महात्‍मा और सुभाष : अतीत के झरोखों से

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सुभाषचंद्र बोस का पत्र महात्मा गाँधी के ना म

जीलगोरा पो.आ.

जिला मानभू म, बिहा र

20 अप्रै ल, 1939

ND
प्रिय महात्मा ज ी,

मैंने आज आपको यह तार भेजा है-
' महात्मा गाँध ी, राजकोट ।

आपके बुखार आने की खबर से बहुत चिंतित हूँ। आपके शीघ्र स्वस्थ होने की प्रार्थना करता हूँ। जवाहरलाल जी और मुझे हार्दिक आशा है कि हमारी मुलाकात का अच्छा नतीजा निकलेगा और समान ध्येय के लिए सभी काँग्रेसजनों का सहयोग संभव होगा। कलकत्ता में हमारी जल्दी होने वाली मुलाकात की दृष्टि से हम दोनों पत्र-व्यवहार को उस मुलाकात के पहले प्रकाशित करना अवांछनीय समझते हैं। प्रणाम- सुभाष ।'

पिछले तीन सप्ताह में हमारे बीच लंबा पत्र-व्यवहार हुआ है। जहाँ तक कार्यसमिति के गठन का संबंध ह ै, इस पत्र-व्यवहार का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। फिर भी शायद एक दूसरी तरह से हमारे विचारों का स्पष्टीकरण करने में वह मददगार हुआ है। किंतु अब तात्कालिक सवाल को हल करना होग ा, कारण हम अधिक समय तक कार्यसमिति के बिना काम नहीं चला सकते। देश की और अंतरराष्ट्रीय स्थिति को देखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि काँग्रेसजन अपने मतभेदों को समाप्त कर दें और संयुक्त मोर्चे का निर्माण करें। आपको अच्छी तरह मालूम है कि अंतरराष्ट्रीय स्थिति किस प्रकार दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। ब्रिटिश पार्लियामेंट के सामने पेश हुए संशोधन विधेयक से प्रकट होता है कि अगर युद्ध का संकट उपस्थित होता है तो ब्रिटिश सरकार काँग्रेसी मंत्रिमंडलों को जो थोड़े-बहुत अधिकार मिले हुए है ं, उनको भी छीन लेने की तैयारी कर रही है। सारी जानकारी को ध्यान में रखते हुए इसमें जरा भी शक की गुंजाइश नजर नहीं आती कि हम असाधारण रूप से भारी संकट के निकट पहुँच रहे हैं। हम उसका सामना उसी अवस्था में कर सकेंगे जब हम अपने मतभेदों को तुरंत मिटा देंगे और अपने संगठन में एकता और अनुशासन स्थापित करने की पूरी-पूरी कोशिश करेंगे। यह काम उसी दशा में हो सकेग ा, जब आप आगे आकर नेतृत्व करें। तब आप देखेंगे कि भ्रष्टाचार को समाप्त करने और हिंसा की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के बारे में हमारे बीच मतैक्य है- हालाँकि देश में विद्यमान भ्रष्टाचार और हिंसक भावना की मात्रा के बारे में मतभेद हो सकता है। कार्यक्रम का निश्चय तो काँग्रेस या काँग्रेस महासमिति ही करेगी। हालाँकि प्रत्येक व्यक्ति को इन संस्थाओं के सामने अपने विचार रखने का असंदिग्ध हक हासिल है। कार्यक्रम के बारे में मेरा यह खयाल है कि जो संकट शीघ्र ही हमारे सिर पर आ रहा है वही बड़ी हद तक हमारे कार्यक्रम का निर्धारण करेगा और तब तक इस बारे में किसी बड़े मतभेद की कोई गुंजाइश नहीं रह जाएगी ।

मैं बड़ी उत्सुकता और आशा के साथ काँग्रेस महासमिति की बैठक के पहले कलकत्ता में या उसके निकट आपसे मिलने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। बंगाल में और अन्य प्रांतों में यह राय तेजी से बन रही है कि काँग्रेस कार्यसमिति की समस्या सैद्धांतिक मतभेदों और पिछले मतभेदों या गलतफहमियों के बावजूद आपसी समझौते से हल की जानी चाहिए। पन्त-प्रस्ताव के अनुसार कार्यसमिति का गठन करने की जिम्मेदारी आपकी है और जब आप यह जिम्मेदारी उठाते हैं तो आप देखेंगे कि हम अपनी शक्तिभर आपको सहयोग देंगे ।

जवाहर कल यहाँ थे। हमारी मौजूदा स्थिति पर लंबी चर्चा हुई। मुझे खुशी हुई कि हमारे विचार मिलते हैं ।

हम सोचते हैं कि कलकत्ता से बहुत दूर न ह ो, ऐसे किसी रास्ते के स्टेशन पर आप एक दिन के लिए उतर पड़ें और हम शांति के साथ बातचीत कर लें। अगर आप नागपुर के रास्ते आएँ तो खड़गपुर के निकट मिदनापुर सबसे अच्छी जगह रहेगी। अगर आप छिड़की के रास्ते आते हैं तो हमें बर्दवान के निकट कोई जगह देखनी होगी। मैंने इस बारे में आपको एक तार भेजा है और आपके उत्तर का इंतजार करूँगा। मैंने जवाहर को बातचीत में शामिल होने को कहा है और उन्होंने कृपा करके मान लिया है ।

आपके बुखार के बारे में मैं चिंतित हूँ। मेरी प्रार्थना है कि वह जल्दी ही ठीक हो जाए ।

