भारत वर्ष में होली की पूजा कई तरह से की जाती है। पूजा पर किसी भी प्रदेश के क्षेत्रीय विधि विधान का विशेष प्रभाव रहता है। हालांकि कुछ ऐसे अनुष्ठान भी होते हैं जो होलिका के दिन प्रत्येक राज्य में किए जाते हैं। आओ उन्हीं में से कुछ को जानते हैं।
1. डांडे की पूजा : होलिका दहन के पूर्व 2 डांडे रोपण किए जाते हैं। जिनमें से एक डांडा होलिका का प्रतीक तो दूसरा डांडा प्रहलाद का प्रतीक माना जाता है। इन दोनों डांडे की विधिवत पूजा की जाती है। इसके बाद इन डंडों को गंगाजल से शुद्ध करके के बाद इन डांडों के इर्द-गिर्द गोबर के उपले, लकड़ियां, घास और जलाने वाली अन्य चीजें इकट्ठा की जाती है और इन्हें धीरे-धीरे बड़ा किया जाता है और अंत में होलिका दहन वाले दिन इसे जला दिया जाता है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा की रात्रि को होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के पहले होली के डांडा को निकाल लिया जाता है। उसकी जगह लकड़ी का डांडा लगाया जाता है। फिर विधिवत रूप से होली की पूजा की जाती है और अंत में उसे जला दिया जाता है।
2. विष्णु-नृसिंह पूजा : होलिका और प्रहलाद के साथ ही भगवान विष्णु और विष्णु अवतार नृसिंह की भी पूजा की जाती है। खासकर दूसरे दिन विष्णु पूजा की जाती है। कहते हैं कि त्रैतायुग के प्रारंभ में विष्णु ने धूलि वंदन किया था। इसकी याद में धुलेंडी मनाई जाती है। होली के दिनों में विष्णु के अवतार भगवना नृसिंह की पूजा का भी प्रचलन है क्योंकि श्रीहरि विष्णु ने ही होलिका दहन के बाद नृसिंह रूप धारण करके हिरण्याकश्यप का वध करने भक्त प्रहलाद की जान बचाई थी।
3. वास्तु शांति हेतु पूजा : होली का दिन वास्तु शांती का सबसे अच्छा दिन होता है। यदि आपके अपने घर की वास्तु शांति नहीं कराई है तो इस दिन करा लें। इस दिन वास्तु पूजा करके लोगों को स्वादिष्ट भोजन कराएं और फिर उत्सव मनाएं। लोगों को उत्सव के लिए आमंत्रित करना वास्तुपुरुष को प्रसन्न करता है और स्थान विशेष के वास्तु में सुधार करता है।
4. हनुमान पूजा : होली के दिन सभी तरह की नकारात्मक शक्तियों को घर से बाहर करने और संकटों को खत्म करने का दिन भी होता है इसीलिए हनुमान पूजा का महत्व बढ़ जाता है। कई राज्यों में यह पूजा की जाती है। इस दिन हनुमानजी की पूजा करने से सभी तरह के संकट दूर हो जाते हैं।
होली के दिन हनुमान जी के पूजा की विशेष विधान है। पूजन करते हुए 'श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि बरनउ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि', 'मनोजवं मारुततुल्य वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं । वातात्मजं वानरयूथ मुख्यं श्री राम दूतं शरणं प्रपद्ये ।।' ऐसी प्रार्थना करें।