बौनों की दुनिया

गायत्री शर्मा
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1) भ्रष्टाचार के पेड़ पर
फरेब के पंछी की तरह
पली-बढ़ी है ये दुनिया ।
गरीबी, अशिक्षा और अंधविश्वास की आग में
हर दिन जली है ये दुनिया।
फिर भी सीना ताने कहती है ये दुनिया
दूसरों से कम दिलजली है ये दुनिया ।
बौने से लोग...

2) पश्चिम के रंगों में
रंगी है ये दुनिया।
तिरंगे की अर्थी पर
फूलों सी सजी है ये दुनिया।
हर दिन आसमाँ की ओर
तकती है ये दुनिया।
पर हकीकत में ज़मीं से ही
उठ नहीं सकती है ये दुनिया।
बौने से लोग..

3) आतंकी हमलों के भय से
सिमट जाती है ये दुनिया।
पर टीका-टिप्पणी और आलोचना में
खूब नाम कमाती है ये दुनिया।
दिन को बिलों में दुबककर
सोती है ये दुनिया।
रात को खूब हो-हल्ला मचाकर
रोती है ये दुनिया।
बौने से लोग....

4) परायों को जो
समझती है अपने।
अँधेरी रात में सजाती है जो
सुनहरे भविष्य के सपने।
जो भेद नहीं कर पाती
अपनों और परायों में।
दिन-रात खोई रहती है जो
अँधेरी रूह के सायों में ।
बौने से लोग...

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