कितने 'आजाद' हैं हम आज 'स्वतं‍त्र' भारत में?

राजश्री कासलीवाल
भारत हमारा 'स्वतंत्र' देश। जिसके स्व‍तंत्र सुनने के आभास से ही हमारा मन हिलौरे भरने लगता है, एक सपनोंभरी उड़ान की धारा मन में बहने लगती है। काश! यही सच होता और हम स्वतंत्रता के इस अनुभव को कुछ फिल्मी तरीके से ही सही, कुछ समय के लिए उसमें समा सकते। 


 
कहने को तो हम स्वतंत्र देश में रहते हैं, हम दर्शाते भी ऐसा ही हैं कि हम जैसे स्वतंत्र विचारों वाले, खुली सोच वाले, खुले दिल वाले इंसान इस‍ दुनिया में और कोई नहीं है। लेकिन हकीकत पर जब हम गौर करें तो नजारा कुछ और ही होता है, कुछ और ही दिखाई पड़ता है।
 
जी हां! यह बात कटु जरूर है, लेकिन सत्य है। जहां आज हम 69वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारियां कर रहे हैं, वहीं इसमें बहुत कुछ परतंत्र भी है। इतने सालों की आजादी के बाद भी हम वास्तव में आजाद नहीं हुए हैं। कहने को, सुनने को हम आजाद दिख सकते हैं, लोगों के सामने अपनी प्रशंसा दिखाने और प्रशंसा पाने के लिए ऐसा भ्रम भी रच सकते हैं। लेकिन यह पूरी तरह सत्य नहीं हैं। 


 
आज भी आप भारत देश के किसी भी‍ कोने में चले जाएं, कहीं न कहीं इस बात की सत्यता को जरूर परखेंगे। चाहे वो बात नेता-राजनेताओं, हमारे घर-परिवार, रिश्तेदारों की बात हो या फिर वर्किंग कल्चर की बा‍त हो। इस बात को आप नकार नहीं पाएंगे कि वास्तव में जो दिखता है, वैसा होता नहीं है...। 
 

 

जब हमारा देश भारत अंग्रेजों के अधीन था, उस समय हर आदमी के जीवन का उद्देश्य भार‍‍त को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने का था। तब उनके पास इसके अलावा और कुछ भी सोचने के लिए नहीं था। आज स्वंतत्र भारत का परिदृश्य ही कुछ और है।


 
इस स्वतंत्र भार‍त में बातें तो हम स्वतंत्रता की बहुत करते हैं चाहे बात दिल्ली गैंगरेप कांड (एक बस में बलात्कार की शिकार हुई पैरामेडिकल छात्रा) की हो या हरियाणा के खाप पंचायत की हो, या फिर हर रोज छोटी-बड़ी बालिकाओं, युवतियों या सरेराह छेड़छाड़ की शिकार होने वाली महिलाओं की हो। धनलोभियों द्वारा दहेज के लिए दी जाने वाली नारियों की बलि की हो, उन्हें टॉर्चर करना, मारना-काटना, जलाना- ये सब भार‍त के आम परिदृश्य हैं।

यहां तक कि उन्हें आत्महत्या जितना बड़ा घा‍तक कदम उठाने के लिए मजबूर करना और समाज को यह दिखाया जाना कि वह अपनी जिंदगी से परेशान थी इसलिए उसने इतना बड़ा कदम उठाया है। कहीं भी नजरें उठाकर देख लीजिए इसमें स्वतंत्रता कहां दिखाई पड़ रही है? 
 
आज के इस बदलते युग में एक ओर जहां युवतियां/नारियां हर मामले में पुरुषों की बराबरी कर रह‍ी हैं, वहीं आज भी कई घर ऐसे हैं जिसमें नारियों की वह बराबरी पुरुषों को, उनके घर वालों को रास नहीं आती। आज भी महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों में कोई कमी नहीं आई है। आज भी भार‍‍त में दंगे-फसाद होते ही रहते हैं। कई आतंकवादी संगठन गलत चीजों का इस्तेमाल करके भार‍त और उसकी स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते रहते हैं। इससे कई घर, कई परिवार, कई गांव-कस्बे, कितने ही इंसान तबाह हो रहे हैं। 
 



 
 

एक तरफ सत्ताधारी नेताओं द्वारा अपराधियों के साथ ‍किए गए गठजोड़ कई असामाजिक कार्यों को अंजाम दे रहे हैं फलस्वरूप दंगों, विस्फोटों और दुर्घटनाओं से देश त्रस्त है और बात करते हैं स्वतंत्रता की।


 

इन दंगों, बम विस्फोटों में जो भी मरे, जिनका भी नुकसान हुआ उससे किसी को कोई लेना-देना नहीं है। इससे देश के उन सफेदपोश नेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता, न ही वे इसमें अपनी रुचि दर्शाते हैं। बस थोड़े दिन अपने भाषणों में आतंक और उन हमलों की निंदा करके वे अपने आपको बचाने में सफल हो जाते हैं। 
 
आज भी स्वतंत्र भार‍त पर एक प्रश्नचिह्न लगा हुआ है! अगर सचमुच भारत देश स्वतंत्र है, आजाद है तो फिर उस आजादी की, उस स्वतंत्रता की सही मायने में क्या परिभाषा होनी चाहिए, यह आम आदमी की सोच से परे है। 
 
स्वतंत्रता का अर्थ यह कतई नहीं है कि स्वच्छंद होकर मनमानी की जाए। अपनी मर्यादा को भूलकर सरेआम अनैतिक कृत्य किए जाएं। देश के सभी लोग स्वतंत्रता का सही-सही आशय समझें। नेता वर्ग और आम जनता भी अपनी सीमाएं खुद तय करें। पराए बेटा-बेटी को भी दिल से अपना मानें। क्या सही क्या गलत- यह करने से पूर्व सोचें तभी स्वतंत्रता का असली आनंद उठाया जा सकता है। और फिर तब हम गर्व से कह सकेंगे कि 'हम भारतीय होने के साथ-साथ स्वतंत्र भी हैं।'
 
आज बस इतना ही...! 
 
स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र देशवासियों को मेरा शत्-शत् नमन...!
 
जय हिन्द! 
जय भारत! 
मेरा भार‍‍त महान... था, है और हमेशा रहेगा। 

 

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