सरफरोशी की तमन्‍ना

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- रामप्रसाद ‘बिस्मिल्‍ ल ’

सरफरोशी की तमन्‍ना अब हमारे दिल में है,
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देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है ।
रहबरे राहे मुहब्‍बत रह न जाना राह में,
लज्‍जते सेहरा नवरदी दूरी-ए-मंजिल में है ।
वक्‍त आने पर बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ,
हम अभी से क्‍या बताएँ क्‍या हमारे दिल में है ।
आज फिर मकतल में कातिल कह रहा है बार-बार,
क्‍या तमन्‍ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है ।
ऐ शहीदे मुल्‍को मिल्‍लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्‍मत का चर्चा गैर की महफिल में है ।

अब न पिछले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़,
एक मिट जाने की हसरत बस दिल-ए-‘बिस्मिल्‍ ल ’ में है।

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