मेरा भारत महान : एक हकीकत या फसाना।

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निवेदिता भारती 
 
किसी भी दिन का अखबार उठाकर देख लिया जाए चोरी, डकैती, हत्या, लूट, बलात्कार, संसद, घोटाले, भ्रष्टाचार और दुर्घटनाएं की खबरें हर रोज आपके दरवाजे पर दस्तक देती हैं। मेरा भारत महान है या मुश्किलों की खान। हर दूसरे नागरिक का जवाब होगा बल्कि दस में से नौ लोग कहेंगे भारत तो रहने लायक ही नहीं बचा है। अगर बुजुर्गों से पूछा जाए तो उनका जवाब होगा हमारे समय में चीजें बहुत बेहतर थीं। कुछ तो कहेंगे कि इससे तो अंग्रेजों का जमाना ही बेहतर था। 

जब देश अपनी आजादी की 69 वीं वर्षगांठ मना रहा है ऐसे समय में भारत जैसे देश को उसके अपने ही नागरिकों द्वारा कोसा जाना बहुत बुरा लगता है। गहराई से विचार किया जाना बेहद आवश्यक है। कहते हैं अतिआत्मविश्वास या खुद को कमतर आंकना दोनों ही स्थितियां हानिकारक होती हैं। यही हमारे देश के साथ हो रहा है। हमारे देश में या तो लोग देश की बुराई सुनना पसंद ही नहीं करेंगे या खुद इतनी कमियां निकालेंगे की सामने वाले को लगेगा इससे बदतर जगह तो रहने के लिए कोई हो ही नहीं सकती। 
 
हर एक इंसान अपने आसपास की परिस्थितियों और खुद के हालात के अनुरूप देश के हालात की गणना कर सकता है। निसंदेह हमारे देश में गांव पिछड़े हुए हैं और अगर उनसे बात की जाए तो देश किसी भी हिसाब से महान नहीं है बल्कि यहां रहना दुनिया का सबसे मुश्किल काम है। पानी, सड़कें, बिजली, रोजगार, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य, बेहिसाब मुश्किलें और बहरी सरकारें। 

छोटे शहरों की तरफ रूख करें तो समस्याएं थोड़ी कम हैं परंतु फिर भी लोग हद दर्जे तक नाखुश हैं। बड़े शहरों में बढ़ती भीड़ और रहने के लिए घटती जगह के चलते हर दिन लोगों को मुश्किलों से दो चार होना पड़ता है। नतीजा पूरे देश की एक ही आवाज मेरा भारत महान एक फसाना है ऐसा सपना है जो कहीं से भी सच होता नहीं दिख रहा है।

लोकतंत्र, मतलब जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए शासन लेकिन जनता ही कहती है कि देश में समस्याएं हैं। बावजूद इसके जब 15 अगस्त आता है तो हम अपने दिलों में इस समस्याग्रस्त देश के लिए असीम प्यार महसूस करते हैं। किंतु अब वक्त आ गया है कि इस देश के प्रति अपने इस प्यार को कुछ नैतिक आधार भी दें। 
 
गुलामी के दिनों में अंग्रेजों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बिल्कुल बर्बाद कर दिया था। आजादी के समय भारत के आर्थिक हालात हद दर्जे तक खराब हो चले थे। धीरे-धीरे देश ने उठना शुरू किया। देश में छोटे और बड़े उद्योगों की शुरूआत हुई। दुनिया के देशों के साथ समझौते और व्यापार को बढ़ावा मिलता गया। 

हरित क्रांति और श्वेत क्रांति जैसे बड़े कदमों से इस विशाल देश के लोगों को अनाज और दूध उत्पादन मिलने लगा। देश के नागरिक चांद पर पहुंचे और मंगल पर जाने का सपना आंखों में खिलने लगा। परमाणु परीक्षण से देश की सुरक्षा में जबरदस्त बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। यहां के नागरिक खुद की सुरक्षा को लेकर आश्वस्त होते गए।


धीमे ही सही, देश में दूरदराज इलाकों में विभिन्न योजनाओं के तहत सड़कें बनाई जा रही हैं। स्कूल खोले जा रहे हैं। अस्पताल खुल रहे हैं। यहां के कर्मचारियों को तकनीक से जोड़ा जा रहा है जिससे उनकी उपस्थिति और सेवा पर नजर रखी जा सके। सरकारी स्कूलों में बच्चों को शिक्षा के साथ भोजन देने की व्यवस्था शुरू की जा चुकी है। शौचालय को लेकर सोच बदलने की कोशिश भी शुरू हो चुकी है। 
 
सारी बातों को तौलने के बाद हम सभी को यह समझना जरूरी है कि देश आजादी के समय एक बहुत गरीब राष्ट्र था और इसके बाद 68 सालों में देश ने निसंदेह अपनी स्थिति में आमूलचूल सुधार किया है। हम इस बात को भी मानते हैं समस्याएं बहुत हैं और बेहद गहरी हैं परंतु प्रयास भी जारी हैं। विदेशों में भी भारत का अपने पड़ोसी मुल्कों के मुकाबले बहुत अधिक सम्मान है। हम सभी इस देश के नागरिक हैं और इस स्वतंत्रता दिवस पर बेझिझक कह सकते हैं कि 'मेरा भारत महान' है। 

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