है जो ब्रज में पले भगवान श्रीकृष्ण के राधा के साथ अलौकिक प्रेम से जुडी है। 


 

 
बचपन में पूतना के द्वारा जहरीला दूध पिलाने के कारण भगवान श्रीकृष्ण का रंग गहरा नीला हो गया था। अपने रंग से खुद को अलग महसूस करने पर श्रीकृष्ण को लगने लगा कि उनके इस रंग की वजह से न तो राधा और न ही गोपियां उन्हें पसंद करेंगी। उनकी परेशानी देखकर माता यशोदा ने उन्हें कहा कि वह जाकर राधा को अपनी पसंद के रंग से रंग दें और भगवान कृष्ण ने माता की यह सलाह मानकर राधा पर रंग डाल दिया। इस प्रकार श्रीकृष्ण और राधा न केवल अलौकिक प्रेम में डूब गए बल्कि रंग के त्योहार होली को भी उत्सव के रुप में मनाया जाने लगा। 
 
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