नाक की एलर्जी ले सकती है अस्थमा का रूप : डॉ. तारे

सीमान्त सुवीर
इंदौर। दुनिया के अन्य देशों की तुलना में भारत में सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण है। यदि हमने इस पर रोक नहीं लगाई तो आने वाले वर्षों में यह स्थिति और भयावह हो सकती है। नाक की एजर्जी को साधारण रुप से नहीं लेना चाहिए। कालातंर में यही एजर्जी अस्थमा का रुप भी ले सकती है। यह बात कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESI)इंदौर के संयुक्त संचालक और ख्‍यात नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर प्रकाश तारे ने एक विशेष मुलाकात में कही। 
'वेबदुनिया' से चर्चा करते हुए डॉक्टर तारे ने कहा कि वायु प्रदूषण दिनों-दिन बढ़ता ही चला जा रहा है। कुछ राज्य इस पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रहे हैं। महानगरों में वायु प्रदूषण की स्थिति काफी चिंताजनक है। यही कारण है कि सरकारी अस्पतालों में नाक की एलर्जी से ग्रस्त मरीजों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है। हर साल गर्मी के दिनों में नाक से संबंधित बीमारी बढ़ती है। इसका सबसे प्रमुख कारण ग्रीष्म में वायु के कणों का हलका होना है। ठंड और बारिश के दिनों में नाक में एलर्जी इसलिए नहीं होती है क्योंकि धूल के कण हवा में प्रवेश नहीं करते।   
 
डॉ. तारे के अनुसार वायु के यह हलके कण ऐसे होते हैं, जो आंखों से नहीं दिखते। हलके होने के कारण वे आसानी से नाक प्रवेश कर जाते हैं। सड़कों पर डीजल से चलने वाले वाहन सबसे ज्यादा वायु प्रदूषित करते हैं। डीजल से चलने वाले वाहन कार्बन मोनोऑक्साइड छोड़ते हैं और इसके कारण ये कण आसानी से नाक में प्रवेश कर जाते हैं। इससे नाक की सूक्ष्म झिल्ली और भीतरी भाग प्रभावित होता है। गर्मी के दिनों में लोगों को सर्दी होना और नाक बंद होने की शिकायत ज्यादा रहती है। इस स्थिति के बढ़ने से अस्थमा तक हो सकता है।  
नाक की एलर्जी से बचने के उपाय : जिस तरह हम भोजन करने से पूर्व हाथ धोते हैं, ठीक उसी तर्ज पर नाक की सफाई की भी जरुरत होती है। जो लोग ऑफिस के बाद सड़कों पर ज्यादा देर का रास्ता तय करके अपने घर लौटते हैं, उन्हें चाहिए कि वे मुंह धोने के बाद भी नाक की भी सफाई करें ताकि जो प्रदूषण वो सड़कों से लेकर आएं हैं, वह कुछ हद तक बाहर निकल जाए। इसके लिए करना यह है कि व्यक्ति नाक के एक तरफ के हिस्से को दबाकर जोर से छींके या अंदर गहरी सांस लेकर बाहर जोर से छोड़े ताकि नाक के जरिए जो भी गंदगी भीतर गई है वह निकल सकें। योग में जिस तरह हम भीतर की सांस को जोर से बाहर फेंकते हैं, ठीक वही प्रक्रिया इसमें अपनानी चाहिए।  
 
नेजल वॉश : इसमें कुनकुना पानी लेकर चुटकी भर खाने का सोडा मिलाएं। इसमें थोड़ा-सा नमक डालें और फिर नाक के एक मुंह से खींचे। उसके बाद भी खींचा हुआ पानी नाक के दूसरे क्षेत्र से बाहर निकाले। इस प्रक्रिया को नेजल वॉश कहा जाता है। नियमित रुप से नेजल वॉश से नाक के भीतर गई गंदगी को बाहर निकाला जा सकता है।  
 
नाक की झिल्ली गुलाबी होनी चाहिए : डॉक्टर तारे ने बताया कि कोई महिला या पुरुष प्रारंभिक रूप से स्वयं ही नाक की जांच कर सकते हैं कि उनकी नाक में एलर्जी तो नहीं हुई है। इसमें नाक को थोड़ी ऊंची करके भीतर के भाग को देखा जा सकता है। एक स्वस्थ इंसान की नाक की यह झिल्ली गुलाबी (पिंक) कलर की होती है। जिस तरह हमारे होठों को लगातार ऑक्सीजन मिलने से वे हलके गुलाबी होते हैं, ठीक उसी तरह नाक के भीतर की झिल्ली भी लगातार ऑक्सीजन मिलने के कारण कुदरती रुप से हल्की गुलाबी नजर आती है। यदि ये जामुनी रंग की हो जाए तो मानकर चलिये कि आपको नाक की एलर्जी हो गई है। इस अवस्था में तुरंत योग्य चिकित्सक की सलाह लेकर उसका उपचार करवाना चाहिए। 
 
टिशू पेपर का उपयोग : टिशू पेपर का उपयोग सिर्फ खाना खाकर हाथ पोछने के लिए नहीं होता, आप इसका उपयोग दूसरे तरीके से भी कर सकते हैं। जब भी आप अपना काम खत्म करके वापस घर लौटे तो एक टिशू पेपर लेकर उस पर नाक के ठीक पास लगाएं और फिर गहरी सांस छोड़ें। जैसे योग करते हुए करते हैं। उससे आपको खुद ही अहसास होगा कि आप कितनी गंदगी लेकर बाहर से आए हैं। 
 
कर्मचारी राज्य बीमा के संयुक्त संचालक डॉक्टर तारे ने कहा कि हम थोड़ी-सी सावधानी से अपनी नाक को सुरक्षित और स्वस्थ रख सकते हैं। भारत में अन्य देशों की तुलना में बहुत ज्यादा वायु प्रदूषण होता है। इस वायु प्रदूषण की वजह से लोगों की आंखों से पानी आना और एलर्जी होना आम बात है। वायु प्रदूषण के कारण ही भारत में अस्थमा के सबसे ज्यादा मरीज हैं। यदि हम शुरू से ही थोड़ी सावधानी बरतेंगे तो आने वाली तकलीफ से बच सकते हैं। 
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