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स्वतंत्रता दिवस: कालापानी क्या है, वहां जाने से क्यों कांपते थे कैदी?

WD Feature Desk
गुरुवार, 7 अगस्त 2025 (17:39 IST)
kala pani jail strange story: जब भी हम भारत की आजादी की बात करते हैं, तो हमारे जहन में कई क्रांतिकारियों की छवियां उभरती हैं, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आज़ाद और न जाने कितने अनाम सेनानी, जिन्होंने देश को आजादी दिलाने के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए। लेकिन इन वीरों की कुर्बानियों के साथ एक और नाम आता है, कालापानी, जिसे सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कहते हैं कालापानी वह जेल हैं जहां के कैदी अंधेरी कोठरियों में भी उजाला ढूंढ़ते थे। सेल्युलर जेल या कालापानी अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर (श्री विजया पुरम) में स्थित वह जेल है, जिसे अंग्रेज़ों ने भारत के क्रांतिकारियों के लिए नरक बना दिया था। आज, स्वतंत्रता दिवस के मौके पर, आइए जानते हैं कि कालापानी क्या था और क्यों वहां भेजे जाने का नाम सुनकर ही कैदियों की रूह कांप उठती थी।
 
कालापानी: सिर्फ एक जेल नहीं, बल्कि यातनाओं का प्रतीक
'कालापानी' नाम सुनते ही समुद्र से घिरे उस भयावह स्थान की छवि उभरती है, जहां तक पहुंचना ही मौत के बराबर माना जाता था। ‘काला’ का अर्थ है अंधेरा, और ‘पानी’ यानी समुद्र, यानी ऐसा स्थान जहां आशा और रोशनी की कोई किरण नहीं बचती थी। यह जेल ब्रिटिश शासन द्वारा 1906 में अंडमान के पोर्ट ब्लेयर में बनाई गई थी, जहां भारत के सबसे खतरनाक समझे जाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को भेजा जाता था।
 
कालापानी क्यों था इतना खतरनाक?
कालापानी सिर्फ जेल नहीं थी, बल्कि एक मानसिक, शारीरिक और सामाजिक यातना केंद्र था। यहां भेजे गए कैदियों को समाज से हमेशा के लिए काट दिया जाता था। उन्हें ऐसा लगता था जैसे अब उनका जीवन समाप्त हो चुका है।
 
भौगोलिक स्थिति: यह जेल भारत की मुख्य भूमि से हजारों किलोमीटर दूर समुद्र के बीच स्थित थी। यहां से भागना असंभव था, चारों तरफ समुद्र, घने जंगल, और मच्छरों से भरी दलदली ज़मीन।
 
एकांत कारावास की संरचना: सेल्युलर जेल को इस तरह बनाया गया था कि हर कैदी को अलग कोठरी में रखा जाए। एक दूसरे से बात करना भी मुमकिन नहीं था। अकेलेपन से कई कैदी मानसिक बीमार हो जाते थे।
 
अमानवीय सजाएं: कैदियों को दिनभर कोल्हू में तेल निकालने के लिए बैल की तरह जोता जाता था। खाने में बासी चावल और नमक वाला पानी दिया जाता था। विरोध करने पर कोड़े मारे जाते, उल्टा लटकाया जाता, भूखा रखा जाता।
 
स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव: बीमार कैदी बिना इलाज के तड़पते थे। गर्मी, उमस और गंदगी के कारण मलेरिया, पेचिश जैसी बीमारियां आम थीं। एक बार जो बीमार पड़ा, उसके लिए मौत लगभग तय मानी जाती थी।
 
किन क्रांतिकारियों को भेजा गया था कालापानी?
कालापानी में भारत के कई महान स्वतंत्रता सेनानियों को भेजा गया था। इनमें प्रमुख नाम हैं:
 
वीर सावरकर- जिन्होंने कालापानी में रहकर 'हिंदुत्व' और '1857 की क्रांति' जैसी रचनाएं लिखीं। सावरकर को दो बार आजीवन कारावास की सज़ा मिली थी।
 
बटुकेश्वर दत्त- भगत सिंह के साथी, जिन्होंने असेंबली में बम फेंका था।
 
योगेंद्र शुक्ल, बरिन घोष, माणिक चंद्र नायक, त्रैलोक्य नाथ चक्रवर्ती जैसे कई वीर सेनानियों ने यहां अनगिनत यातनाएं झेली थीं।
 
जब आत्मा भी टूट जाती थी: कालापानी की सबसे खतरनाक सजा थी, 'मानसिक पीड़ा'। जब किसी को बिना किसी से बोले, बिना इंसानी स्पर्श के, सालों तक बंद रखा जाए, तो वह धीरे-धीरे टूट जाता है। वहां की सन्नाटे में कैदी अपनी ही आवाज़ से डरने लगते थे। यही वजह थी कि कई क्रांतिकारियों ने आत्महत्या तक कर ली।
 
फिर भी नहीं टूटी थी हिम्मत: हालांकि परिस्थितियां नर्क से भी बदतर थीं, फिर भी हमारे क्रांतिकारी झुके नहीं। वीर सावरकर जैसे सेनानियों ने जेल की दीवारों पर नाखूनों से कविताएं लिखीं, दूसरों का हौसला बढ़ाया और अंग्रेज़ों की साजिशों के खिलाफ खड़े रहे। उनकी यह अटूट इच्छाशक्ति और देशभक्ति ही थी, जो आज हमें आजादी की सांस लेने का मौका देती है। 


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