परिणाम जो होना था, वही हुआ। होलिका जलकर भस्म हो गई, जबकि सद्वृत्ति वाला ईश्वरनिष्ठ प्रहलाद हँसता-खेलता बाहर आया। प्रहलाद छोटा था, दुनिया में सद्वृत्ति के लोग अल्पसंख्या में ही होते हैं, परन्तु वे अगर प्रभुनिष्ठ हों, तपस्वी तथा क्रियाशील हों तो व्यापक असद्वृत्ति भी उनको स्पर्श नहीं कर सकती, ऐसा अनुपम संदेश होलिका का उत्सव हमें देता है।