rashifal-2026

खामोश हो गया वो हँसाने वाला

कवि ओम व्यास ओम का निधन

गायत्री शर्मा
अपने ठेठ मालवी अंदाज में हर काव्य सम्मेलनों की महफिल में श्रोताओं को गुदगुदाने वाले हास्य कवि ओम व्यास ओम आज हम सभी से दूर चले गए। परंतु उनका वो पहनावा धोती-कुर्ता, लंबी चोटी, मोटा चश्मा, मालवी अंदाज मानो आज भी हमें उनकी उपस्थिति का अहसास करा रहा है।

NDND
ओम जी को हम यदि हँसी-ठहाकों का पर्याय कहे तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि जहाँ ओम जी होते थे, वहाँ किसी का भी उदास या खामोश बैठना असंभव सा था। उनकी कविता 'माँ' ने जहाँ हमारे अंर्तमन को झकझोर कर हमारी आँखें नम कर दीं तो वहीं 'मजा ही कुछ और है' कविता ने हमारी हँसी के सारे बाँध तोड़कर हमें ठहाके लगाने पर मजबूर कर दिया।

हर किसी को उन्होंने बहुत कुछ सिखाया। आइए जानते हैं कि ओम जी क्या अहमियत थी उन कवियों के लिए, जिनके साथ ओम जी ने अपनी काव्य यात्रा को आगे बढ़ाया -

मेहमाननवाजी में लाजवाब :
ओम व्यास ओम शालीन हास्य के कवि कहे जाते थे। वे भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के लिए समर्थित कवि थे। हमारी संस्कृति क्या है, हम क्या थे, क्या हैं और हम क्या कर रहे हैं। इस प्रकार की कई ज्ञानवर्धक बातें ओम हँसी-हँसी में कह जाते थे। उन्होंने कभी अपनी कविता में अश्लील टिप्पणी या फूहड़ हास्य नहीं किया। उनकी वाणी की शक्ति अद्भुत थी। ओम की मेहमान नवाजी भी लाजवाब थी, जब भी कभी मैं उज्जैन होते हुए रतलाम, इंदौर या भोपाल जाता था, तब-तब दिल्ली लौटते समय मेरा बैग नमकीन और मिठाईयों से भरा होता था। बैतवा महोत्सव में शिरकत करते समय भी ओम ने मुझे नमकीन के दो पैकेट दिए थे, जिसे खोलने की हिम्मत मैं अब तक नहीं जुटा पा रहा हूँ।

ओम इतना अधिक मिलनसार व प्रेमी व्यक्ति था कि वह बड़ों-छोटों सभी को बराबर सम्मान देता था। यहाँ तक कि मेरे घर भी वो जब कभी आता था तब घर के रसोइयों से अधिकारपूर्वक कहता कि 'आज मुझे ये चीज खाना है।' वह हमारे परिवार के सदस्य जैसा था, जो हर किसी से जल्दी ही घुल-मिल जाता था। हमने कई विदेश यात्राएँ एक साथ की। हमेशा वो मुझे बड़े प्यार से कहता था 'मेरी इस विदेश यात्रा का श्रेय तो आपको ही जाता है, आपके कारण आज मैं विदेश जा रहा हूँ।' मैं ओम से बार-बार कहता था कि 'अब बस भी करो ओम।'
- डॉ. अशोक चक्रधर (हास्य कवि)

बेतवा महोत्सव की भीषण सड़क दुर्घटना में घयल होने के बाद, एक महीने से मौत से लडाई लड़ रहा , हिंदी हास्य कविता का दुलारा कवि ओम व्यास ओम आज चल बसा। ओम मेरे बेहद करीबी दोस्तों में था। हजारों राते साथ गुजारीं हमने ...बहुत बदमाशियाँ कीं... उसे मेरी कुछ बातें बहुत रिझाती थीं और उसकी कुछ चौबीस कैरेट अदाओं पर मैं फ़िदा था... कुछ वक़्त अलगाव भी रहा.. पर उसमें भी घरेलू यारी बनी रही.... अब भी ९ जून से लगभग रोज मैं उसे आईसीयू में जगाने के लिए झिड़क कर आता था ...वो जमीं फोड़कर पानी पीने वाला अद्‍भुत कौतुकी था ..पता नहीं इस सत्र में और आगे उसकी याद कहाँ कहाँ रुलाएगी ...भाभी ,पप्पू [उसका भाई ], भोलू और आयुष [उसे बेटे ] दीदी सबको ईश्वर शक्ति दे ...उस माँ को क्या कहूँ जिसकी कविता सुनाता-सुनाता वो मसखरा हर रात बिग बी से लेकर कुली तक सबकी आखों से नमी चुराकर ले जाता था। स्वर्ग में ठहाकों का माहौल बना रहा होगा ..चश्मे से किसी अप्सरा को घूर कर।
- कुमार विश्वास (कवि,गाजियाबाद)

