विश्व बंजारा दिवस पर जानिए भारत के बंजारों के बारे में 5 रोचक बातें
, मंगलवार, 8 अप्रैल 2025 (12:15 IST)
Banjara heritage in India: हर साल 08 अप्रैल को विश्व बंजारा दिवस मनाया जाता है। यह दिन बंजारा समुदाय की संस्कृति, इतिहास और उनके अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। विश्व बंजारा दिवस एक विशेष अवसर है जो बंजारा समुदाय की सांस्कृतिक विरासत, परंपराओं और योगदान को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन बंजारा समुदाय के इतिहास, कला, संगीत, परिधान और उनके समाज में योगदान को उजागर किया जाता है।
आपको बता दें कि समय के साथ, कई बंजारा समुदाय अब स्थायी रूप से बस गए हैं और उन्होंने कृषि तथा अन्य व्यवसायों को अपना लिया है, लेकिन वे आज भी अपनी अनूठी सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं को संजोए हुए हैं। विश्व बंजारा दिवस उनकी संस्कृति को सम्मानित करने और उनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।
इस अवसर पर भारत के बंजारों के बारे में 5 रोचक बातें:
1. घुमंतू विरासत: बंजारा समुदाय ऐतिहासिक रूप से घुमंतू रहा है, जो व्यापार और पशुपालन जैसे व्यवसायों से जुड़ा था। वे अपने 'टांडा' नामक अस्थायी बस्तियों में एक स्थान से दूसरे स्थान पर यात्रा करते थे। उनकी इस घुमंतू जीवनशैली ने उन्हें विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों से जोड़ा।
2. सांस्कृतिक परंपरा: बंजारों की एक विशिष्ट और रंगीन संस्कृति है। उनकी वेशभूषा, विशेषकर महिलाओं की, जीवंत रंगों, कढ़ाई, दर्पण के काम और भारी आभूषणों से भरी होती है। उनके लोकगीत और नृत्य उनकी सांस्कृतिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो उनके जीवन के अनुभवों और इतिहास को दर्शाते हैं। 'लम्बाडी' उनका एक प्रसिद्ध लोकनृत्य है।
3. भाषा: बंजारा समुदाय की अपनी भाषा है, जिसे 'गोर बोली' या 'लम्बाडी' कहा जाता है। यह इंडो-आर्यन भाषा समूह से संबंधित है और इसकी कोई अपनी लिपि नहीं है। इसलिए, बंजारे जिस क्षेत्र में रहते हैं, वहां की स्थानीय भाषा से भी प्रभावित होते हैं।
4. ऐतिहासिक भूमिका: ऐतिहासिक रूप से, बंजारों ने भारत के आंतरिक क्षेत्रों में व्यापार और वस्तुओं के परिवहन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे अनाज, नमक और अन्य आवश्यक वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते थे और उन्होंने विभिन्न रियासतों और सेनाओं को भी अपनी सेवाएं प्रदान कीं।
5. विभिन्न नामों से जाने जाते हैं: बंजारा समुदाय को भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे कि गोर, लमानी, लम्बाडी, गौरिया, नायक और अन्य। उनकी उप-जातियां भी हैं, जैसे कि राठौड़, पंवार, चौहान, जाधव, मूला और वडत्या। इसमें अधिकतर चंद्रवंशी या सूर्यवंशी हैं तथा कालथिया, सपावट, लादड़िया, कैडुत, मूड़, कुर्रा आदि गोत्र सम्मलित है।
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