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कारगिल की जंग में भारत के साथ थे कौन से देश और किसने दिया था दुश्मन पाकिस्तान का साथ, जानिए इतिहास

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WD Feature Desk

, शनिवार, 26 जुलाई 2025 (17:01 IST)
who supported india in kargil war: 1999 का कारगिल युद्ध, भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऐसा सैन्य संघर्ष था जिसने न केवल दोनों देशों के बीच तनाव को चरम पर पर पहुंचाया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के मोर्चे पर भी एक महत्वपूर्ण अध्याय लिखा। जहां भारतीय सेना ने अपनी वीरता से घुसपैठियों को खदेड़ा, वहीं वैश्विक मंच पर भारत को मिले व्यापक समर्थन और पाकिस्तान के अलगाव ने युद्ध के परिणाम को निर्णायक रूप से प्रभावित किया। यह युद्ध सिर्फ़ सैन्य शक्ति का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि कूटनीतिक सूझबूझ और अंतरराष्ट्रीय संबंधों की अहमियत को भी दर्शाता है।

भारत के पक्ष में थे ये देश
कारगिल युद्ध के दौरान, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने बड़े पैमाने पर भारत के रुख का समर्थन किया, जिससे पाकिस्तान पर भारी कूटनीतिक दबाव पड़ा।
1. जी-8 देशों का समर्थन: कोलोन (Cologne) सम्मेलन में जी-8 (Group of Eight) देशों ने भारत के पक्ष में स्पष्ट बयान दिया। इस समूह में दुनिया की आठ प्रमुख औद्योगिक शक्तियां ,कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल थीं। उन्होंने नियंत्रण रेखा (Line of Control - LoC) के उल्लंघन के लिए पाकिस्तान की कड़ी निंदा की और उसे अपनी सेनाओं को तुरंत वापस बुलाने का निर्देश दिया। यह पाकिस्तान के लिए एक बड़ा कूटनीतिक झटका था, क्योंकि उसे उम्मीद थी कि ये देश तटस्थ रहेंगे या उसका पक्ष लेंगे।

2. यूरोपीय यूनियन का रुख: यूरोपीय यूनियन (European Union) ने भी नियंत्रण रेखा के उल्लंघन के लिए पाकिस्तान की आलोचना की। यूरोपीय देशों ने स्पष्ट रूप से कहा कि पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन किया है, जिससे भारत की स्थिति और मजबूत हुई।

3. आसियान क्षेत्रीय मंच का समर्थन: दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) के क्षेत्रीय मंच (ARF) ने भी भारत को समर्थन दिया। यह मंच एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग और संवाद को बढ़ावा देता है, और इसका समर्थन भारत की कूटनीतिक जीत का एक और प्रमाण था।

4. संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका: कारगिल युद्ध को भारत-अमेरिका संबंधों के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है। युद्ध से पहले अमेरिका का झुकाव पाकिस्तान की ओर अधिक था, लेकिन 1999 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने पाकिस्तान पर भारी कूटनीतिक दबाव डाला। उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को नियंत्रण रेखा से अपनी सेनाओं को वापस बुलाने के लिए मजबूर किया। यह पहली बार था जब अमेरिका ने युद्ध के दौरान पाकिस्तान की बजाय खुलकर भारत का समर्थन किया, जो दक्षिण एशिया में अमेरिकी विदेश नीति में एक बड़ा बदलाव था।

5. इजरायल का सैन्य सहयोग: कूटनीतिक समर्थन के अलावा, भारत को इज़रायल से महत्वपूर्ण सैन्य सहायता भी मिली। इज़रायल ने भारत को लेजर-गाइडेड बम और मिसाइलें प्रदान कीं, जिन्हें मिराज-2000 लड़ाकू विमानों में लगाकर पाकिस्तानी ठिकानों पर सटीक हमले किए गए। इज़रायल ने भारत को सर्विलांस ड्रोन भी दिए, जिनसे दुश्मनों की सटीक जानकारी और लोकेशन प्राप्त करने में मदद मिली। कारगिल युद्ध में भारत ने पहली बार ड्रोन का इस्तेमाल किया था, और इज़रायल की यह मदद 'गेमचेंजर' साबित हुई थी।

पाकिस्तान पड़ गया था अलग-थलग
कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारी अलगाव का सामना करना पड़ा। उसके किसी भी प्रमुख सहयोगी देश या अंतरराष्ट्रीय संगठन ने उसके आक्रामक कदम का समर्थन नहीं किया।
चीन से लगा बड़ा झटका: पाकिस्तान का सबसे करीबी दोस्त चीन भी इस मुद्दे पर बेहद संतुलित प्रतिक्रिया दे रहा था। उसने सीधे तौर पर पाकिस्तान के आक्रमण का समर्थन नहीं किया, बल्कि नियंत्रण रेखा पर संघर्ष-पूर्व स्थिति में सेना वापस बुलाने और सीमा मुद्दों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने पर जोर दिया। चीन की यह तटस्थता पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका थी, क्योंकि उसे बीजिंग से समर्थन की उम्मीद थी।
अन्य देशों का इनकार: पाकिस्तान ने कई देशों से मदद मांगी, लेकिन किसी भी बड़े देश ने उसे खुला समर्थन नहीं दिया। उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अकेला छोड़ दिया गया, जिससे उसके पास अपनी सेनाओं को वापस बुलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।

अंतरराष्ट्रीय दबाव का परिणाम
भारतीय सेनाओं के बढ़ते दबाव और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के कड़े रुख के कारण पाकिस्तान के पास कदम पीछे खींचने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था। भारतीय फ़ौजों ने पहले ही पाकिस्तानी घुसपैठियों को काफी पीछे खदेड़ दिया था, और अंतरराष्ट्रीय दबाव ने पाकिस्तान को अपनी हार स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया। यह भारत की सैन्य और कूटनीतिक, दोनों मोर्चों पर एक बड़ी जीत थी।

कारगिल युद्ध न केवल भारतीय सेना के अदम्य साहस और बलिदान का प्रतीक है, बल्कि यह भारत की सफल कूटनीति का भी एक शानदार उदाहरण है। वैश्विक मंच पर भारत को मिला व्यापक समर्थन और पाकिस्तान का अलगाव इस बात का प्रमाण है कि जब कोई देश न्याय और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के पक्ष में खड़ा होता है, तो दुनिया उसके साथ खड़ी होती है। यह युद्ध भारतीय विदेश नीति के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ, जिसने भारत को एक जिम्मेदार और शक्तिशाली वैश्विक खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया।
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