इलाहाबाद महाकुम्भ : धार्मिक अनुष्ठान

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कुम्भ नगरी के नाम से पूरी दुनिया में विख्यात इलाहाबाद में जनवरी 2013 में लगने वाले महाकुम्भ के लिए तीर्थ नगरी प्रयाग के लाखों साधु-संतों ने अपनी तैयारी पूर्ण कर ली है।

देश के प्रमुख तेरह अखाड़ों के महामंडलेश्वरों तथा परमाध्यक्षों के महाकुम्भ में लगने वाले अस्थायी शिविरों और आश्रमों में सजावट तथा धार्मिक अनुष्ठान में काम आने वाली सामग्री इलाहाबाद भेजने का कार्य भी पूर्णता की ओर है।

इलाहाबाद में आगामी 14 जनवरी से महाकुम्भ शुरू होगा जो मार्च तक जारी रहेगा। बैरागी शिविर के साधु रामगोपाल दास ने बताया कि महाकुम्भ 2013 के अवसर पर निकलने वाले शाही जुलूसों, पेशवाइयों तथा अन्य समारोहों के लिए अभी से तैयारी शुरू कर दी गई है।

इस अवसर के लिए विभिन्न अखाड़ों की ध्वजाओं को स्थापित करने के लिए चालीस फीट लंबे बांसों को करीने से सजा कर स्थापित किया जाता है। इसके लिए काफी पहले से ही तैयारी की जाती है। वर्ष 2010 में संपन्न हुए महाकुम्भ की जबर्दस्त सफलता के बाद अब लाखों की संख्या में साधुओं तथा संतों ने इलाहाबाद की ओर रूख कर लिया है।

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इलाहाबाद में गंगा-यमुना तथा अदृश्य सरस्वती के संगम किनारे अभी से ही तंबुओं, बांस-बल्लियों से शिविर बनाने का काम लगभग पूरा होन े क ो है।

संत रामगोपाल दास ने बताया कि विभिन्न अखाड़ों के सामान में शाही सामान, सोने-चांदी के सिंहासन, पालकियां, सोने-चांदी की छड़ियां तथा दंड, हाथियों की पीठ पर रखे जाने वाले हौद, उंटों की पीठ पर रखे जाने वाले छकडे़, हौदों के ऊपर लगाए जाने वाले छत्र तथा अन्य धार्मिक वस्तुओं को अभी से इलाहाबाद रवाना किया जा रहा है ताकि उनकी साफ-सफाई और अन्य अनुष्ठान समय रहते पूरे किए जा सकें।

रामानंद सम्प्रदाय के साधु संकर्षण दास ने कहा कि 2010 के कुम्भ में संतों के कुछ आपसी मतभेद के चलते अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद टूट गई थी, लेकिन इलाहाबाद महाकुम्भ के दौरान इसे फिर से एकजुट करने की कोशिश की जा रही है। हालांकि इस सिलसिले में अभी आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है।

उन्होंने कहा कि अधिकांश साधुओं तथा संतों का मानना है कि महाकुम्भ का आयोजन निर्विवाद ढंग से शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हो और प्रशासन को भी चाहिए कि किसी प्रकार की टकराव की स्थिति उत्पन्न नहीं होने दें।

दास ने कहा कि 2010 के महाकुम्भ में जब शाही स्नान की तिथियों को लेकर कुछ मतभेद हो गया था, तो उत्तराखंड के शासन और प्रशासन ने बड़ी सूझबूझ से तीन शाही स्नान की जगह चार शाही स्नान करा दिए थे, जिससे सभी साधु-संतों के बीच प्रसन्नता और सद्भाव का माहौल देखा गया।

2010 में संपन्न हुए कुम्भ मेले में ऐसा पहली बार हुआ था जब तेरहों अखाड़ों के प्रतिनिधियों ने एक साथ गंगा में स्नान किया। उन्होंने कहा अखाड़ों की छोटी-छोटी समस्याओं को प्रशासन द्वारा उनकी धार्मिक आस्था का ख्याल रखते हुए सुलझाने का प्रयास करना चाहिए।

रागी शिविर के ही एक अन्य साधु रामचन्द्र दास ने बताया कि महाकुम्भ पूरी तरह से एक ऐसा धार्मिक आयोजन है, जिसकी पूरी दुनिया में कोई मिसाल नहीं मिलती। महाकुम्भ के लिए किसी प्रकार का न तो प्रचार किया जाता है और न ही इसमें आने के लिए लोगों से मिन्नतें की जाती हैं। तिथियों के पंचांग की एक तारीख ही करोड़ों लोगों को महाकुम्भ में आने के निमंत्रण का कार्य करती है।

उन्होंने बताया कि वर्ष 2010 में लगे कुम्भ में दो करोड़ से भी अधिक लोगों ने हिस्सा लिया था, जबकि इलाहाबाद में लगने वाले महाकुम्भ में छह करोड़ से भी अधिक लोग हिस्सा लेंगे। इसके लिए अभी से विभिन्न अखाड़ों तथा आश्रमों द्वारा हजारों की संख्या में तंबू शिविरों का निर्माण कराया जा रहा है।

कुछ शिविर तो प्रशासन द्वारा भी मुहैया कराए जाते हैं, लेकिन आश्रमों और अखाड़ों द्वारा उनको अपने रीति-रिवाज तथा मान्यताओं के अनुसार सजाया जाता है।

आसपास के कई सामाजिक संगठनों ने भी अपना-अपना शिविर लगाने के लिए इलाहाबाद जाना शुरू कर दिया है। सामाजिक संगठनों द्वारा महाकुम्भ के दौरान धार्मिक आयोजनों के लिए सहयोग दिया जाता है।

दास ने बताया कि विभिन्न अखाड़ों से हजारों की संख्या में साधु और संत अभी से इलाहाबाद के लिए रवाना हो गए हैं, जो वहां आश्रमों के शिविरों के निर्माण कार्य की देख-रेख कर रहे हैं तथा धार्मिक आयोजन के अवसर पर प्रयुक्त होने वाले सामान को भी इलाहाबाद भेजा जा रहा है।


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