कुंभ मेला, दान के तीन रूप

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दान के तीन रूप इस प्रकार हैं:- नित्य, नैमित्तिक और काम्य। जो दान हर रोज दिया जाता है, वह नित्य दान कहा जाता है। जो दान खास अवसर जैसे-ग्रहण वगैरह के समय में दिया जाता है, उसे नैमत्तिक कहा गया है। काम्य दान उसे कहते हैं, जिसे करने पर किसी कामना की पूर्ति होती है। शत्रु पर विजय, पुत्र, धन, स्वर्ग या श्रेष्ठ पत्नी पाने की इच्छा से किए गए दान इसी श्रेणी में आते हैं।

गीता में दान को सात्विक, राजस और तामस इन तीन श्रेणियों में बांटा गया दान वह है जो देशकाल और पात्र के अनुसार कर्त्तव्य समझकर किया जाता है और दान लेने वाला उसे अस्वीकार नहीं करता। राजस दान वह है जो किसी इच्छा की पूर्ति के लिए उत्साह के बिना किया जाता है। तामस दान वह है, जो अनुचित काल, स्थान और पात्र को श्रद्धा के बिना दिया जाता है।

दान के स्थल : दान खास जगह देने से विशेष पुण्य फल देते हैं। घर में दिया गया दान दस गुना, गोशाला में दिया गया दान सौ गुना, तीर्थों में हजार गुना, और शिवलिंग के समक्ष किया गया दान अनन्तफल देता है।

गंगासागर, वाराणसी, कुरुक्षेत्र, पुष्कर, तीर्थराज, प्रयाग, समुद्र के तट, नैमिशारण्य, अमरकण्टक, श्रीपर्वत, महाकाल (उज्जैन), गोकर्ण, वेद-पर्वत दान के लिए अति पवित्र स्थल माने गए हैं।

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