नागा बाबा बनने के 'तप' को जानिए

- आलोक त्रिपाठी (इलाहाबाद से)

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आम लोगों में नागा साधुओं को लेकर तरह-तरह की धारणा है। आम आदमी नागा साधु कैसे बनता है, इसके पीछे कितनी कठिन तपस्या से उसको गुजरना पड़ता है, शायद लोग यह बात नहीं जानते होंगे। इस कठिन परीक्षा के दौरान उसके ऊपर पूरी निगाह रखी जाती है।

इस परीक्षा के दौरान ही उसको स्वयं का पिंडदान और तर्पण अर्थात खुद का क्रिय ा- कर्म तक करना पड़ता है क्योंकि इससे उसके मन में वैराग्य उत्पन्न होता है। इसके बाद सभी परीक्षाओं में पास होने के बाद ही उसको नागा साधु बनाया जाता है। इसलिए किसी के लिए भी नागा बनना आसान काम नहीं है।

जब भी कोई व्यक्ति किसी अखाड़े में साधु बनने जाता है तो कभी भी उसे सीधे अखाड़े में शामिल नहीं किया जाता। जिस अखाड़े में वो शामिल होने जाता है उस अखाड़े के लोग उसके बारे में अपने स्तर पर पूरी जानकारी एकत्र करते हैं। मसलन, वह किस परिवार से ताल्लुक रखता है, उसकी पारिवारिक स्थिति कैसी है। वह साधु क्यों बनना चाहता है और क्या वह साधु बनने लायक है कि नहीं। यदि सब कुछ ठीक होता है तो फिर शुरू होता है उसकी परीक्षा का दौर।

सबसे पहले उसे अखाड़े में प्रवेश देने के बाद उसकी ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है, जिसमें कम से कम 6 माह और ज्यादा से ज्यादा बारह वर्ष लगते हैं। जब उस अखाड़े का मुखिया पूरी तरह से संतुष्ट हो जाता है और इस बात का पूरी तरह से ज्ञान हो जाता है कि वह व्यक्ति वासना और इच्छाओं से मुक्त हो चुका है तभी उसको अगली प्रक्रिया में ले जाया जाता है।

ब्रह्मचर्य की परीक्षा पास होने के बाद ही उसे महापुरुष बनाया जाता है और उसके पांच गुरु बनाए जाते हैं, जो पंचदेव या पंच परमेश्वर होते हैं। फिर उसे भस्म, भगवा, रुद्राक्ष आदि वस्तुएं दी जाती है, जो नागाओं के प्रतीक और आभुषण होते हैं।

महापुरुष के बाद नागाओं को अवधूत बनाया जाता है। इसमें सबसे पहले उसे अपने बाल कटवाने होते हैं, इसके लिए अखाड़ा परिषद की रसीद भी कटती है। अवधूत रूप में दीक्षा लेने वाले को खुद का तर्पण और पिंडदान करना होता है। यह पिंडदान अखाड़े के पुरोहित कराते हैं। इस तरह से यह संसार और परिवार के लिए मृत हो जाते हैं।

इस परीक्षा में सबसे कठिन परीक्षा जो होती है वह होती है अंग भंग की। इस परीक्षा के लिए व्यक्ति को चौबीस घंटे नागा रूप में अखाड़े के ध्वज के नीचे बिना कुछ खाए पिए खड़ा होना पड़ता है। इस दौरान उनके कंधे पर एक दंड और हाथ पर मिट्टी का एक बर्तन होता है।

इस प्रक्रिया के दौरान उस पर अखाड़े के पहरेदार निगाह रखते हैं। इसी दौरान अखाड़े के साधु-संत उसके लिंग को वैदिक मंत्रों के साथ झटके देकर निष्क्रीय करते हैं। इस प्रक्रिया के बाद ही वह नागा साधु बन पाता है।

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