जनक पलटा, कर्म ही जिनकी पहचान है...

वृजेन्द्रसिंह झाला
डॉ. जनक पलटा मगिलिगन उनका पूरा नाम है, मगर वे लोगों के बीच जनक दीदी के नाम से मशहूर हैं। वर्ष 2015 में उन्हें सामाजिक कार्यों के लिए पद्‍मश्री सम्मान से अलंकृत किया गया। 1948 में पंजाब की माटी में पैदा हुईं जनक दीदी के व्यक्तित्व में संघर्ष कूट-कूटकर भरा है।
 
जीवन में कई बार विषम परिस्थितियां भी आईं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और समाज के पिछड़े तबके खासकर महिलाओं को आगे लाने के लिए सतत कार्य करती रहीं। सैकड़ों महिलाओं को उन्होंने निरक्षरता से मुक्ति दिलाकर आजादी के नए मायने दिए। 67 वर्ष की उम्र में भी वे इंदौर के समीप ग्राम सनावदिया में पूरी ऊर्जा के साथ समाजसेवा के कामों में संलग्न हैं।
 
वहां वे युवाओं और महिलाओं को विभिन्न रोजमूलक प्रशिक्षण देती हैं। दीदी बहाई धर्म के मास्टर (संस्थापक) बहाउल्ला के वचनों को अपने जीवन का ध्येय वाक्य मानती हैं- 'हृदय आत्मा संग तू, कर संघर्ष महान, कर्म ही तेरे देंगे तुझे, एक अलग पहचान।' ...और वाकई उन्होंने अपने कर्मों से इन पंक्तियों को सार्थक भी कर दिया। 
आखिर आजादी के मायने क्या हैं? फिल्म 'जागृति' एक चर्चित गीत 'हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के...' गुनगुनाते हुए दीदी कहती हैं कि हमें आजाद रखने के लिए हमारे क्रांतिकारियों ने, स्वतंत्रता सेनानियों ने शहादत दी। मगर इस आजादी को बचाए रखने के लिए हमें भी सुधरना होगा। संस्कृति और संस्कारों की रक्षा के साथ ही जीवन शैली की गरिमा भी बनाए रखनी होगी। हम पर्यावरण की रक्षा करें, कहीं भी कचरा न फेंके, ये छोटी छोटी बातें हैं, मगर इन्हें जीवन में उतारकर देश और समाज के लिए अच्छा काम कर सकते हैं। भ्रष्टाचार और बलात्कार की घटनाएं मन को दुखी करती हैं। 

श्रीमती पलटा कहती हैं कि अधिकारों के साथ हमें कर्तव्य भी याद रखने चाहिए। जाति, धर्म, वर्ग, भाषा, लिंग के आधार पर किसी के भी साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। हम जीतने का भरसक प्रयास करें, लेकिन दूसरों को हराने की कोशिश न करें। मानवीय मूल्यों से कभी समझौता न करें। राष्ट्रीय प्रतीकों का सदैव सम्मान करें। डॉ. कलाम का उदाहरण देते हुए जनक दीदी कहती हैं कि वे विशिष्ट व्यक्ति थे मगर उन्होंने अपना पूरा जीवन आम आदमी की तरह जिया। जीवन में कभी भी समझौता नहीं किया। उनके जीवन से सभी देशवासियों को प्रेरणा लेनी चाहिए।
 
डॉ. पलटा ने वर्ष 1985 में ग्रामीण एवं औद्योगिक विकास अनुसंधान केन्द्र, चंडीगढ़ में शोध-फैलो पद से त्यागपत्र देकर इंदौर में बरली ग्रामीण महिला विकास संस्थान स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहां 26 वर्ष की सेवा के दौरान 6000 से ज्यादा आदिवासी और ग्रामीण महिलाओं को प्रेरित करके उन्हें सबल बनाया है, जिनमें से अधिकांश मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और भारत के अन्य राज्यों के 500 गांवों से सर्वाधिक निरक्षर तथा सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े परिवेश से आती हैं।
 
इतना ही नहीं जनक दीदी ने नारू (गिनी वर्म) से प्रभावित झाबुआ जिले के 302 गांवों से नारू के सफल उन्मूलन में अपना योगदान दिया तथा वर्ष 1987-88 में उन गांवों में 302 दिनों तक रहकर स्थानीय लोगों को इस रोग से मुक्त होने का प्रशिक्षण भी दिया। इसी के परिणामस्वरूप 1992 में रिओ डि जेनेरियो में पृथ्वी सम्मेलन के दौरान बरली संस्थान को 'ग्लोबल 500 रॉल ऑफ ऑनर' से सम्मानित किया गया।
 
सम्मान एवं पुरस्कार : वर्ष 2001 में आपको उत्कृष्ट महिला सामाजिक कार्यकर्ता पुरस्कार, राष्ट्रीय अम्बेडकर साहित्य सम्मान और ग्रामीण एवं जनजातीय महिला सशक्तिकरण पुरस्कार, वर्ष 2005 में महिला समाज सेवी सम्मान तथा वर्ष 2006 में जनजातीय महिला सेवा पुरस्कार प्राप्त हुआ।
 
वर्ष 2008 में मध्यप्रदेश सरकार ने 'राजमाता विजयराजे सिंधिया समाजसेवा पुरस्कार' से सम्मानित किया। 2010 में लक्ष्मी मेनन साक्षरता पुरस्कार, 2011 में नवोन्मुखी सामाजिक शिक्षक पुरस्कार, 2012 में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड तथा 2013 में सौहार्दता पुरस्कार के साथ साथ वूमन ऑफ सब्सटेंस अवॉर्ड भी मिला। 

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