Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

फाल्गुन पूर्णिमा 2021 : रविवार, 28 मार्च को होगा होलिका दहन, जानिए इतिहास, कथा एवं नियम

हमें फॉलो करें फाल्गुन पूर्णिमा 2021 : रविवार, 28 मार्च को होगा होलिका दहन, जानिए इतिहास, कथा एवं नियम
webdunia

आचार्य राजेश कुमार

Holika Dahan 2021
 

होली के त्‍योहार का इंतजार लोग पूरे साल करते हैं। यह हिन्दू धर्म के बड़े पर्वों में से एक है। हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होलाष्टक शुरू हुआ था जो रविवार, 28 मार्च को समाप्त होगा।  धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक के दौरान कोई भी मांगलिक कार्य (शादी, विवाह, वाहन खरीदना या घर खरीदना, अन्य मंगल कार्य) नहीं किए जाते हैं।

हालांकि इस दौरान पूजा-पाठ करने और भगवान का स्मरण और उनके भजन करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।  होलिका दहन, होली त्योहार का पहला दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है। होली बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यत: 2 नियम ध्यान में रखने चाहिए-
 
1. पहला : उस दिन 'भद्रा' न हो। भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी है, जो कि 11 करणों में से 1 है। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है।
 
2. दूसरा : पूर्णिमा प्रदोषकाल व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के बाद के 3 मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।
 
होलिका दहन (जिसे छोटी होली भी कहते हैं) के अगले दिन पूर्ण हर्षोल्लास के साथ रंग खेलने का विधान है और अबीर-गुलाल आदि एक-दूसरे को लगाकर व गले मिलकर इस पर्व को मनाया जाता है।
 
 
होलिका दहन का इतिहास- होली का वर्णन बहुत पहले से हमें देखने को मिलता है। प्राचीन विजयनगरम् साम्राज्य की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी का चित्र मिला है जिसमें होली के पर्व को उकेरा गया है। ऐसे ही विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है। कुछ लोग मानते हैं कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी खुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी।

webdunia
Holika Dahan 2021
 
होलिका दहन की पौराणिक कथाएं- 
 
पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा कि उसका पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के शिवाय किसी अन्य को नहीं भजता, तो वह क्रुद्ध हो उठा और अंतत: उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुकसान नहीं पहुंचा सकती।
 
किंतु हुआ इसके ठीक विपरीत और होलिका जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिकादहन करने का विधान है। होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।
 
 
लेकिन होली की केवल यही नहीं, बल्कि और भी कई कहानियां प्रचलित हैं।
 
कामदेव को किया था भस्म- होली की एक कहानी कामदेव की भी है। पार्वतीजी, शिव से विवाह करना चाहती थीं लेकिन तपस्या में लीन शिव का ध्यान उनकी ओर गया ही नहीं। ऐसे में प्यार के देवता कामदेव आगे आए और उन्होंने शिव पर पुष्प बाण चला दिया। तपस्या भंग होने से शिव को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी और उनके क्रोध की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए।
 
 
कामदेव के भस्म हो जाने पर उनकी पत्नी रति रोने लगीं और शिव से कामदेव को जीवित करने की गुहार लगाई। अगले दिन तक शिव का क्रोध शांत हो चुका था, उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित किया। कामदेव के भस्म होने के दिन होलिका जलाई जाती है और उनके जीवित होने की खुशी में रंगों का त्योहार मनाया जाता है।
 
महाभारत की कहानी- महाभारत की एक कहानी के मुताबिक युधिष्ठिर को श्रीकृष्ण ने बताया कि एक बार श्रीराम के पूर्वज रघु के शासन में एक असुर महिला धोधी थी। उसे कोई भी नहीं मार सकता था, क्योंकि वह एक वरदान द्वारा संरक्षित थी। उसे गली में खेल रहे बच्चों के अलावा किसी से भी डर नहीं था। एक दिन गुरु वशिष्ठ ने बताया कि उसे मारा जा सकता है, यदि बच्चे अपने हाथों में लकड़ी के छोटे टुकड़े लेकर शहर के बाहरी इलाके के पास चले जाएं और सूखी घास के साथ-साथ उनका ढेर लगाकर जला दें। फिर उसके चारों ओर परिक्रमा दें, नृत्य करें, ताली बजाएं, गाना गाएं और ड्रम बजाएं। फिर ऐसा ही किया गया। इस दिन को एक उत्सव के रूप में मनाया गया, जो बुराई पर एक मासूम दिल की जीत का प्रतीक है।
 
 
श्रीकृष्ण-पूतना की कहानी- होली का श्रीकृष्ण से गहरा रिश्ता है। जहां इस त्योहार को राधा-कृष्ण के प्रेम के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है, वहीं पौराणिक कथा के अनुसार जब कंस को श्रीकृष्ण के गोकुल में होने का पता चला तो उसने पूतना नामक राक्षसी को गोकुल में जन्म लेने वाले हर बच्चे को मारने के लिए भेजा।
 
पूतना को स्तनपान के बहाने शिशुओं को विषपान कराना था लेकिन श्रीकृष्ण उसकी सच्चाई को समझ गए। उन्होंने दुग्धपान करते समय ही पूतना का वध कर दिया। कहा जाता है कि तभी से होली पर्व मनाने की मान्यता शुरू हुई।

 
होलिकादहन के बाद अगले दिन 29 मार्च को रंगों का त्योहार होली मनाया जाएगा। ज्योषित शास्त्र के अनुसार होलाष्टक के 8 दिनों में मांगलिक कार्यों को करना निषेध होता है। इस समय किसी भी मांगलिक कार्य करने पर अपशकुन माना जाता है।
 
होलाष्टक में न करें ये कार्य- 
 
1. विवाह : होली से पूर्व के 8 दिनों में भूलकर भी विवाह न करें। यह समय शुभ नहीं माना जाता है, जब तक कि कोई विशेष योग आदि न हो।
 
 
2 : नामकरण एवं मुंडन संस्कार : होलाष्टक के समय में अपने बच्चे का नामकरण या मुंडन संस्कार कराने से बचें।
 
3. भवन निर्माण : होलाष्टक के समय में किसी भी भवन का निर्माण कार्य प्रारंभ न कराएं। होली के बाद नए भवन के निर्माण का शुभारंभ कराएं।
 
4. हवन-यज्ञ : होलाष्टक में कोई यज्ञ या हवन अनुष्ठान करने की सोच रहे हैं, तो उसे होली बाद कराएं। इस समयकाल में कराने से आपको उसका पूर्ण फल प्राप्त नहीं होगा।
 
 
5. नौकरी : होलाष्टक के समय में नई नौकरी ज्वॉइन करने से बचें। अगर होली के बाद का समय मिल जाए तो अच्छा होगा अन्यथा किसी ज्योतिषाचार्य से मुहूर्त दिखा लें।
 
6. भवन, वाहन आदि की खरीदारी : संभव हो तो होलाष्टक के समय में भवन, वाहन आदि की खरीदारी से बचें। शगुन के तौर पर भी रुपए आदि न दें।
 
होलाष्टक के समय में अपशकुन के कारण मांगलिक कार्यों पर रोक होती है। हालांकि होलाष्टक में भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है। इस समय में आप अपने ईष्टदेव की पूजा-अर्चना इत्यादि कर सकते हैं।

 
-आचार्य राजेश कुमार (www.divyanshjyotish.com)

ALSO READ: श्रीकृष्ण और पूतना से जुड़ी है होली की पौराणिक कथा


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

64 योगिनियों में से एक कामेश्वरी योगिनी