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अलविदा रणथंभौर की रानी 'एरोहेड', बाघिन जिसके जाने से हुआ जंगल की एक सदी का अंत

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WD Feature Desk

, बुधवार, 25 जून 2025 (15:29 IST)
story of arrowhead tigress ranthambore: रणथंभौर, सवाई माधोपुर, राजस्थान के हरे-भरे जंगल में एक उदासी छा गई है। 19 जून 2025 को, रणथंभौर नेशनल पार्क की सबसे प्रिय और ताकतवर बाघिनों में से एक, एरोहेड (T-84) ने अपनी आखिरी सांस ली। उसकी मृत्यु पर ऐसा लगा मानो रणथंभौर सूना हो गया। जंगल के हर कोने से, और सोशल मीडिया पर भी, उसकी अंतिम विदाई की तस्वीरें और खबरें हर किसी की आंखों में आंसू ला रही थीं। 'रानी' की तरह जीती और बोन कैंसर से चार साल तक जूझती रही, एरोहेड का जाना रणथंभौर में एक युग के अंत जैसा है।

माथे पर तीर का निशान बना एरोहेड की पहचान
एरोहेड को यह अनूठा नाम उसके माथे पर बने तीर के आकार के निशान के कारण मिला था। यह निशान उसकी पहचान बन गया था, और जिसने भी उसे देखा, वह इस खूबसूरत बाघिन को कभी नहीं भूल पाया। वह सिर्फ एक बाघिन नहीं थी, वह रणथंभौर के गौरव का प्रतीक थी, जिसकी मौजूदगी मात्र से ही जंगल में एक अलग ही रौनक आ जाती थी।

मछली की विरासत: तीन पीढ़ियों का 'बाघिन राज'
एरोहेड की विरासत और भी गहरी थी क्योंकि वह मशहूर बाघिन मछली (Machali) की पोती थी। मछली, जिसे 'लेडी ऑफ द लेक' और 'मगरमच्छों को मारने वाली' के नाम से भी जाना जाता था, रणथंभौर की सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाली और सबसे ज्यादा फोटो खिंचवाने वाली बाघिनों में से एक थी। भारत सरकार ने उसे लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी सम्मानित किया था।

रणथंभौर में बाघिनों की यह वंशावली दशकों से इस पार्क पर राज कर रही है। पहले मछली (T-16), फिर उसकी बेटी कृष्णा (T-19) और तीसरी पीढ़ी के रूप में एरोहेड (T-84) ने इस वंशावली का मां बढ़ाया। इस 'बाघिन राज' ने रणथंभौर को न केवल एक वन्यजीव अभयारण्य के रूप में, बल्कि एक जीवित इतिहास के रूप में भी परिभाषित किया। एरोहेड इस शानदार वंशावली की एक महत्वपूर्ण कड़ी थी, जिसने अपनी दादी और मां की विरासत को गौरव के साथ आगे बढ़ाया।

आख़िरी शिकार और अदम्य साहस
एरोहेड के निधन को लेकर जो बात सबसे ज़्यादा हैरत में डाल रही है, वह यह कि उसकी मौत से ठीक एक दिन पहले उसने अपनी अविश्वसनीय शक्ति और शिकारी कौशल का प्रदर्शन करते हुए एक विशाल मगरमच्छ का शिकार किया था। बोन कैंसर से जूझते हुए भी उसकी यह अदम्य भावना और साहस यह दर्शाता है कि वह अंत तक एक सच्ची रानी बनी रही। यह उसकी जीवनी का एक ऐसा अध्याय है जो हमेशा उसकी अद्भुत शक्ति और इच्छाशक्ति का प्रमाण रहेगा।

रणथंभौर नेशनल पार्क में लगभग 70 बाघ-बाघिन रहते हैं, लेकिन एरोहेड की जगह हमेशा खाली रहेगी। उसकी यादें, उसके शिकार के किस्से, और उसका शालीन व्यक्तित्व हमेशा रणथंभौर वन्यजीव प्रेमियों और वन अधिकारियों के दिलों में जीवित रहेंगे। वह सिर्फ एक बाघिन नहीं थी, वह रणथंभौर की आत्मा का एक हिस्सा थी। 19 जून को एरोहेड ने आखिरी सांस ली। लेकिन एक बात बिल्कुल तय है वो जंगल की शान थी और उसकी यादें जंगल के सीने में हमेशा जिंदा रहेगी।

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