आजादी के 61 वर्ष बाद कला

सारी दुनिया पर छा गए भारतीय रंग

रवींद्र व्यास
WDWD
बंगाल के अद्भुत चित्रकार यामिनी राय ने सालों पहले कहीं कहा था कि जब कोई मुझे मेरे चित्रों का पैसा देने लगता है तो मैं समझता हूँ यह सजा है। मेरे नसीब में कुछ गड़बड़ है। यानी उस वक्त उन्हें लगा था कि जिस कलाकार ने तमाम दुःखों को सहकर, अभावों में रहकर, जानलेवा संघर्ष किया, जीवन के जिस सौंदर्य को मनमोहक ढंग से रचा, उसे पैसा दिया जा रहा है।

तब उन्हें शायद किसी कलाकार को उसके चित्र के बदले पैसा देना कलाकार की गरिमा और सम्मान के खिलाफ नजर आता था। यानी जिस कलाकार के पैर धोकर पानी पीना चाहिए था, उसे पैसा दिया जा रहा है।
लेकिन वह एक ऐसा वक्त था जब कलाकार सिर्फ और सिर्फ अपनी एकांतिकता में दत्तचित्त होकर हमारे लिए उस दुनिया को रचने में ध्यानमग्न था जो आज हमारे लिए किसी भी मूल्यवान धरोहर से कमतर नहीं।

आजादी की सालगिरह के इस मौके पर यदि हमें देश की कोई विश्वसनीय, एकता में अनेकता की असल झाँकी के रंग देखना हों तो इस समय के चित्रकारों-मूर्तिकारों की कला को निहारना चाहिए। इन कलाकारों में न प्रचार की भूख थी, न पैसे की लालसा। बस, एक जिद्दी धुन कि मन का रचकर रचनात्मक संतोष हासिल करना है। कोई महत्वाकांक्षा नहीं, बस रचने की अनवरत पवित्र आकांक्षा।

सधी-सुंतलित रेखाओं और विविध रंगों में खिलते-धड़कते रचना संसार को, अपने कला संस्कार को, आने वाली पीढ़ी को विनम्रता से सौंप देने का अन्यतम भाव था। यह कला संस्कार उन्होंने अपनी जड़ों से हासिल किया। इसकी ताकत उन्हें अपने जन-गण-मन से मिली। वे इसी में रचे-बसे थे।
पहली बार, शायद १८९३-९४ में शिकागो में राजा रवि वर्मा के कुछ चित्रों की नुमाइश हुई। खूब सराही गई। ये चित्र पौराणिक-धार्मिक थे। उन्हें पुरस्कार हासिल हुआ और हमारे देश की आधुनिक कला को पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिला। उनकी ख्याति चारों तरफ फैल गई और भारतीय कला का उजाला सब टकटकी लगाए देखते रहे।

उसके बाद कलकत्ता के शांति निकेतन में गगेंद्रनाथ ठाकुर, रवींद्रनाथ ठाकुर, अवनींद्रनाथ ठाकुर से लेकर रामकिंकर बैज, नदंलाल बोस, विनोदबिहारी मुखर्जी जैसे कलाकार रचनारत थे। प्रोग्रेसिव आर्टिंस्ट ग्रुप में एमएफ हुसैन, फ्रांसिस न्यूटन सूजा, सैयद हैदर रजा, सदानंद बाकरे और आरा अपनी पगडंडी बना रहे थे तो बडोदरा में कलाकारों ने अपनी रचनात्मकता से माहौल को उर्वर बना रखा था।

जे. स्वामीनाथन, रामकुमार, तैयब मेहता भी अपनी राह पर दृढ़ता से चल रहे थे। भूपेन खक्खर, मनजीत बावा, जोगेन चौधरी जतिन दास,, केजी सुब्रमण्यम, रामेश्वर ब्रूटा ने अपने लिए नई जमीन और नया आसमान तलाशा। चैन्नई से लेकर बडोदरा, कलकत्ता से लेकर मुंबई तक कलाकार अपनी कल्पनाशीलता के नए रंग बिखेर रहे थे।
WDWD


रामकिंकर बैज से लेकर सदानंद बाकरे और ध्रुव मिस्त्री से लेकर नागजी पटेल जहाँ मूर्तिशिल्प में अपनी रचनात्मकता को पुष्पित पल्लवित करते रहे। हुसैन और सूजा आकृतिमूलक चित्रों में अपने बिलकुल अभिनव ढंग से अभिव्यक्त कर रहे थे। जे. स्वामीनाथन, रजा और रामकुमार ने अमूर्तन की राह पर चलकर अपना सिक्का जमाया। यह साठ का दशक था। इसमें कलकत्ता स्कूल से लेकर बड़ौदा स्कूल और प्रोग्रेसिव आर्ट ग्रुप के कलाकार भारतीय चित्रकला को शिखर पर ले जा रहे थे।

WDWD
इसमें कोई दो मत नहीं कि आजादी के बाद और विशेषकर पचास, साठ और सत्तर के दशक में भारतीय चित्रकला में जितनी विविधता थी, उतनी विविधता किसी भी देश के कला आंदोलन में नहीं रही। माध्यम से लेकर शैली, रंगों के बरताव से लेकर रेखाओं के रचाव जितनी ध्यानाकर्षी प्रयोगधर्मिता थी, वह अद्वितीय थी।


