आज देश को आजाद हुए 61 वर्ष हो रहे हैं। इन 61 वर्षों में व्यापार के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति कहा जाना सर्वथा उचित है। विकासशील देशों के बीच हमारी जो धाक बनी है, वह हमारी सरकारी नीतियों और उद्यमियों के परिश्रम का नतीजा है। आजादी के बाद देश ने हर क्षेत्र में तरक्की की है और यह सतत जारी है। चाहे वह ऑटोमोबाइल का क्षेत्र हो, आईटी का क्षेत्र हो या दूरसंचार हो।
भारतीय सॉफ्टवेयर्स की माँग पूरे विश्व में है। आईबीएम, माइक्रोसॉफ्ट, नासा सभी दूर भारतीयों ने अपनी अच्छी खासी उपस्थिति दर्ज कर देश का लोहा मनवाया है। विश्वविख्या त का र, फैश न आद ि कंपनियाँ देश में सक्रिय हो रही हैं। क्योंकि वे जानती हैं कि इनक े लिए जो बाजार हमें चाहिए भारत उनमें से एक है।
मोबाइल धारकों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। इस वृद्धि में तो भारत ने विकसित देशों को भी पीछे छोड़ दिया है। गाँवों का सड़कों और मोबाइल के माध्यम से शहरों से जुड़ना और आपस में जुड़ना 'विकास की रीढ़' है। निवेशकों का भारत के प्रति बढ़ता मोह, विकसित देशों से होने वाले करार आदि सिद्ध करते हैं कि हमारा भारत देश 'सोने की चिड़िया' कल भी था और आज भी है।
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विश्व व्यापार संगठन में भारत का दबदबा वर्ष दर वर्ष बढ़ता ही जा रहा है। विकसित देशों के आगे अब झुकने वालों में भारत नहीं रहा। अपनी बात को पुरजोर ढंग से रखना भी वह बेहतर जानता है। ईरान से पाइपलाइन परियोजना को अंतिम कार्य रूप देते ही ऊर्जा के क्षेत्र में नई क्रांति आ जाएगी।
भारत की आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में 7.7 फीसदी रहने की संभावना है जबकि पहले इसे 8.8 फीसदी तक होने का अनुमान था। कृषि की विकास दर पिछले वर्ष 4 फीसदी थी जोकि इस वर्ष केवल 2 फीसदी रहने का अनुमान है। इस वृद्धि पर मुद्रास्फीति का प्रभाव पड़ा। वर्तमान में मुद्रास्फीति की दर 12 फीसदी हो गई है जोकि पिछले 13 वर्षों में सर्वाधिक है।
देश के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मुद्रास्फीति अभी भी 13 फीसदी जा सकती है। इस मुद्रास्फीति का सीधा-सीधा संबंध उन रोजमर्रा की उपयोग में आने वाले खाद्य सामग्रियों से होता है जोकि आम आदमी प्रतिदिन जिसका आवश्यक रूप से उपभोग करता है। आज इस बात पर ध्यान देने की महती आवश्यकता है कि इन वस्तुओं की कीमतों में कमी की जाए और कौन से कारक हैं जिससे कि इन वस्तुओं के भावों में अप्रत्याशित वृद्धि पिछले कुछ महीनों में हुई और अभी भी हो रही है।
क्योंकि आज यदि इस स्थिति पर रोक नहीं लगी तो देश का धनाढ्य वर्ग तो और धनी हो जाएगा लेकिन निम्न और मध्यम वर्ग को दाल-रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ेगा। कार और मकान तो हमेशा ही उसके लिए सपना बनकर ही रह जाएगा।
खाद्य तेल, दालें, चावल, सब्जियाँ दैनिक घरेलू उपयोग में आने वाली सामग्रियों के भाव बेतहाशा क्यों बढ़े। यहाँ पर यह बात ध्यान में रखना जरूरी है कि इसका फायदा उत्पादक वर्ग तक भी नहीं पहुँचा। मतलब फायदा उठा रहे हैं मध्यस्थ। आढ़तियों और वायदा कारोबारियों ने। इन खाद्य सामग्रियों की माँग भी एकदम से बढ़ी नहीं, आपूर्ति में कमी हुई नहीं फिर क्या कारण रहा। आज जरूरत है इस पर रोक लगाने की य ा काफी हद तक नियंत्रण करने की।
क्योंकि आज यदि इस स्थिति पर रोक नहीं लगी तो देश का धनाढ्य वर्ग तो और धनी हो जाएगा लेकिन निम्न और मध्यम वर्ग को दाल-रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ेगा। कार और मकान तो हमेशा ही उसके लिए सपना बनकर ही रह जाएगा। आज दोनों वर्ग की खाई हमेशा से चली आ रही है, यह तो खत्म होगी नहीं और मैं इसे खत्म करने की उम्मीद भी नहीं कर रहा हूँ। लेकिन इसे कम करने के लिए तो कदम उठाए ही जा सकते हैं।
केंद्रीय वित्तमंत्री पी.चिदंबरम ने कर्ज के तले दबे किसानों के 65 हजार करोड़ के ऋण माफ कर उन्होंने कदम तो बहुत अच्छा उठाया है लेकिन उसे राजनीतिक लाभ लेने वाला ही ज्यादा माना जाएगा। इसके बजाय यदि केंद्र सरकार इन किसानों के लिए ऐसे उपाय करती कि उन्हें सीमा से बाहर जाकर यह ऋण लेना न पड़े तो ज्यादा बेहतर होता। इस बात में कोई दो मत नहीं कि आने वाला कल हमारा ही है, हम सतत उन्नति की राह पर बढ़ते जा रहे हैं। दुनिया की कोई ताकत हमारे देश को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती।
लेकिन व्यापार, कृषि के क्षेत्र में हो रही प्रगति को ध्यान में रखते हुए इन छोटी-छोटी लेकिन गंभीर समस्याओं पर भी विचार करना अति आवश्यक है। ताकि आर्थिक वृद्धि और समृद्धि का लाभ समाज के प्रत्येक वर्ग और कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति को मिल सके। तभी हम इस आजादी को जश्न के रूप में मनाने के सही हकदार होंगे। जय भारत। जय हिंद।