हमें क्रोध क्यों नहीं आता ?

स्मृति आदित्य
WDWD
जी हाँ, स्वतंत्र हैं हम। इस देश में स्वतंत्रता दिवस की वर्षगाँठ मनाने की हम सबको स्वतंत्रता है। स्वतंत्रता हम यूँ भी हर मायने में हासिल कर चुके हैं। स्वतंत्रता भ्रष्टाचार की, स्वतंत्रता अपशब्दों की बौछार की, स्वतंत्रता अनैतिकता की और स्वतंत्रता स्त्री अपमान की या‍ फिर कहीं भी बम ब्लास्ट की? पिछले दिनों प्रश्नों और प्रतिक्रियाओं की भीड़ के बीच रह गए कुछ ऐसे प्रश्न जो मानस को उद्वेलित- उत्तेजित करने में पर्याप्त सक्षम थे किंतु अफसोस कि ना तो हम उद्वेलित हुए ना उत्तेजित ।

राष्ट्र और देश इन दो शब्दों का उच्चारण इस पवित्र दिवस पर सबसे ज्यादा किया जाएगा। और इनका सर्वाधिक इस्तेमाल वे नेता लोग करेंगे जो इसकी गहराई तक कभी नहीं पहुँचे। कोई तो बताए इन 'बिकाऊ' नेताओं को देश और राष्ट्र में क्या अंतर है।यह अंतर कितना गहरा और गंभीर है।

वास्तव में देश भौ‍गोलिकता से बनता है, नदियों, पर्वतों और प्रादेशिक सीमाओं से बनता है किंतु राष्ट्र तब बनता है जब उस भूगोल में रहने वाले लोग पारस्परिकता की भूमिका निभाते हुए एक-दूसरे के साथ रहने का रोज संकल्प करते हैं।कटु सत्य यह है कि स्वतंत्रता के पश्चात हर दिन किसी न किसी बात पर, किसी न किसी क्षेत्र में यह राष्ट्र टुकड़ों में बँटा है, बिखरा है।

इस तथ्य से कौन अवगत नहीं होगा कि जब हम टुकड़ों में बिखर जाते हैं तो सारी जगह चली जाती है। अफसोस कि इस बिखराव के जिम्मेदार वह नेतागण रहे जिन्हें देश को जोड़ने का दायित्व सौंपा जाता है ।

इस देश के नेताओं ने निरंतर अपनी साख और विश्वसनीयता खोई है। यदि इनसे संबंधित कोई राष्ट्रीय सर्वेक्षण कराया जाए तो जनता का आश्चर्यजनक रोष सामने आएगा। नेताओं के चरित्र में अब 'चरित्र' ही नदारद है ।

यदि नेता (इन्हें 'हमारे' लिखने का मन नहीं होता) जीवननिष्ठ होते तो उनके शब्द स्वयं प्रेरणा देते। उनके ओजस्वी शब्द गंगोत्री की रचना करते जहाँ से सुविचारों की गंगा प्रवाहित होती। और उस गंगा से समाज, संस्कृति, भाषा और जनमानस सभी को पोषण मिलता लेकिन इस इस देश के नेतृत्व का सार्वजनिक चरित्र निष्कलंक नहीं रहा यह तथ्य पीड़ा से अधिक क्रोध को जन्म देता है ।

जब तक यह क्रोध व्यक्तिश: न रहकर जनता का नहीं बन जाता। तब तक किसी क्रांतिकारी परिवर्तन की उम्मीद नहीं की जा सकती। होते रहेंगे सीरियल ब्लास्ट और बैठे रहेंगे हम कर्फ्‍यू के साये में टीवी के सामने। सबसे ज्यादा क्रोध का विषय यही है कि हमें क्रोध क्यों नहीं आता ।

हमारी सामाजिक सुरक्षा दाँव पर लगी है और हम अपने ही निहित स्वार्थों में उलझे हुए हैं? क्या कभी इस देश को ऐसे नेता की सौगात मिलेगी जो सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता रखते हों, जो व्यक्तित्व में दबंग हों और विचारों से प्रखर!
स्वतंत्रता दिवस पर यही कामना है कि आज नहीं तो कल पर ऐसा हो अवश्य!

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