विदेशियों में हिंदू संत बनने की होड़

- आलोक त्रिपाठी

Webdunia
शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013 (20:26 IST)
PTI
कुंभ नगरी में विदेशी श्रद्धालुओं, खासकर महिला विदेशी श्रद्धालुओं ने बॉलीवुड के सितारों को भी फेल कर दिया है। इनको देखने, इनसे बात करने और उनके फोटो खींचने की ही नहीं बल्कि उनके साथ फोटो खिंचवाने की भी होड़ दिखती है।

कुंभ के विदेशी श्रद्धालु केवल आकर्षण के केंद्र ही नहीं हैं, वे अखाड़ों और आश्रमों की धन, धमक, धाक और शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक भी बन चुके हैं। जिस अखाड़े या आश्रम के पास जितने विदेशी श्रद्धालु हैं वह उतना ही शक्तिशाली माना जाता है। यही वजह है कि कुंभ नगरी में जब तब कोई न कोई महामंडलेश्वर अपने विदेशी श्रद्धालुओं के साथ संगम तक रोड शो करता नजर आता है।

कुंभ में करीब 6 आश्रम ऐसे हैं जिनमें विदेशी श्रद्धालु अधिक ठहरे हैं। अरैल में परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानंद मुनि सैकड़ों विदेशी श्रद्धालुओं के साथ डेरा जमाए हैं तो डॉक्टर योगी सत्यम कनाडा के श्रद्धालुओं के साथ धाक जमाए हुए हैं।
पायलट बाबा का तो कहना ही क्या। विदेशियों के बारे में हर एक की जुबान पर उन्हीं का नाम है और सतुआ बाबा का नाम भी विदेशी श्रद्धालुओं की आमद के लिए जाना जाता है। हर शाम 'इस्कॉन' के विदेशी श्रद्धालु भजनों पर नृत्य की मुद्रा में दिखते ही हैं।

विदेशी श्रद्धालुओं की भूमिका वेद, तप, अध्यात्म और धर्म प्रचार तक सीमित नहीं है। अखाड़ों और आश्रमों की व्यवस्था में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो किसी धर्म गुरु के शिष्य हैं और अपने अपने देशों में अपने गुरु के योग-अध्यात्म केंद्र चलाते हैं। वहां ये लोग भी शिष्य बनाते हैं और उन्हें कुंभ जैसे अवसरों पर लेकर आते हैं।

इटली के डेविड देल्गेतो और उनकी पत्नी फ्रांसेस्का पैन्तानो भारतीय मुद्रा में दिखते हैं। फ्रांसेस्को साड़ी लपेटे, बिंदिया, सिंदूर, मेंहदी लगाए सबको नमस्ते करती नजर आती हैं।

बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स के बरूनो बर्गर 13 साल से हिन्दू धर्म से जुड़े हैं, वहीं हिंदी सिखाने का स्कूल खोल रखा है। कल्पवास कर रहे हैं, तीन बार स्नान और एक टाइम स्वयं का बना भोजन। ये इससे पहले 2007 में भी अर्धकुंभ कर चुके हैं।

महामंडलेश्वर पुरीजी महाराज के शिविर में चेक रिपब्लिक के वासुदेव ट्राली-बेलचा लेकर जमीन साफ कर रहे हैं तो लैंका फूलों की क्यारियां दुरुस्त कर रही हैं। यहीं की तुलसी हिन्दू धर्म से बहुत प्रभावित हैं, कहती हैं, भारत सहृदय लोगों का देश है।

ऑस्ट्रेलिया के सिडनी की इल्डर किचेन संभाल रही हैं तो वहां के फिजियोथेरेपिस्ट और यहां महामंडलेश्वर जसराज उपनिषद और भगवत गीता में निपुण हैं, 1994 से हिन्दू धर्म से जुड़े हैं और कुंभ में आए हैं। स्लोवानिया की स्पैल पुकाजी यहां आकर दुर्गा देवी हो चुकी हैं।

ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स के आंद्रे टर्नर अपनी पत्नी वर्जीनिया के साथ कुंभ में श्रद्धालुओं की सेवा कर रहे हैं। इस दम्पति के चार बच्चे और तीन दोस्त भी आए हैं। टर्नर परिवार 1989 से हिन्दू धर्म से जुड़ा है और इस बार कुंभ में ये कल्पवास भी कर रहे हैं। इन लोगों ने श्रद्धालुओं की सेवा करने का अद्भुत तरीका निकाला है। वे 18 गुना 6 फीट की एक नाव बनाकर लोगों को संगम पर इस सिरे से दूसरे सिरे तक श्रद्धालुओं को नाव के पहुंचाने का काम कर रहे हैं।

वर्जीनिया हिन्दू धर्म की गहरी जड़ों पर आश्चर्य चकित हैं। हार्वर्ड विश्विद्यालय के बिजनेस स्कूल का रिसर्च ग्रुप पांच दिन तक कुंभ में 'क्या धरती पर इतना बड़ा आयोजन संभव है' जैसे विषय पर शोध कर वापस जा चुका है।

पायलट बाबा के जिक्र के बिना विदेशी श्रद्धालुओं की चर्चा शायद अधूरी है। विदेशी श्रद्धालुओं के संख्या बल के मामले में इनको वर्चस्व हासिल है। सेक्टर-9 में इनके हाई-फाई आश्रम में हर कोई जाना चाहता है।

पायलट बाबा भगवा वस्त्र धारण करने से पहले भारतीय सेना में विंग कमांडर थे। अपनी पूरी पेंशन फौजियों की विधवाओं के लिए दे देते हैं। उनके शिष्य स्वामी आनंद सरस्वती ने रूस में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है, लेकिन अब अध्यात्म में रच बस गए हैं। कहते हैं, 'आधुनिक परिधान पहन जो पाना था पा लिया, अब गेरुए में उच्चतम पाने की इच्छा है।'

आनंद सरस्वती आश्रम में वे दुभाषिये की भूमिका निभाते हैं। भगवाधारी इलिया अब विष्णु हैं और रूस में 108 मंदिरों की श्रृंखला चलाते हैं। व्लादिमिर ध्यान में मग्न है, अब इसका नाम विवेकानंद गिरी हो गया है।

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