सबसे बड़ा सवाल सुरक्षा

Webdunia
- नृपेंद्र गुप्ता

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देश को आजाद हुए 61 वर्ष हो गए मगर हम बुनियादी सुविधाओं के लिए आज भी संघर्ष कर रहे हैं। रोटी, कपड़ा और मकान के लिए जारी संघर्ष के बीच आम आदमी की सुरक्षा सबसे बड़ा प्रश्न बनकर उभरा है। 1947 से खुली हवा में साँस ले रहा भारतीय सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मोर्चो पर खुद असुरक्षित महसूस कर रहा है।

जयपुर, बेंगलुरु और अहमदाबाद जैसे महानगरों में लगातार हो रहे धमाके लोगों के दिल में सिहरन पैदा कर रहे हैं। लगातार ई-मेल में माध्यम से विस्फोटों की पूर्व सूचना मिलना, सूचना के बाद हाई-अलर्ट जारी होना और हाई-अलर्ट के बाद भी धमाके होने से लोगों का सरकार पर से विश्वास कम होने लगा है।

कभी जम्मू में बाबा अमरनाथ मुद्दे को लेकर भारत बंद होता है, तो कभी एक समुदाय संत रामरहीम से खफा होकर देशभर में प्रदर्शन करता है। आश्रम से बच्चों में लाशें मिलती है, मानव शरीर अंगों की तस्करी का कारोबार तेजी से फलता-फूलता नजर आता है।

आरक्षण की आग में पहले से जल रहे देश में राजस्थान से घी डाल जाता है, तो महाराष्ट्र के ठाकरे उत्तर भारतीयों के खिलाफ जंग छेड़ने का ऐलान करते हैं। हर शहर में आताताईयों का बोलबाला है, शहर जलते हैं और शहर के रखवाले तमाशा देखते हैं।

छोटी-छोटी बातों पर बंद, चक्काजाम और रेल रोको आंदोलन से भला कब जनता को लाभ हुआ है। हाँ इसका असर व्यापार पर पड़ता है, उत्पादन कम होता है, माँग बढ़ती है और महँगाई बढ़ती चली जाती है। इससे देश के विकास की ‍गति मंद हो जाती है।

ये कैसी आजादी हैं? और किसकी आजादी हैं? बंद के दौरान गरीब मजदूरों को काम करने से रोकने वाले आताताई स्वयं को जागरुक नागरिक बताते हैं। शिक्षकों को पिटने वाले गुंडे छात्र हितैषी कहलाते हैं। कितनी अजीब बात हैं जनहित की बात करने बाले रोड़ पर रहते हैं और जिसके हितों की बात की जा रही है, वह जनता दहशत के मारे घरों में दुबकी रहती है।

शायद यहीं कारण है कि बापू के देश में जनता छोटी-छोटी बातों पर हिंसक हो जाती है। कहीं किसी बच्चे को रोटी चुराने के आरोप में पिटा जाता है तो कहीं पुलिसकर्मियों के रवैये से असंतुष्ट भीड़ पुलिस थाना ही जला देती है। पुलिसकर्मी भी अब कहाँ सुरक्षित है। वह जगह-जगह स्वयं को असहाय महसूस करते हैं। भीड़ चाहे उन पर हमला करे या वो भीड़ पर फँसना उन्हें ही है।

आजादी से पहले अगर जनता की यह स्थिति होती तो हम कहते कि हम गुलाम हैं, मगर आज तो देश आजाद हैं। इस आजादी की रक्षा हमें करनी ही होगी। देश में उठ रहे सुरक्षा संबंधी सवालों के जवाब जल्दी ही खोजे जाने चाहिए, नहीं तो ये अराजकता हमें जीने नहीं देगी और हम अपनी स्वाधीनता पर गर्व करने की बजाए खुश रहने का नाटक करते नजर आएँगे।

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