आतंकवादी कामों में पाक सैनिक सक्रिय

संदीप तिवारी
रविवार को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने तीन पाकिस्तानी आतंकवादियों को गिरफ्तार किया जो कि राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों में बाधा डालने के लिए आए थे। ये तीनों जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के फिदायीन हैं, जिन्हें जम्मू के स्‍थानीय होटल से गिरफ्तार किया गया था।

राज्य के डीजीपी कुलदीप खोड़ा ने मंगलवार को मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि जैश के इन आतंकवादियों में पाकिस्तानी सेना का एक सैनिक भी शामिल है।

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि भारत पर होने वाले आतंकवादी हमलों में पाक सेना के नियमित सैनिकों के शामिल होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। मुंबई पर हुआ आतंकवादी हमला शायद यही संकेत देने के लिए था कि पाकिस्तान में असली ताकत सेना के हाथ में है और भारत जो चाहे कर ले, पाकिस्तानी सरकार आतंकवादी गतिविधियों पर रोक नहीं लगा सकती है क्योंकि यह स्टेट पॉलिसी है।

उल्लेखनीय है कि कुछेक दिन पहले ही जम्मू-कश्मीर पुलिस को इस बात की खुफिया जानकारी मिल रही थी कि आतंकवादी राज्य में होने वाले चुनावों में बाधा डालने और शांति भंग करने के लिए आत्मघाती हमले करने आए हैं। इस बात की संभावना को ध्यान में रखते हुए पुलिस बल राज्य के सभी होटलों, लॉज और महत्वपूर्ण ठिकानों पर निगाह रखे हुए था।

  भारतीय पक्ष का मानना है कि पाकिस्तानी सेना का सत्ता के प्रत्येक स्तर पर नियंत्रण है और मुंबई पर हमले के बाद पाक सेना के पक्ष में एक राष्ट्रीय स्तर पर मुहिम चलाने की कोशिश की गई      
स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) जम्मू और जी-72, सीआरपीएफ बटालियन के संयुक्त अभियान के तहत जम्मू के होटल सम्राट के कमरा नं. 023 से तीनों को रविवार की शाम तब पकड़ा गया, जब वे इस बात का संतोषजनक उत्तर नहीं दे सके कि शहर में उनके आने का उद्‍देश्य क्या है? साथ ही जाँच के बाद उनके पास से आपत्तिजनक दस्तावेज मिले जिनसे उनकी पहचान उजागर हुई।

सघन पूछताछ के दौरान तीनों ने माना कि वे जैश-ए-मोहम्मद के सदस्य हैं और इनमें से एक गुलशन कुमार (असली नाम गुलाम फरीद, पुत्र मोहम्मद शफी, पाक अधिकृत कश्‍मीर के भीमबर जिले के रूपेरी गाँव का निवासी) है। फरीद पाकिस्तानी सेना की 10 आजाद कश्मीर रेजीमेंट का सिपाही है। 2001 में वह पाक सेना में भर्ती हुआ था और उसे 4319184 बेल्ट नंबर दिया गया था।

सेना में भर्ती होने से पहले गुलाम फरीद हरकत उल जेहाद ए इस्लामी का सदस्य था और उसे बरनाला कैम्प में तीन माह का सैन्य प्रशिक्षण भी दिया गया था। संचार संबंधी मामलों का वह जानकार है और बहुत सारे हथियार चलाना जानता है। डीजीपी ने इस बात की प्रबल संभावना जताई है ‍कि भारत में पाक की आतंकवादी गतिविधियों में पाकिस्तानी सेना के नियमित सैनिक भी शामिल हो सकते हैं।

इन लोगों को जिस तरह की ट्रेनिंग दी गई है वह सेना में ही दी जाती है। भारत में आतंकवादी गतिविधियाँ चलाने के लिए सेना आतंकवादी संगठनों को तैयार करती है। इन्हें भारत भेजने और इनके फर्जी दस्तावेज तैयार करने का काम आईएसआई करती है जिसने बांग्लादेश में अपना जाल बिछा रखा है।

इन लोगों के पासपोर्ट भी आईएसआई के एजेंट नदीम ने तैयार करवाए थे। इन तीनों का कहना है कि उनके चार अन्य साथी राज्य में मौजूद हो सकते हैं क्योंकि वे भी उनके ही साथ आए थे। उन्हें भी स्थानीय लोगों की मदद से हथियार व छिपने का स्थान मुहैया कराया जाना था। वे अब कहाँ हैं, उन्हें नहीं पता।

