स्मृतियों में बसे रहेंगे सत्य सांई

सत्य सांईं के भक्तों के अनुभव

Webdunia
वेबदुनिया डेस्क

PTI
अब जबकि ईश्वरीय अवतार माने जाने वाले श्री सत्य सांईं चिर समाधि के साथ स्थापित हो गए हैं, उनकी दिव्य स्मृतियाँ अनुयायियों की जुबान पर है। जो बाबा के विलक्षण चमत्कारों के साक्षी रहे हैं और जो उनकी दैवीय उपस्थिति को सुदूर प्रांतों में भी अनुभूत करते रहे हैं। अब उनकी आंखों से अविरल अश्रुधारा के साथ यादें उमड़ रही है। श्री सत्य सांईं के अनुभव उनके भक्तों ने हमसे साझा किए।

शैलजा गोलवलकर, बैंककर्मी, उज्जैन
मैं विगत 25 सालों से बाबा की परम भक्त हूँ। बाबा की तस्वीरों से विभूति तो हमारे यहाँ अक्सर निकलती रही है। हमने आस पड़ोस में पैकेट बना-बना कर बांटी है। पुट्टपर्थी में हमारा पूरा परिवार सेवा के लिए जाता रहा है। एक बार हमारे परिचित हमारे साथ पुट्टपर्थी घुमने गए। बाबा में उनकी आस्था नहीं थी। वे अपने बाएं हाथ का इलाज कई डॉक्टरों से करवा चुके थे लेकिन भीषण दर्द और अकड़न कम हो ही नहीं रही थी। हमारे साथ वे अनिच्छा से आ गए थे।

उन्हें आश्रम में अच्छा लग रहा था लेकिन अपने इलाज के संदर्भ में उन्हें बाबा से किसी प्रकार के चमत्कार की उम्मीद नहीं थी। अगले दिन हमें बाबा के दर्शन करने थे। रात को भक्तों के बीच बाबा के चमत्कार और तर्क को लेकर लंबी बहस चली। हमारे परिचित हर किसी की बात का पुरजोर खंडन कर रहे थे।

आधी रात को उन्हें यह अहसास हुआ कि उनके बाएं हाथ को कोई अदृश्य हाथ सहला रहा है। सुबह जब वे उठे तो उनका हाथ आसानी से चारों तरफ घुम रहा था। उस भयावह दर्द का भी कहीं अता-पता नहीं था। खुशी के मारे उनके मुंह से चीख सी निकल गई। वे बच्चों की तरह चहक रहे थे। हम सबके पूछने पर उन्होंने स्वीकार किया कि आधी रात को उन्हें बाबा के अस्तित्व का अहसास हुआ।

उन्हें ऐसा लगा कि बाबा उन पर अदृश्य रूप में हाथ फिरा रहे हैं। सुबह जब उठे तो उनका हाथ आश्चर्यजनक रूप से चारों ओर हिल- डुल रहा था और दर्द बिलकुल गायब। जब बाबा के दर्शन के लिए हम पहुंचे तो उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे। बाबा भीड़ चीर कर उनके पास पहुंचे और सिर पर हाथ फेर कर मुस्कराए।

आज हमसे ज्यादा वे परिचित बाबा के भक्त हैं। बाबा आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी ऐसी ही कई यादें हम भक्तों का विशेष संबल है। हमारी हर मुसीबत में बाबा ने हमें यह अनुभव कराया है कि वे हमारे साथ है और कई बार विपदा से घर के लोगों को बचाया भी है। यहाँ तक ‍कि सपने में आकर उन्होंने संकेत दिए हैं। हमारे लिए वे शिवशक्ति का अवतार हैं।

सीता झालानी, क्रिएटिव आर्टिस्ट, इंदौर
मैंने बेहद संघर्ष के साथ अपना जीवन जिया है। आज अपने बच्चों की लोकप्रियता के कारण अगर पहचानी जाती हूँ तो यह सिर्फ और सिर्फ बाबा के कारण है। मेरी दो बच्चे सूर्यमुख‍ी है। यह एक प्रकार की शारीरिक कमजोरी है। जिसमें व्यक्ति पूरी तरह नॉर्मल होता है बस उसकी त्वचा का रंग भारतीय रंग की तरह नहीं होता। शरीर में मेलोनिन की कमी होती है।

जब बेटी के बाद बेटा भी उसी तरह का हुआ तो मेरे कष्ट की सीमा ना रही। मैं पुट्टपर्थी में जाकर बाबा के सामने बहुत रोई। बाबा ने मेरी तीन वर्षीया बेटी को गोद में लिया और अपनी तीन अंगुलियों से उसके कंठ पर प्यार से हाथ फेरा। फिर बाबा ने 7 माह के मेरे बेटे सुनील की नन्हीं अंगुलियों को हाथ में लिया और चूम कर छोड़ दिया।

