आजादी के 61 वर्ष बाद निवेश

पाई-पाई ने बदली तस्वीर

Webdunia
गुरुवार, 14 अगस्त 2008 (20:20 IST)
- नृपेंद्र गुप्ता
1947 में जब देश आजाद हुआ था तो आम भारतीय बचत के बारे में सोच भी नहीं पाता था। मध्यमवर्गीय आदमी अपना पैसा जमीन में गाड़ कर रखता था। उसे केवल अपनी दाल-रोटी की चिंता थी। जैसे-जैसे भारत ने प्रगति की यहाँ की जनता की आर्थिक स्थिति अच्छी होती चली गई। आर्थिक स्थिति बदलने से उसकी धारणाएँ भी बदली। उसने इन 60 वर्षों में जमीन में गड़ें धन को म्यूचुअल फंड और शेयर बाजार में निवेश करना प्रारंभ ‍कर दिया।

अभी कुछ साल पहले की ही तो बात है, साहूकार गरीब आदमी का थोड़ा ऋण देकर उसका घर बार तक बेच देता था। सरकार लोगों को साहूकारों से ऋण लेने से बचने की सलाह देती थी। शिक्षा के प्रसार से लोगों में जागरुकता आई और लोगों ने बैंक में पैसा जमा कराना और रियायती दरों पर ऋण लेना शुरू किया। 1948 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को राष्ट्रीय बैंक का दर्जा प्राप्त हुआ और उसे सरकार ने अपने नियंत्रण में ले लिया।

ND
1969 में 14 व्यावसायिक बैंकों के राष्ट्रीयकरण से लोगों के बैंकिंग की रूझान तेजी से बढ़ा। सरकार के इस कदम से बैंकिग अब आम आदमी के करीब पहुँच में आ गई। आज हमें न केवल निजी बैंकों से बैंकिंग की सुविधा मिल रही है, बल्कि एटीएम के माध्यम से इसका सरलीकरण भी हो गया है। उद्योगपति से लेकर मजदूर, किसान तक सभी को एटीएम ने बैंकों की लंबी कतार से मुक्ति दिला दी।

गृह ऋण, कार ऋण, शिक्षा ऋण आदि अनेक प्रकार के ऋण लेकर आम भारतीय ने अपनी जीवनशैली में सुधार किया। इन ऋणों की बदौलत कई गरीब किसानों के बेटों ने डॉक्टर, इंजीनियर बनने का जाग्रत सपना देखा।

पहले लोग निवेश के लिए केवल एफडी का सहारा लिया करते थे, पर धीरे-धीरे लोगों का रूझान म्यूचुअल फंड्स की ओर बढ़ा। 1964 में यूटीआई सबसे पहले म्यूचुअल फंड लाई थी। 1993 तक लोगों ने इन फंड्स में लगभग 47000 करोड़ रुपए निवेश किए थे।

1993 में निजी कंपनियों के निवेश के बाद इस सेक्टर में निवेशकों का रूझान बहुत तेजी से बढ़ा। 2003 तक कम जोखिम में अधिक लाभ की धारणा से 33 कंपनियों ने 1 लाख 21 हजार 805 करोड़ रुपए की संपत्ति बनाई थी। शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव का असर कम होने के कारण म्यूचुअल फंड्स आज आम आदमी की आँख का तारा बन चुका है। इसमें सिप के माध्यम से निवेश करने वाले मंदी और तेजी दोनों का लुत्फ उठाते देखे जा सकते हैं।

वैसे तो भारत में शेयर बाजार का इतिहास बहुत पुराना है। बीएसई 1956 में वह भारत में मान्यता प्राप्त पहला बाजार बना। शेयर बाजार ने इन साठ सालों शेयर बाजार ने बहुत उतार-चढ़ाव देखें। राजा को रंक और रंक को राजा बनाने वाले इस बाजार ने बहुत तेजी से तरक्की की और आज सेंसेक्स 15000 अंकों के आसपास है।

1992 में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना के बाद लोगों का रूझान शेयर बाजार में बहुत तेजी से बढ़ा। पहले जहाँ आम आदमी जोखिम के कारण इस बाजार से दूरी बनाकर चलता था, वहीं आज घर-घर में शेयरों पर चर्चा होती है और लोग यहाँ जमकर निवेश करते हैं।

बीमा जगत ने भारतीयों को भावनात्मक रूप से सुरक्षा प्रदान की है। घर, कार, जीवन, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में होने वाले बीमों ने आम जनता को भविष्य की चिंता से काफी हद तक मुक्त कर दिया है। दो-तीन हजार रु. प्रति माह कमाने वाला व्यक्ति भी बीमा करवाकर भविष्य सुरक्षित कर सकता है।

इन 60 सालों में आम आदमी ने खास बनने का सपना देखा, पैसों का सहीं उपयोग करना सीखा, जीवन शैली में जबरदस्त सुधार किया। इसी ‍निवेश की वजह से भारत दुनिया का बड़ा बाजार है। दुनिया के अमीरों में शुमार होने वाले टाटा, बिड़ला, अंबानी और नारायणमूर्ति जैसे भारतीयों को इस स्थान पर पहुँचाने में भारत की आम जनता का ही पूँजी निवेश है। बीते 61 सालों में यही हमने पाया है, खोया भी बहुत है, पर ऐसा कुछ नहीं, जिसे भारत की जनता अपने बुलंद हौसलों से दोबारा न पा सक े।

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