होटल में कमरा दिल्ली के रमेश पार्क निवासी अखिलेश प्रसाद के नाम पर बुक कराया गया था। प्रारंभिक पूछताछ के दौरान तीनों ने अपनी पहचान इस प्रकार बताई थी- अखिलेश प्रसाद पुत्र नीलेश प्रसाद , निवासी 504/ 5 रमेश पार्क नई दिल्ली, इंदरकुमार पुत्र परवीनकुमार, निवासी सलीमपुर दिल्ली और गुलशन कुमार पुत्र तेजिंदर कुमार, गीता कॉलोनी निवासी, नई दिल्ली।

अन्य दो फिदायीनों की पहचान इस प्रकार है- अखिलेश प्रसाद (मोहम्मद अब्दुल्लाह पुत्र मोहम्मद जारीन, गाँव सेरियाँ, तहसील और जिला हारीपुर, नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रॉविन्स, पाकिस्तान, इंदर कुमार (मोहम्मद इमरान पुत्र अब्दुल गफ्फार,निवासी 8 डेरा नवाब, तहसील यजमाँ मंडी, जिला बहावलपुर, पंजाब, पाकिस्तान)।

पाक के पंजाब प्रांत के हसन अब्दाल के मदरसे में इस्लामी तालीम हासिल करने के बाद अब्दुल्लाह 2006 में जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ा था। उसे भी हथियार चलाने का प्रशिक्षण मिला और ट्रेनिंग के दौरान उसने लोडेड वाहन चलाना भी सीखा। इसी तरह इमरान 2005 में जैश में भर्ती हुआ था और जैश प्रमुख मौलाना अजहर मसूद के छोटे भाई मुफ्‍ती अब्दुल रऊफ के मदरसे में इस्लामी तालीम दी गई थी, जो कि रावलपिंडी में है।

अगस्त 2008 में इन लोगों को आदेश मिला था कि वे मुलीर आर्मी छावनी के पास संगठन के कराची स्थि‍त कार्यालय में पहुँचें। मुफ्‍ती अब्दुल रऊफ ने इन सभी लोगों के लिए पासपोर्ट और वीजा की व्यवस्था की थी। कराची में वे मुफ्ती अब्दुल रऊफ से मिले, जहाँ पर अन्य इस्लामी शिक्षक भी मौजूद थे। दो दिन बाद इन लोगों को बांग्लादेश भेज दिया गया, जहाँ ढाका हवाई अड्‍डे पर इन्हें आईएसआई एजेंट नदीम मिला। नदीम ने इन लोगों का खुलना (बांग्लादेश) में तीन महीने तक रहने का इंतजाम किया।

पंद्रह दिसंबर को ये लोग खुलना से एक गाइड की मदद से भारतीय सीमा में घुसपैठ कर गए। एक रात ये लोग कोलकाता के कमारहट्‍टी इलाके में भी रहे। 18 तारीख को ये जम्मू-तवी एक्सप्रेस में बैठकर दूसरे गाइड के साथ कोलकाता से रवाना हुए जिसने इन लोगों के लिए एसी थ्री टियर टिकट खरीदे थे।

गाइड के साथ ये तीनों शंकर होटल पहुँचे जहाँ इन लोगों ने एक कमरा बुक कराया। शाम को इन लोगों को हिदायत दी गई कि ये लोग होटल सम्राट में पहुँच जाएँ और वहाँ एक कमरा बुक कराएँ। इस होटल में इन लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया और इनके पास हथियार और गोला, बारूद पाया गया।

उल्लेखनीय है कि हाल में भारतीय राजदूतों और उच्चायुक्तों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने कहा था कि मुंबई पर हमला पाकिस्तानी सेना का दुस्साहस है और जिस तरह से हमला किया गया था वह यह दर्शाने के लिए पर्याप्त था कि पाकिस्तान का पूरा नियंत्रण सेना के हाथ में है और भारत को चुनौती है कि वह जो चाहे, कर ले।

भारतीय पक्ष का मानना है कि पाकिस्तानी सेना का सत्ता के प्रत्येक स्तर पर नियंत्रण है और मुंबई पर हमले के बाद पाक सेना के पक्ष में एक राष्ट्रीय स्तर पर मुहिम चलाने की कोशिश की गई। इस मामले पर पाकिस्तानी रवैया यही दर्शाता है कि भारत को किसी असैनिक सरकार से बात करने के बजाय पाक सेना से बातचीत करनी चाहिए।

विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि अब भारत को इस तरह से कदम उठाना चाहिए कि पाकिस्तान के खिलाफ कोई कदम उठाने से पहले इसके दीर्घकालिक परिणामों के बारे में सोच ले।

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