सिगरेट के पैकेट पर लिखा था 'ऐ मेरे वतन के लोगों' का मुखड़ा

- सुनील जैन

Webdunia
FILE
नई दिल्ली। महान गीतकार व कवि प्रदीप ने देशभक्ति के प्रयाय बन चुके अमर गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों' का मुखड़ा मुंबई में समंदर के पास टहलते हुए सिगरेट के एक खाली पैकेट पर लिखा था। समुद्र तट पर टहलते-टहलते उनके जहन में इस गीत का मुखड़ा कौंधा, झट से उन्होंने सामने एक पान विक्रेता से वहां पड़ा सिगरेट का खाली पैकेट व पेन लिया और आनन-फानन मे लिख डाला यह नायाब मुखड़ा।

प्राप्त जानकारी के अनुसार चीन से धोखे में मिली हार और शहीद शैतानसिंह व अन्य शहीदों की शहादत उनके जहन में कई दिनों से उथल-पथल मचा रही थी उसी जज्बे को उन्होंने इस गीत में पिरोया, विशेषकर गीत की यह पंक्ति 'दस-दस को एक ने मारा, जब अंत समय आया तो' उसी उथल-पुथल मे वे घर लौटे और घर आकर उन्होंने गीत पूरा किया।


उन्होंने संगीतकार सी. रामचंद्र से इस गीत को संगीतबद्ध करने का आग्रह किया व लता मंगेशकरजी की आवाज में रिकॉर्ड कराया। ये वही गीत है जिसने देशवासियों को चीन से हार के बाद एक नया हौसला, बल और एक नया जोश दिया था।

कवि प्रदीप के अन्य देशभक्ति गीत पहले ही लोगों की जबान पर चढ़ चुके थे और ये गीत देशभक्ति का सरताज गीत बन गया। जनवरी 1964 में जब ये गीत लताजी ने दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में पंडित नेहरू के सामने एक जनसभा में गाया तो नेहरूजी की आंख में आंसू भर गए।

उन्होंने लताजी से पूछा कि ये गीत किसने लिखा है जब उन्हें पता लगा की इसके गीतकार कवि प्रदीप हैं जो कि उस कार्यक्रम में मौजूद नहीं थे तब उन्होंने कवि प्रदीप से मिलने की इच्छा जाहिर की। कवि प्रदीप से नेहरूजी मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान मिले और उन्होंने प्रदीपजी को इस गीत पर बधाई दी। नेहरूजी ने प्रदीपजी को बताया कि आपके लिखे कई गीत इन्दू (इंदिरा गांधी ) अक्सर गुनगुनाती हैं।


प्रदीपजी के मशवरे पर इस गीत का पारिश्रमिक गीत से जुड़े किसी भी व्यक्ति ने नहीं लिया। सारा पैसा शहीदों के परिवारों व अन्य फौजियों को दिया गया। प्रदीपजी का कहना था की 'जिस गीत के चारों तरफ देश के प्रधानमंत्री के आंसुओं की झालर पहना दी है अब वो गीत हमारा नहीं रहा, पूरे राष्ट्र का हो गया है।

गौरतलब है कि कवि प्रदीप का असली नाम 'रामचन्द्र नारायणजी द्विवेदी' था। उनका जन्म 1915 में मध्यप्रदेश के उज्जैन में हुआ था। फिल्मों में आने से पहले वे कवि सम्मेलनों की शान बन चुके थे। उनकी कविताओं गीतों व उनकी ओजस्वी शैली ने अपना रूतबा कायम कर लिया था।

उनके देशभक्ति गीत 'दूर हटो ए दुनिया वालोँ' ने अंग्रेज सरकार की नींद उड़ा दी थी और उनकी गिरफ़्तारी के वारंट निकल दिए गए थे और काफी दिनों तक गिरफ़्तारी से बचते रहे थे। 1997 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। दिसंबर 1998 को इस ओजस्वी कवि ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

Show comments

जरूर पढ़ें

बांग्लादेश में कई हिंदू मंदिरों पर हुआ हमला, भारत ने जताई चिंता, सरकार से की यह मांग

क्या महाराष्ट्र में सरप्राइज देगी BJP, एकनाथ शिंदे डिप्टी CM बनने को तैयार

अडाणी की 11 कंपनियों में से 5 के शेयरों में तूफानी तेजी, 8 दिन में बदल गए हालात, 15 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी

हेमंत सोरेन ने झारखंड के 14वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, INDIA की 10 पार्टियों के नेता मौजूद रहे

Honda Activa e की इंट्री, Ola, Ather, TVS और Bajaj की उड़ी नींद, फीचर्स से मचा देगी धमाल

सभी देखें

नवीनतम

LIVE: संभल जामा मस्जिद सर्वेक्षण मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

चलती एंबुलेंस में नाबालिग के साथ दुष्कर्म, 2 आरोपी गिरफ्तार

कौन होगा महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री, शाह के साथ महायुति के नेताओं का देर रात तक मंथन

Krishna Janmabhoomi : श्रीकृष्ण जन्मभूमि केस की सुनवाई 4 दिसंबर तक टली, हिंदू पक्ष ने दाखिल किए हैं 18 मुकदमे

Waqf Issue : केरल में मुनंबम जमीन विवाद की जांच करेगा न्यायिक आयोग