ऐसा हो घर का आँगन

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आँगन किसी मकान का केन्द्रीय स्थल होता है। यह ब्रह्म स्थान भी कहलाता है। ब्रह्म स्थान सदैव खुला व साफ रखना चाहिए। पुराने जमाने में ब्रह्म स्थान में चौक, आँगन होता था। गाँवों की बात छोड़ दें, तो शहरों में मकान में आँगन रखने का रिवाज लगभग उठ सा गया है। वास्तु शास्त्र में मकान आँगन रखने पर जोर दिया जाता है।

वास्तु के अनुसार :

मकान का प्रारूप इस प्रकार रखना चाहिए कि आँगन मध्य में अवश्य हो। अगर स्थानाभाव है, तो मकान में खुला क्षेत्र इस प्रकार उत्तर या पूर्व की ओर रखें, जिससे सूर्य का प्रकाश व ताप मकान में अधिकाधिक प्रवेश कर सके।

इस तरह की व्यवस्था होने पर घर में रहने वाले प्राणी बहुत कम बीमार होते हैं। वे हमेशा सुखी रहते हैं, स्वस्थ व प्रसन्न रहते हैं।

आँगन किस प्रकार होना चाहिए-

यह मध्य में ऊँचा और चारों ओर से नीचा हो। अगर यह मध्य में नीचा व चारों ओर से ऊँचा है, तो यह आपके लिए नुकसानदेह है।

ऐसा आँगन होने पर आपकी सम्पत्ति नष्ट हो सकती है। परिवार में विपदा बढ़ेगी।

आँगन फला फल को दूसरे तरीके से भी जाना जा सकता है।

वास्तु के अनुसार आँगन की लँबाई और चौड़ाई के योग को 8 से गुणा करके 9 से भाग देने पर शेष का नाम व फल इस प्रकार जानें:-
शेष 1 तो चोट क ा भ य, 2 त ो ऐश्वर् य, 3 त ो बौद्धिक विका स, 4 त ो धर्म-कर्म में वृद्ध ि, 5 त ो राज-सम्मा न, 6 त ो स्त्री-पुत्रादि की हान ि, 7 त ो धन का आगम न, 8 त ो धन ना श, 9 त ो चोरी तथ ा शत्रुभय बना रहेग ा।

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