महत्वपूर्ण चित्रकार रजा ने यह बात कई बार दोहराई है कि यदि अगर आज कला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम करने वाले पाँच देशों की सूची बनाई जाए तो निश्चय ही उसमें भारत का नाम भी शामिल किया जाएगा। कहने की जरूरत नहीं इसमें प्रोग्रेसिव आर्ट ग्रुप के कलाकारों का योग सबसे ज्यादा है। और इसमें भी हुसैन का। यह नहीं भूला जाना चाहिए कि आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय चित्रकला की धाक है तो उसमें हुसैन का हिस्सा सबसे ज्यादा है।

एक समय रामायण और महाभारत पर चित्र-श्रृंखला बनाने वाले हुसैन ने अपनी पहली पेंटिंग तीस सौ रूपए में बेची थी आज यह कलाकार करोड़ों में खेलता है। अंतरराष्ट्रीय नीलामी संस्थाएं क्रिस्टीज और सादबीज जहाँ कहीं नीलामी करती हैं भारतीय चित्रकार करोड़ों डॉलर्स में बिकते हैं। तैयब मेहता की महिषासुरमर्दिनी पाँच करोड़ में बिकी, हुसैन की छह करोड़ में, रजा की चार करोड़ में, सूजा की तीन करोड़ में। ये चित्रकार पश्चिम के कला आंदोलनों से अच्छे खासे परिचित थे लेकिन इन्होंने अपनी भारतीयता की जमीन को कभी नहीं छोड़ा। इसीलिए हुसैन की पेंटिंग या रजा की पेटिंग, तैयब मेहता की पेंटिंग को देखकर सहज ही कहा जा सकता है कि ये ठेठ भारतीय चित्रकार हैं। इन्होंने आने वाली पीढ़ी के लिए रास्ता बनाया।


आज एक साथ कई पीढ़ियों के चित्रकार सक्रिय हैं। हुसैन और रजा, तैयब मेहता रामकुमार तो सक्रिय हैं ही, उनके साथ केजी सुब्रमण्यम, अंजली इला मेनन, सतीश गुजराल, जोगेन चौधरी, अर्पणा कौर से लेकर अतुल डोडिया, सुबोध गुप्ता सक्रिय हैं। ये नई राहों के अन्वेषी हैं। विजेंद्र शर्मा, संजीव भट्टाचार्यजी से लेकर युवा कलाकर मनीष पुष्कले, सुजाता बजाज और अन्य कलाकारों ने ने मूर्त-अमूर्त, इंस्टालेशन, मूर्तिशिल्प में अपनी अनोखी कल्पनाशीलता से भारतीय चित्रकला को नए आयाम दिए हैं।

यही कारण है कि आज न्यूयॉर्क में समकालीन भारतीय चित्रकला को ध्यान में रखकर गैलरी खोली जा रही हैं। विदेशों में भारतीय चित्रकारों की एकल और समूह प्रदर्शनियाँ आयोजित की जा रही हैं। यदि हुसैन करोड़ों में बिक रहे हैं तो नए से नया कलाकार २५ हजार से लेकर लाखों में बिक रहा है। अतुल डोडिया की किचन पेंटिंग एक करोड़ में बिकी। जाहिर है अब भारतीय चित्रकारों ने देश में ही नहीं विदेशों में भी अपनी रचनाशीलता की धाक जमाई है।


प्रयोग किए जा रहे हैं, नए माध्यम तलाशे जा रहे हैं, गैलरीज खुल रही हैं, बेहतरीन कैटलॉग बनाए जा रहे हैं और भारतीय चित्रकारों का एक बड़ा कला बाजार भी बन गया है। और अब उन्हें कीमत भी मिल रही है। इस बढ़ते-फैलते बाजार और कलाकारों की पौ-बारह की अपनी खूबियाँ-खासियत है और इसकी कई खामियाँ भी हैं। लेकिन यह बहस का एक अलग मुद्दा है। आज तो भारतीय चित्रकला शिखर पर है और भारतीयता के रंग पूरी दुनिया पर छा गए हैं। आज इन्हें सैल्यूट करने का मौका है।
Show comments

क्या दर्शाती है ‘लापता लेडीज’ की ऑस्कर में एंट्री, जानिए क्या है फिल्म की सबसे बड़ी USP

ऑयली बालों के चिपचिपेपन से हैं परेशान? जानें इस Festive Season में घर बैठे कैसे पाएं Oil Free Hairs

नवरात्रि में चेहरे की चमक को बनाए रखेंगी ये 5 गजब की Festive Skincare Tips

नहीं सूझ रहा बेटे के लिए बढ़िया सा नाम, तो ये हैं कुछ नए और यूनीक आइडिया

Navratri Food 2024: नवरात्रि में फलाहार के 5 खास आइटम

पार्टनर से मैसेज पर भूलकर भी न करें ये 5 बातें, रिश्ते में घुल सकती है कड़वाहट

क्या है कांजीवरम साड़ी की कहानी, दक्षिण भारत की बुनाई में घुलती सोने-चांदी की चमक

Bhagat Singh Jayanti 2024: शहीद भगत सिंह के 20 क्रांतिकारी विचार, आपका जीवन बदल देंगे

भगत सिंह की जयंती आज, जानें वीर सपूत की 5 अनसुनी बातें

World Heart Day 2024 : हृदय रोगों की समस्या से छुटकारा पाने के लिए बहुत फायदेमंद है लहसुन, जानिए खाली पेट लहसुन खाने के फायदे