गोपालदास नीरज : 5 पैसे से 5 लाख तक

एक अविस्मरणीय संस्मरण

सीमान्त सुवीर
देश के ख्यात गीतकार और कवि गोपालदास नीरज को पिछले दिनों जब मुलायम सिंह द्वारा उत्तरप्रदेश का सर्वोच्च साहित्य सम्मान 'भारत भारती' लेते देखा और यह भी देखा कि प्रदेश सरकार ने उन्हें ताम्रपत्र के साथ 5 लाख रुपए की सम्मान निधि भेंट की तो दिल के किसी कोने में सुकून की अनुभूति हुई।

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नीरज उन कवियों में शुमार किए जाते हैं, जो आज भी अकेले के बूते पर किसी कवि सम्मेलन का मंच संभाल सकते हैं। काका हाथरसी के जमाने जब हास्य का पुट पूरे देश पर छाया हुआ था, तब नीरज की धीर गंभीर दौर दिल को स्पर्श कर लेने वाली कविताओं ने अपने श्रोता तैयार किए।

4 जनवरी 1925 को इटावा जिले के ग्राम पुरावली में नीरज साहब का जन्म हुआ। आज भले ही वे उम्र के लिहाज से सहारा लेकर चलने को मजबूर हो लेकिन जब नीरज जी का जमाना था, तब मजाल है कि उनके रसिक श्रोता उनसे दूर हो जाएं...बस पता चलना चाहिये कि नीरज आ रहे हैं, फिर क्या , जो मजमा जमता कि आधी रात कब गुजर जाए पता ही नहीं चलता था।

नीरज का 'कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे...' कविता संग्रह के रूप में बाजार में आया और हाथों हाथ बिक गया। जब उनकी यही कविता (कारवां गुजर गया..) को मोहम्मद रफी ने अपनी आवाज दी और फिल्म 'नई उमर की नई फसल' (1966) में इसे शामिल किया गया, यह अमर हो गया।

कभी फुर्सत के लम्हों में रफी की आवाज वाला यह गीत सुन लीजियेगा,फिर पता चलेगा क‍ि नीरज ने इस गीत को कितने दिल से लिखा है। या फिर किशोर कुमार की आवाज में किसी एकांत जगह फिल्म 'प्रेम पुजारी' (1970) का गीत 'शोखियों मे घोला जाए फूलों का शबाब, फिर उसमें मिलाई जाए थोड़ी सी शराब, होगा यूं नशा जो तैयार, वो प्यार है...' को भी सुन के देखियेगा।

नीरज के गीत चाहे रेडियो पर सुने या फिर उनके मुख से किसी मंच से, दिल को पुर सुकून देते हैं। आज आप जिस बहुचर्चित गीतकार कवि को जर्जर हालत में देख रहे हैं, किसी समय उनकी माली हालत भी इसी काया की तरह थी।

अपनी गरीबी को उन्होंने कभी किसी मंच से साझा नहीं किया। यह बात मुझे यदि मेरे स्वर्गीय पिता नहीं बतलाते तो दुनिया यह जान ही नहीं पाती कि डॉ. गोपालदास नीरज ने अपना बचपन किन मुश्किल हालातों में गुजारा था।

यह बात कई साल पहले दिल्ली से इंदौर के सफर की है। पिताजी प्रथम श्रेणी के डिब्बे में थे और सामने वाली सीट पर आकर एक व्यक्ति बैठता है। कुछ देर में बातचीत का दौर शुरु होता है। यह व्यक्ति अपना परिचय देता है -मुझे लोग गोपालदास नीरज कहते हैं...पिता रोमांचित हो गए और फौरन अपने झोले में से उनका कविता संग्रह 'कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे..' निकालकर यह बताया कि मैं भी आपका बहुत बड़ा फैन हूं।

नीरज इंदौर में एक कवि सम्मेलन के सिलसिले में आ रहे थे, जो गांधी हॉल में था। सफर में उनसे पिताजी की काफी बातें हुई और तब नीरज ने अपने परिवार के बारे में जो कुछ भी बताया, वह हैरान कर देने वाला था। नीरज ने कहा कि गंगा किनारे हमारा घर हुआ करता था और घर में बेहद गरीबी थी। जो लोग गंगा नदी में 5 पैसे, 10 पैसे फेंकते थे, हम बच्चे गोता लगाकर उन्हें निकालकर इकठ्‍ठा करते थे और इसी जमा पूंजी से घर का चूल्हा जलता था।

बाद में कुछ बड़े हुए और कविता का शौक लग गया। कल्पना से विवाह हुआ और बेटा सुनील दुनिया में आया। कुछ महीनों पहले सब टीवी पर रात को कवि शैलेष लोढ़ा के कार्यक्रम 'वाह वाह क्या बात है', में नीरज साहब को देखा था। वे बेटे का सहारा लेकर कार्यक्रम में पधारे थे।

इसके बाद जब उत्तरप्रदेश सरकार ने उन्हें 'भारत भारती' के सम्मान से नवाजा तो लगा कि आज के दौर में भी नीरज जिस सम्मान के हकदार है, वह उन्हें मिल रहा है। जब तक यह दुनिया कायम रहेगी और नीरज को जानने, कद्र करने वालों की संख्या कम न होगी। वे अपने चर्चित गीतों और यादगार कविताओं के बूते पर अपने प्रशंसकों के दिलों में हमेशा बसे रहेंगे।

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