रोम का अजूबा - 'कोलोजियम'

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आप सभी ने रोम स्थित कोलोजियम के बारे में सुना या पढ़ा तो होगा ही। युनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोहर का दर्जा दिया गया है और यह दुनिया के सात अजूबों में शामिल है। इसका असली लेटिन नाम 'एम्फीथिएटरम्‌ फ्लावियम' है, जिसे अंग्रेजी में 'फ्लावियन एम्फीथिएटर' कहा जाता है, लेकिन यह कोलोजियम के नाम से ही ज्यादा प्रसिद्घ है।

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यह इटली देश के रोम नगर के मध्य में स्थित रोमन साम्राज्य का सबसे विशाल एलिप्टिकल एम्फीथिएटर है। यह रोमन आर्किटेक्चर और इंजीनियरिंग का उत्कृष्ट नमूना माना जाता है। इसका निर्माण तत्कालीन शासक वेस्पियन ने 70-72वीं ईस्वी में प्रारंभ किया था, जिसे उनके बाद सम्राट टाइटस ने 80 ईस्वी में पूरा किया। 81 से 96 के बीच डोमीशियन के राज में कुछ और परिवर्तन किए गए। इसका नाम सम्राट वेस्पियन और टाइटस के पारिवारिक नाम फ्लेवियस के कारण एम्फीथिएटरम्‌ फ्लावियम रखा गया।

योद्धाओं को प्रशिक्षण
कोलोजियम में योद्धा अपनी युद्धकला का प्रदर्शन करते थे। युद्ध कौशल के अलावा यहाँ समय-समय पर जंगली जानवरों की प्रदर्शनी भी लगाई जाती थी। इसके लिए अफ्रीका से शेर, हाथी, हिप्पोपोटेमस, शुतुरमुर्ग लाए जाते थे। लोगों की भीड़ लगने की वजह से इसके आसपास के क्षेत्र में व्यापार भी बढ़ा।

कोलोजियम के पास ग्लेडस मेग्नस भवन में योद्धाओं को प्रशिक्षण दिया जाता था। वहाँ से कोलोजियम तक पहुँचने के लिए भूमिगत मार्ग का उपयोग किया जाता था। लुडस मैचुटिनस में योद्धाओं को जानवर से लड़ना सिखाते थे, साथ ही हथियार और मशीनें रखने के लिए भी अलग से भवन बनाए गए। घायल सैनिकों की चिकित्सा और शहीद होने वाले सैनिकों के शवों को रखने की अलग से व्यवस्था थी।

धार्मिक महत्व
मध्य युग तक कोलोजियम का उपयोग एक किले के रूप में किया जाता था। १६वीं तथा १७वीं शताब्दी में इस स्थान को ईसाई धर्म का पवित्र स्थल माना जाने लगा। पोप पाइअस ने तीर्थयात्रियों को यहाँ की मिट्टी एकत्रित करने के लिए कहा। उनका मानना था कि यह स्थान शहीदों के रक्त से सिंचित होकर पवित्र हो गया है। इस तरह इसका धार्मिक महत्व धीरे-धीरे बढ़ता गया।

रोम की अखंडता का प्रतीक

एक समय यह कोलोजियम रोम की अखंडता का प्रतीक माना जाता था। वहाँ एक लोकोक्ति प्रचलित थी - 'जब तक कोलोजियम खड़ा है, तब तक रोम भी सुरक्षित है और जिस दिन यह गिर गया उस दिन रोम भी समाप्त हो जाएगा और उसके साथ ही दुनिया का अंत भी हो जाएगा।' आज भूकंप और पत्थरों की चोरी के कारण यह इमारत खंडहर होती जा रही है, लेकिन इस खंडहर को पर्यटकों के लिए बहुत संजोकर रखा गया है।

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आज भी यह रोमन साम्राज्य के वैभव का प्रतीक है। हर वर्ष लाखों पर्यटक इसे देखने के लिए आते हैं। इसकी बाहरी दीवार के ऊपरी हिस्से पर रोमन देवता 'ईरोस' को समर्पित एक संग्रहालय भी बनाया गया है। इसके भूमिगत सुरंगों तथा रास्तों को 2010 में आम जनता के लिए खोल दिया गया था। उस समय इनका उपयोग जानवरों को युद्घक्षेत्र में लाने के लिए किया जाता था। हर गुड फ्रायडे को यहाँ से मशाल जुलूस निकलता है।

मरम्मत की योजना
इस कोलोजियम के धार्मिक महत्व तथा पर्यटकों के आकर्षण को देखते हुए इसके जीर्णोद्घार की योजना बनाई जा रही है। 2011 के अंत तक इसकी मरम्मत का काम शुरू हो जाएगा। यह काम लगभग ढ़ाई वर्ष तक चलेगा और इसमें करोड़ों रुपए खर्च होंगे।

असाधारण था यह कोलोजियम
इस अंडाकार कोलोजियम की क्षमता 50 हजार दर्शकों की थी। यह बात उस समय साधारण बात नहीं थी। इस स्टेडियम का निर्माण लोगों के मनोरंजन के लिए किया गया था, पर दोस्तों क्या आप जानते हैं कि उस समय रोमन लोग अपना मनोरंजन किस प्रकार किया करते थे? इस स्टेडियम में योद्घाओं की खूनी लड़ाइयाँ हुआ करती थीं। इन खूनी लड़ाइयों को लड़ने वाले योद्घाओं को 'ग्लेडिएटर' कहा जाता था। इन्हें खतरनाक जानवरों जैसे बाघों से भी लड़ना होता था।

अनुमान है कि इस तरह के प्रदर्शनों ने 5 लाख जानवर और करीब दस लाख मनुष्यों को अपना ग्रास बना लिया था। यहाँ साल में दो बार भव्य आयोजन होते थे और रोमवासी इन्हें काफी पसंद करते थे। इन खेलों के अतिरिक्त यहाँ पौराणिक कथाओं पर आधारित नाटक भी मंचित किए जाते थे। पूर्व मध्यकाल में इस इमारत को सार्वजनिक उपयोग के लिए बंद कर दिया गया था। इसके बाद इसे निवास, कार्यशालाओं, धार्मिक कार्यों, किले और तीर्थस्थल के रूप में प्रयोग किया जाता रहा।

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