औलाद से बढ़कर था ओम :
ओम मुझे हमेशा अपना पिता मानता था। मुझे याद है हाल ही में 15 मई 2009 को ओम और मैं हम दोनों गोयल रिसोर्ट में झँवर परिवार के एक कार्यक्रम में काव्यपाठ करने आए थे। ओम को पता था कि मुझे साँस लेने में तकलीफ की शिकायत से जूझ रहा हूँ। जब मैं उस कार्यक्रम के बाद इंदौर से रतलाम आया तो ओम ने मुझे टेलीफोन किया और कहा 'बाबा, आप मेरे साथ दिल्ली चलो या फिर हम विदेश चलकर आपका इलाज अच्छे डॉक्टर से करवाते हैं।'

ओम ने एक बेटे की तरह मेरी जो चिंता की वो काबिले तारीफ है। उसके उदार हृदय को देखते हुए मैं यही कहूँगा कि मेरा पहला बेटा ओम है और दूसरी मेरी खुद की औलाद है। उसमें विनम्रता व आदर इतना था कि वो जब भी मुझसे मिलता था मेरा सम्मान करता था और मेरे चरण स्पर्श करता था। आज मेरी उम्र लगभग 70 वर्ष के करीब हो चुकी है और मेरे अनुभव यही कहते हैं कि 52 वर्षों की मेरी काव्य यात्रा में आज तक किसी कवि ने मुझे इतना ढ़ाढ़स नहीं बँधाया, जितना कि ओम ने।
- पीरूलाल बादल (हास्य कवि, रतलाम)

माँ के मरने पर दिया दिलासा :
ओम जी और मैंने कई कवि सम्मेलनों में एक साथ शिरकत की। उनका व्यक्तित्व लाजवाब था। लोगों को हँसाने की खातिर उन्होंने अपना एक अलग ही लुक बनाया था। लंबी चोटी, चश्मा और मूँछ ओम जी की पहचान थी। अधिक सहज और मिलनसार व्यक्ति थे, जो अपने तो क्या परायों को भी अपना बना लेते थे। मेहमाननवाजी में तो उनका कोई जवाब नहीं था। अगर उन्हें पता है कि आप क्या खाने के शौकीन हैं तो वो कहीं से भी उस चीज को आपके सामने लाकर पेश कर देते थे।

आमतौर पर ट्रेन में सफर करते समय हम कवि आम जनता से अपना परिचय छुपाते हैं ताकि यात्रा सुखद व अच्छी हो किंतु ओम जी की प्रवृत्ति इसके ठीक विपरीत थी। वो बात किए बगैर रह ही नहीं सकते थे। ट्रेन में चढ़ते ही वो आसपास बैठे लोगों को स्वयं अपना परिचय देकर उनका मनोरंजन कर उन्हें खूब हँसाते थे।

कुछ माह पूर्व ही जब अप्रैल 2009 में मेरी माँ की अचानक मृत्यु हो गई तब मेरा पूरा परिवार शोक में डूबा था। उस वक्त ओम जी ने शोक सभा आकर मुझसे कहा 'मेहमानों की चाय-वाय का इंतजाम करो। तुम सब क्यों रोते हो।' उस दिन कुछ ही पलों में ओम जी ने गमगीन माहौल को सहज बना दिया और साथ ही जाते समय परिवार के जिम्मेदार बड़े की तरह मेरे पूरे परिवार को दुख से उबरने की हिम्मत भी दी।
- संदीप शर्मा (हास्य कवि, धार)

मिलनसार व्यक्ति थे ओम जी :
ओम जी बहुत अधिक मिलनसार व निर्मल हृदय के व्यक्ति थे। राजनीति से कोसों दूर रहकर गैर राजनीतिक विषयों पर काव्यपाठ करना ओम जी की खूबी थी। उनकी कविताएँ श्रोताओं के दिलों को छू जाती थी। ओम जी ने माँ पर करूण रस में एक कविता लिखी थी, जोकि उनकी पहचान थी। हर कवि सम्मेलन में वे अपनी इस कविता का पाठ जरूर करते थे। उनकी यह कविता हर श्रोता के दिलों को भीतर तक झकझोर देती थी।
- धमचक मुलतानी (हास्य कवि, रतलाम)

Show comments

Toilet Vastu Remedies: शौचालय में यदि है वास्तु दोष तो करें ये 9 उपाय

डायबिटीज के मरीजों में अक्सर पाई जाती है इन 5 विटामिन्स की कमी, जानिए क्यों है खतरनाक

एक दिन में कितने बादाम खाना चाहिए?

Vastu for Toilet: वास्तु के अनुसार यदि नहीं है शौचालय तो राहु होगा सक्रिय

Winter Health: सर्दियों में रहना है हेल्दी तो अपने खाने में शामिल करें ये 17 चीजें और पाएं अनेक सेहत फायदे

Maharaja Chhatrasal: बुंदेलखंड के महान योद्धा, महाराजा छत्रसाल, जानें उनसे जुड़ी 10 अनसुनी बातें

Armed Forces Flag Day 2025: सेना झंडा दिवस क्यों मनाया जाता है, जानें इतिहास, महत्व और उद्देश्य

Ambedkar philosophy: दार्शनिक और प्रसिद्ध समाज सुधारक डॉ. बी.आर. अंबेडकर के 10 प्रेरक विचार

Dr. Ambedkar Punyatithi: डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि, जानें उनके जीवन के 10 उल्लेखनीय कार्य

अयोध्या में राम मंदिर, संपूर्ण देश के लिए स्थायी प्रेरणा का स्रोत