बीआईएस के जनसंपर्क विभाग के निदेशक एचएल कौल ने बताया कि बीआईएस राष्ट्रीय ध्वज निर्माण के लिए लाइसेंस प्रदान करता है और उसके लिए मानक तय करता है। मानकों में उचित रंग, उचित आकार और उचित कपड़े का इस्तेमाल सुनिश्चित किया जाता है।
1951 में भारत के गणतंत्र बनने के बाद इंडियन स्टैंडर्डस इंस्टीट्यूट (अब बीआईएस) ने पहली बार आधिकारिक रूप से ध्वज की रूपरेखा तय की थी। इसमें बाद में 1964 और 17 अगस्त 1968 को संशोधन किया गया।
विशेषज्ञों के अनुसार, राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण में हाथ से बुनी खादी या कपड़े का ही इस्तेमाल किया जा सकता है तथा किसी भी अन्य सामग्री से बने राष्ट्रीय ध्वज को फहराने पर कानून के तहत सजा का प्रावधान है।
ध्वज में दो प्रकार की खादी का इस्तेमाल होता है। एक प्रकार की खादी से ध्वज बनाया जाता है तो दूसरी मोटी खादी से झंडे को स्तंभ से बांधने के लिए उसकी मोठी गोठ बनाई जाती है। यह गेहूंए रंग की होती है।
इस समय हुबली स्थित कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ को ही केवल राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण का लाइसेंस हासिल है। खादी विकास और ग्रामोद्योग आयोग ही देश में राष्ट्रीय ध्वज निर्माण यूनिट स्थापित करने की अनुमति प्रदान करता है, लेकिन नियमों का उल्लंघन होने पर बीआईएस इस लाइसेंस को रद्द करने का अधिकार रखता है।
एक बार राष्ट्रीय ध्वज के लिए कपड़ा बुने जाने पर उसे परीक्षण के लिए बीआईएस प्रयोगशाला में भेजा जाता है। गुणवत्ता की जांच होने पर, यदि मंजूरी मिल जाती है तो उसे वापस फैक्टरी में भेजा जाता है। इसके बाद इस कपड़े को तीन हिस्सों में बांटकर केसरिया, सफेद और हरे रंगों में रंगा जाता है। अशोक चक्र की स्क्रीन प्रिंटिंग होती है।
तत्पश्चात बीआईएस रंगों की जांच करता है और केवल उसके बाद ही राष्ट्रीय ध्वजों को बेचने के लिए बाजार में भेजा जाता है। इस प्रकार पूरी होती है हमारे राष्ट्रीय ध्वज की यात्रा।