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स्मृति शेष : पुष्पाजी का वात्सल्य सदैव रहेगा हमारे दिलों में....

हमें फॉलो करें स्मृति शेष : पुष्पाजी का वात्सल्य सदैव रहेगा हमारे दिलों में....
पुष्पाजी बेहद विनम्र और दूसरों के मनोभावों को समझने में माहिर शख्सियत थीं। मैं उन दिनों कला गतिविधियों की रिपोर्टिंग करता था और अक्सर सुबह से शाम फील्ड में ही हो जाती थी। अभयजी पूछते कि तुम तो सुबह से निकले होंगे तो खाना खाया या नहीं? मैं कहता घर जा ही रहा हूं लेकिन तब तक वे पुष्पाजी को फोन कर चुके होते और ऐसा भी हुआ कि यदि कोई समय पर पहुंचाने वाला नहीं मिला तो खुद पुष्पाजी कुछ न कुछ ले कर पहुंच जातीं। मुझे अचरज भी होता कि क्या कोई इतना भी सरल हो सकता है लेकिन वे ऐसी ही थीं। यह चिंता एक दिन की नहीं होती बल्कि यदि सप्ताह भर चलने वाला कार्यक्रम हो तो पूरे सप्ताह तय समय पर मेरे लिए खाने को कुछ पहुंच जाता और साथ में मेरी पसंदीदा कॉफी भी। उनका वात्सल्य और उनकी मेजबानी से जो भी रुबरु हुआ वह कभी भुला नहीं सकता। उन्हें कभी अहम या गुस्से के साथ किसी ने नहीं देखा। धीर गंभीर स्वभाव की धनी पुष्पाजी का जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है।

-*संस्कृतिकर्मी संजय पटेल
सरल सहज व्यक्तित्व की स्वामिनी पुष्पा जी... अखबार के मालिक और बड़े पत्रकार की पत्नी होने का दंभ बिल्कुल भी नहीं था..  जब भी उनसे मिलो बहुत हंस कर बात करती और स्वागत करती थी... पुष्पा जी के निधन से परिवार में हुई कमी पर बहुत दुख है ... नईदुनिया एक परिवार रहा है और वे एक ममतामयी करुणा से भरपूर महिला थी... पुष्पा जी की आत्मा को शांति मिले और उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि

-*डॉ सोनाली सिंह नरगुंदे/विभागाध्यक्ष/पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला/देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर
श्रीमती पुष्पा देवी छजलानी ...अभय सर से इतर पहचान रखने वाली..।
 
 और वह पहचान एक ममतामयी.. मातृत्व से भरी स्त्री के रूप में..।
 
 मुझे याद है, जब भी मैं मीता नर्सरी गई... बहुत आरंभ में... बहुत संकोच के साथ सोचा कि अभय सर से मिल लूं। लेकिन सर नहीं थे। आंटी मिली और  बहुत स्नेह के साथ मिलीं।
 
 मेरा संकोच दूर करते हुए उन्होंने मुझे बिठाया और कुछ मिष्ठान खाने का आग्रह किया कि यह बहू के मायके जयपुर से आए हैं। निश्चित रूप से ऐसा व्यवहार संकोच तोड़ने के लिए पर्याप्त था। और उसके बाद जब भी मीता नर्सरी गई, उनसे संक्षिप्त सी मुलाकात अवश्य करके आई। कभी कभी  वे बाहर बरामदे में भी मिल जाया करती थीं।
 
 मातृत्व का पर्याय पुष्पा आंटी इस नश्वर संसार में नहीं है... लेकिन उनका वात्सल्य सदैव जीवित रहेगा हमारे दिलों में.।

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