यह स्मारक भारत की वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल है। दिल्ली का जंतर मंतर समरकंद, उज्बेकिस्तान के अनुसंधान से प्रेरित है। यहाँ हर साल पर्यटकों के अलावा दुनियाभर से बड़ी संख्या में वास्तुविद, इतिहासकार और वैज्ञानिक भी आते हैं। इसके निर्माण में ६ साल का समय लगा था।
गुलाबी शहर जयपुर के संस्थापक, प्रसिद्घ राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 18वीं सदी में भारत में अलग-अलग जगहों पर पाँच अंतरिक्षीय अनुसंधान केन्द्र बनवाए थे। दिल्ली का जंतर मंतर इस कड़ी में बनवाया गया पहला अंतरिक्षीय अनुसंधान केन्द्र है।
यह वाराणसी, जयपुर, मथुरा और उज्जैन में बने अनुसंधान की अपेक्षा सबसे बड़ा और बेहतर ढंग से संरक्षित है। इस ऐतिहासिक स्थल का संबंध भारतीय ज्योतिष से भी है, क्योंकि यहाँ से सूर्य-चंद्र और अन्य ग्रह-नक्षत्रों की गतिविधि और समय नापने का काम किया जाता था।
इसका नाम असल में 'यंतर मंतर' है, लेकिन जंतर मंतर ही ज्यादा प्रचलित है। दिल्ली में इसका निर्माण 1724 में करवाया गया था। मुगल बादशाह मुहम्मद शाह के शासनकाल में हिन्दू और मुस्लिम खगोलशास्त्रियों में ग्रहों की स्थिति को लेकर बहस छिड़ गई थी। इसे रोकने के लिए ही सवाई जयसिंह ने जंतर मंतर का निर्माण करवाया।
ग्रहों की गति नापने के लिए यहाँ कई प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं। यहाँ के प्रमुख यंत्र हैं सम्राट यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र, दिगंश यंत्र, भित्ति यंत्र और मिस्त्र यंत्र। इसके अलावा रसथाम्स यंत्र, दक्षिणोत्तर भित्ति यंत्र, जयप्रकाश और कपाल, नदिवालय, राम यंत्र और रसिवालय यंत्र भी हैं।
70 फीट ऊँचा 'सम्राट यंत्र' सूर्य की मदद से समय और ग्रहों की स्थिति की जानकारी देता है। 'मिस्त्र यंत्र' साल के सबसे छोटे और सबसे बड़े दिन को नाप सकता है। 'राम यंत्र' और 'जय प्रकाश' यंत्र खगोलीय पिंडों की गति के बारे में बताता है। उस समय इन यंत्रों द्वारा प्राप्त जानकारी आश्चर्यजनक रूप से सटीक हुआ करती थी, लेकिन आज बड़ी-बड़ी इमारतों से घिर जाने के कारण इनसे प्राप्त नतीजे सटीक नहीं होते हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि जंतर मंतर हमारे देश की वैज्ञानिक उन्नति का प्रतीक और अमूल्य धरोहर है। हालाँकि आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान में अब इसका उपयोग नहीं किया जाता, लेकिन यह इसके लिए प्रेरणास्रोत जरुर रहा है।