सविनय प्रणाम ।

आपक ा

सुभा ष



सुभाषचंद्र बोस का पत्र महात्‍मा गाँधी के ना म

20 अप्रै ल, 1939

राजको ट


महात्मा गाँध ी,
बड़ी खुशी की बात ह ै, आप 27 ता. को कलकत्ता आ रहे हैं। आप जहाँ चाहें ठहरे ं, कोई एतराज नहीं। आपके आराम और सार्वजनिक सुविधा की दृष्टि से मेरा सुझाव है कि आप शहर के किनारे नदी-तट के उद्यान-भवन में ठहरें। सतीशबाबू से परामर्श करने के बाद कलकत्ता से आपको फिर तार करूँगा। जवाहरलाल जी कल यहाँ थे। हमारे खयाल से यह वांछनीय होगा कि आप इस विचार से सहमत हों और अपने रास्ते की खबर तार से दे दें तो मैं बीच के किसी सुविधाजनक स्टेशन पर आपके ठहरने का इंतजाम कर दूँगा। 21 ता. को कलकत्ता जा रहा हूँ ।

सुभाष


महात्मा गाँधी का पत्र सुभाषचंद्र बोस के ना म

नई दिल्ली

30 मार् च, 1939

प्रिय सुभा ष,
अपने तार का जवाब पाने की खातिर मैंने तुम्हारे 25 ता. के पत्र का उत्तर देने में देर की है। सुनील का तार कल रात को मिला। अब प्रात:काल की प्रार्थना के समय से पहले उठकर यह उत्तर लिख रहा हूँ।

चूँकि तुम्हारे खयाल में पंडित पन्त का प्रस्ताव अनियमित था और कार्यसमिति संबंधी कलम स्पष्‍ट रूप में अवैधानिक और नाजायज ह ै, इसलिए तुम्हारा मार्ग नितान्त स्पष्ट है। समिति का तुम्हारा चुनाव अबाधित होना चाहिए।

इसलिए इस विषय में तुम्हारे कई प्रश्नों को मेरे उत्तर की जरूरत नहीं।

जब हम फरवरी में मिले थे तब से मेरी राय मजबूत हुई है कि जहाँ मौलिक बातों पर मतभेद ह ो, जैसा हम सहमत थे कि है ं, वहाँ मिली-जुली समिति हानिकारक होगी। इसलिए यह मानकर कि तुम्हारी नीति को महासमिति के बहुमत का समर्थन प्राप्त ह ै, तुम्हें बिलकुल उन्हीं लोगों की बनी हुई कार्यसमिति रखनी चाहि ए, जो तुम्हारी नीति में विश्वास करते हैं।

हा ँ, मैं उसी विचार पर कायम हू ँ, जो मैंने हमारी फरवरी की मुलाकात में सेगाँव में प्रकट किया था कि मैं किसी भी प्रकार से तुम्हारे आत्मदमन में भागीदार होने का अपराधी नहीं बनूँगा। स्वेच्छापूर्वक आत्मविलय दूसरी चीज है। किसी ऐसे विचार को दबा लेन ा, जिसे तुम देशहित के लिए प्रबल रूप में रखते ह ो, आत्मदमन होगा। इसलिए अगर तुम्हें अध्यक्ष के रूप में काम करना है तो तुम्हारे हाथ खुले रहने चाहिए। देश के सामने जो परिस्थिति ह ै, उसमें किसी मध्यम मार्ग की गुंजाइश नहीं है।

जहाँ ‍तक गाँधीवादियों का संबंध है (यदि इस गलत शब्द का प्रयोग करें तो) वे तुम्हें बाधा नहीं पहुँचाएँगे। जहाँ संभव होग ा, तुम्हारी सहायता करेंगे और जहाँ सहायता नहीं कर सकेंग े, वहा ँ, अलग रहेंगे। अगर वे अल्पमत में हैं तब तो कुछ भी‍ कठिनाई नहीं होनी चाहिए। जहाँ वे स्पष्‍ट बहुमत में होंगे वहाँ शायद वे अपने आपको दबाकर न रख सकें।

लेकिन मुझे जिस चीज की चिंता है वह यह हकीकत है कि काँग्रेस के मतदाता फर्जी हैं और इसी‍लिए बहुमत और अल्पमत का पूरा अर्थ नहीं रह जाता। फिर भी जब तक काँग्रेस की भीतरी सफाई नहीं हो जाती तब तक जो हथियार हमारे पास फिलहाल है उसी से काम चलाना होगा। दूसरी ची ज, जिससे परेशानी ह ै, वह है हमारा आपसी भयंकर अविश्वास। जहाँ कार्यकर्ताओं में परस्पर अविश्वास हो वहाँ मिल-जुलकर काम करना असंभव हो जाता है।

मेरे खयाल से तुम्हारे पत्र के और किसी मुद्दे का जवाब देने की आवश्‍यकता नहीं है।

जो कुछ करो भगवान से मार्गदर्शन लेते रहो। डॉक्टरों की आज्ञाओं का पालन करके जल्दी अच्छे हो जाओ।

प्या र,

बापू
जहाँ तक मेरा संबंध ह ै, हमारे पत्र व्यवहार को प्रकाशित करने की जरूरत नही ं, परंतु तुम्हारा दूसरा विचार हो तो छापने की मेरी इजाजत है।

सभी पत्र राजशेखर व्यास की पुस्तक 'सुभाषचंद्र बोस- कुछ अधखुले पन्ने' से साभार

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