Festival Posters

चट्टान सा रूप तुम्हारा

Webdunia
मुझे आज भी 26 जुलाई, 2002 की रात याद है... आईसीयू के बेड पर लेटा मेरा भाई जिंदगी और मौत की आखिरी लड़ाई लड़ रहा था। अभी सुबह ही तो हँसता-खेलता कोचिंग के लिए निकला था। उसकी मोटर साइकिल पर ट्रक ने पीछे से टक्कर क्या मारी, हमें जिंदगी हाथ से छूटती नजर आने लगी।

हम दो बहनों के बाद छोटा घर भर का लाड़ला था। उसके हाथों से जिंदगी रेत की तरह छूट रही थी। अभी-अभी बड़ा डॉक्टर वेंटीलेटर का इंतजाम करने के लिए कहकर गया था। आसपास जमा लोग कहासुनी कर रहे थे - ‘ट्रक के एक्सीडेंट से आखिर बचता कौन है।’ छोटे के पूरे शरीर पर पट्टियाँ बँधी थी। उसकी ये हालत हमसे देखी नहीं जा रही थी। छोटे को खोने के डर से हम लगातार रो रहे थे।

इतने में पापा अंदर आए। वे अभी-अभी डॉक्टर से मिलकर आ रहे थे। उन्हें बचपन से ही हमारा रोना बिलकुल पसंद न था...वे दृढ़ता से हमें हर तकलीफ का सामना करते देखना चाहते थे। हमें इस तरह रोते देख वे कुछ नाराज हो गए और बोले किस बात की चिंता करते हो, तुम्हारा बाप अभी जिंदा है। मेरे रहते तुम तीनों को कुछ नहीं हो सकता और गुस्से में उन्होंने हमें घर छोड़ दिया।

वे और माँ अस्पताल में अकेले थे। हम रात भर किसी अनहोनी की आशंका में सो नहीं पाए...हर फोन की घंटी हमें अंदर तक डरा जाती। किसी तरह वह मनहूस रात कटी और दिन का उजाला निकला.. हम गाड़ी उठाकर तुरंत अस्पताल गए.. हमारा छोटा मुस्कुरा रहा था, उसने जिंदगी की जंग जीत ली थी। मनहूस रात खूबसूरत उजाले का संदेश लेकर आईसीयू के दरवाजे पर दस्तक दे चुकी थी। डाक्टरों को उम्मीद थी कि शायद वो बच जाएगा। पापा ने पूना से और बड़े डॉक्टर को बुलाने का इंतजाम कर लिया था। जिस रात को हम मनहूस मानकर रोने में समय गवाँ रहे थे, उस रात पापा छोटे को बचाने की हर संभव कोशिश कर रहे थे। हमने पापा की ओर देखा, उनके चेहरे पर असीम शांति और सुकून था। पापा ने एक बार फिर साबित कर दिया कि उनके रहते हमें कुछ भी नहीं हो सकता।

छोटा पूरे महीने अस्पताल में भर्ती रहा। पापा ने किसी नाजुक फूल की तरह उसका ध्यान रखा। जब भी छोटा उदास होता, वे उसके सिर पर हाथ फेरते हुए गाने लगते, ‘सीने में दिल है, दिल में तुम्हीं हो, तुममें हमारी छोटी-सी जाँ है। तुम हो सलामत बस इतनी चाहत तुमसे ही अपनी दुनियाँ जवाँ है।’ और उदास छोटा मुस्कुरा उठता। सचमुच हम पापा की दुनियाँ थे। पापा ने कभी लड़के-लड़की में भेद नहीं किया था। और न ही उनके प्यार में भेद था। इस एक महीने में पापा ने अपने पैर से लोहे का जूता (मेरे पापा पोलियो के कारण एक पैर में लोहे की छड़ लगा जूता पहनते थे) कभी नहीं निकाला। वे हरदम भाग-दौड़ के लिए तैयार रहते थे।

रात में कुछ इमरजेंसी न आ जाए, इसलिए सोने की जगह कुर्सी के ऊपर पाँव रखकर आँख बंद कर लेते। लगातार लोहे का जूता पहनने के कारण उनके पाँव में छेद हो गए थे। जो घाव में बदल गए थे। लेकिन मेरे चट्टान स्वरूप पिता ने अपनी तकलीफ हम पर जाहिर नहीं होने दी। आज वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन हमें हमेशा बादल में उनका चेहरा दिखता है। वे हमारे लिए चट्टान थे, जिन्होंने जाते-जाते हमें भी अपने समान चट्टान बना दिया, जिसके कारण हम अब जिंदगी के हर उतार-चढ़ाव हँसते-हँसते देखते हैं।

पापा आप खुद चट्टान थे... हमें भी अपनी तरह चट्टान बना गए। इस दृढ़ स्वरूप के लिए शुक्रिया... आज हम जो कुछ भी हैं, सिर्फ आपके बलबूते पर हैं।

आपकी लाड़ली
सौम्या

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

Toilet Vastu Remedies: शौचालय में यदि है वास्तु दोष तो करें ये 9 उपाय

डायबिटीज के मरीजों में अक्सर पाई जाती है इन 5 विटामिन्स की कमी, जानिए क्यों है खतरनाक

एक दिन में कितने बादाम खाना चाहिए?

Vastu for Toilet: वास्तु के अनुसार यदि नहीं है शौचालय तो राहु होगा सक्रिय

Winter Health: सर्दियों में रहना है हेल्दी तो अपने खाने में शामिल करें ये 17 चीजें और पाएं अनेक सेहत फायदे

सभी देखें

नवीनतम

Maharaja Chhatrasal: बुंदेलखंड के महान योद्धा, महाराजा छत्रसाल, जानें उनसे जुड़ी 10 अनसुनी बातें

Armed Forces Flag Day 2025: सेना झंडा दिवस क्यों मनाया जाता है, जानें इतिहास, महत्व और उद्देश्य

Ambedkar philosophy: दार्शनिक और प्रसिद्ध समाज सुधारक डॉ. बी.आर. अंबेडकर के 10 प्रेरक विचार

Dr. Ambedkar Punyatithi: डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि, जानें उनके जीवन के 10 उल्लेखनीय कार्य

अयोध्या में राम मंदिर, संपूर्ण देश के लिए स्थायी प्रेरणा का स्रोत