होली के डांडा की 5 खास बातें, जानिए कब गाड़ा जाता है इसे

Webdunia
मंगलवार, 8 मार्च 2022 (17:31 IST)
Holi ka danda 2022: होलिका दहन के पूर्व होली का डांडा चौराहे पर गाड़ा जाता है। क्या होता है यह डांडा या डंडा, इस क्यों और कब गाड़ा जाता है। आओ जानते हैं इस संबंध में संक्षिप्त में जानकारी।
 
 
1. क्या होता है होली का डांडा : होलिका दहन के पूर्व होली का डंडा या डांडा चौराहे पर गाड़ना होता है। होली का डंडा एक प्रकार का पौधा होता है, जिसे सेम का पौधा कहते हैं। इन डंडों को गंगाजल से शुद्ध करने के बाद इन डांडों के इर्द-गिर्द गोबर के उपले, लकड़ियां, घास और जलाने वाली अन्य चीजें इकट्ठा की जाती है और इन्हें धीरे-धीरे बड़ा किया जाता है और अंत में होलिका दहन वाले दिन इसे जला दिया जाता है।
 
2. क्यों गाड़ते हैं यह डांडा : एक स्थान पर दो डांडा स्थापित किए जाते हैं। जिनमें से एक डांडा हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का प्रतीक तो दूसरा डांडा उसके पुत्र प्रहलाद का प्रतीक माना जाता है। प्रहलाद को अपनी गोदी में लेकर होलिका अग्नि में बैठ गई थी। होलिका तो जल गई लेकिन श्रीहरि विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गए थे। इसी की याद में होलिका डांडा गाड़ा जाता है और उसे होलिका दहन के‍ दिन जला दिया जाता है।  
 
3. कब गाड़ा जाता है होली डांडा : भारत में कई जगह तो फाल्गुन मास प्रारंभ होते ही होली का डांडा रोपड़ कर होली उत्सव का प्रारंभ हो जाता है तो कई जगहों पर होलाष्टक पर डांडा रोपण करके इस उत्सव की शुरुआत की जाता ही। कई जगह पर माघ पूर्णिमा के दिन से ही होली का डांडा रोप दिया जाता है। हालांकि अब अधिकांश जगह यह डांडा होलिका दहन के एक दिन पूर्व ही रोपण कर खानापूर्ति की जाती है। जबकि असल में यह डांडा होली से ठीक एक महीने पहले 'माघ पूर्णिमा' को रोपण होता है।
 
वसंत ऋतु के प्रारंभ होते ही इस त्योहार की शुरुआत हो जाती है। कई जगह पर 'माघ पूर्णिमा' से ही इस त्योहार की शुरुआत हो जाती है। ब्रजमंडल में खासकर मथुरा में लगभग 45 दिन के होली के पर्व का आरंभ वसंत पंचमी से ही हो जाता है। बसंत पंचमी पर ब्रज में भगवान बांकेबिहारी ने भक्तों के साथ होली खेलकर होली महोत्सव की शुरुआत की जाती है।
 
4. क्या करते हैं डंडा गाड़ने के बाद : इस डांडे के आसपास लकड़ी और कंडे जमाकर रंगोली बनाई जाती और फिर विधिवत रूप से होली की पूजा की जाती है। कंडे में विशेष प्रकार के होते हैं जिन्हें भरभोलिए कहते हैं। भरभोलिए गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं जिनके बीच में छेद होता है। इस छेद में मूंज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है। एक माला में सात भरभोलिए होते हैं। फाल्गुन मास की पूर्णिमा की रात्रि को होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के पहले होली के डांडा को निकाल लिया जाता है। उसकी जगह लकड़ी का डांडा लगाया जाता है। फिर विधिवत रूप से होली की पूजा की जाती है और अंत में उसे जला दिया जाता है। होलिका में भरभोलिए जलाने की भी परंपरा है।
 
5. होलिका दहन के पूर्व क्या करते हैं भरभोलिए का : होली में आग लगाने से पहले इस भरभोलिए की माला को भाइयों के सिर के ऊपर से 7 बार घूमा कर फेंक दिया जाता है। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका यह आशय है कि होली के साथ भाइयों पर लगी बुरी नज़र भी जल जाए।

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