उस वक्त मैं समझ नहीं सकी कि बाबा ने ऐसा क्यों किया? लेकिन अगले ही कुछ सालों में मेरे प्रश्नों का उत्तर मेरे बच्चों की विलक्षण प्रतिभा ने मुझे दे दिया। मेरी बेटी वर्षा एक जानीमानी गायिका है। जाहिर सी बात है कि बाबा की अंगुलियां उसके कंठ पर आशीर्वाद बनकर फिरी थी। और मेरा बेटा सुनील बचपन से ही किसी भी वाद्य यंत्र को देखकर ही उसे बजाने की विधि बता देता था। सुनील ने कहीं भी कोई भी संगीत प्रशिक्षण नहीं लिया है लेकिन आज अपनी संगीत क्लास में ऐसा कोई इंस्ट्रूमेंट नहीं जो वह नहीं बजा सकता है। वह उन वाद्ययंत्रों को सिखाता भी है।

मैंने जान लिया कि बाबा ने मेरे बच्चे की अंगुलियों को क्यों चूमा था। आज उनके जाने से हम असहाय महसूस कर रहे हैं। हम जैसे कितने ही दुखी ह्रदय को बाबा धैर्य बंधाते थे और समाधान भी देते थे। मेरे घर में बाबा की तस्वीर से शिवरात्रि के दिन इतना शहद गिरा है जिसके निशान दीवारों पर आज भी है।

आरसी शर्मा, सरकारी अधिकारी, भोपाल
मैं बाबा का परम भक्त हूँ। हर गुरुवार मेरे घर में बाबा के कीर्तन होते हैं। सभी भक्त उसमें शामिल होते हैं। कीर्तन के समय हम बाबा का स्थान पवित्रता से रिक्त रखते हैं। हम मानते हैं कि जहां भी बाबा का नाम प्रेम और आस्था से लिया जाता है वहां बाबा अलौकिक रूप में उपस्थित रहते हैं। और ऐसा कई बार हुआ है कि कीर्तन के पश्चात जो महाभोग लगाया जाता है उसमें से कुछ कम बचता है और कुछ हिस्सा बाबा ग्रहण कर लेते हैं।

यहाँ तक कि बाबा के लिए हम जो रूमाल बिछाते हैं बह भी अगले दिन उपयोग किया हुआ दिखाई देता है। जिस कुर्सी पर बाबा का आसन बिछाते हैं वह भी अपने आप सिलवटों से भरा दिखाई पड़ता है जैसे अभी-अभी कोई उस पर से बैठकर गया हो। कई बार जब मैं बाबा की मन चित्त से प्रार्थना करता हूँ तो मेरा कमरा चंदन की सुगंध से भर उठता है।

हमने बाबा का अलग से कमरा बनवा रखा है। जहां बाबा की उपस्थिति का अहसास मैं शब्दों में नहीं बता सकता। यह अनुभव की बात है, विश्वास और श्रद्धा की बात है। हर किसी को इस पर विश्वास नहीं होता है तो इसमें उनका कोई दोष नहीं। उन्हें जब तक खुद अनुभव नहीं होता वे विश्वास कर भी कैसे सकते हैं? पर ना तो बाबा ने कभी कहा, ना हम भक्त कहते हैं कि बस बाबा को ही मानिए हम तो कहते हैं उस पवित्र आत्मा को महसूस कीजिए। विश्वास अपने आप होगा। एक बार मुसीबत में उन्हें पुकार कर देखिए। वे मदद के लिए जरूर आते हैं।

लक्ष्मी शिवराजन, गृहणी, हैदराबाद
मैं अपनी बेटी की शादी में बाबा का आशीर्वाद चाहती थी। मैं स्वयं पुट्टपर्थी उन्हें निमंत्रण पत्र देने गई थी। जब शादी वाले दिन बाबा नहीं आए तो मैं लगभग निराश हो गई थी। मुझे बहुत दुख हुआ कि बाबा क्यों नहीं पहुंचे। जब हम शादी में उपहार में आए लिफाफे खोलने के लिए बैठे तो आश्चर्य का ठिकाना ना रहा।

मेरे हाथ में सबसे पहला लिफाफा जो था वह पीले रंग का था उस पर कुमकुम से स्वस्तिक बना था और अंदर बाबा की भस्मी और 101 रुपए थे। मैं खुशी से नाचने लगी थी। बाबा शादी में आए थे लेकिन कब और किस रूप में यह हम पहचान नहीं पाए थे। बाद में हम सब पुट्टपर्थी दर्शन के लिए गए। वे नहीं रहे इस खबर पर हम भक्तों का विश्वास नहीं है क्योंकि वे वैसे भी सशरीर नहीं बल्कि आत्मिक रूप से हमारी मदद करते आए हैं और आगे भी करते रहेंगे। इस बात का दुख है कि साक्षात उन्हें नहीं देख सकेंगे।

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