कुंभ पर्व, तीनों तीर्थ में गंगा नदी दुर्लभ

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मायापुरी (हरिद्वार) भी प्रयाग की तरह शैव और वैष्णवों का संगम स्थल है। गंगा यूं तो अपने प्रवाह के सभी ठिकानों पर पूजन के योग्य मानी जाती है, लेकिन तीन स्थानों पर उसे दुर्लभ कहा गया है। दुर्लभ का अर्थ है कि तीन तीर्थों में गंगा बड़े भाग्य से मिलती है। ये तीन स्थान हैं, हरिद्वार, प्रयाग और गंगा सागर।

गौतमी गंगा : इन तीन तीर्थों का अंतरसंबन्ध गंगा की पुण्यगरिमा से प्रमाणित होता है। त्र्यंबकेश्वर तीर्थ (नासिक) कुंभ पर्व का केन्द्र है। यह गोदावरी के तट पर स्थित है। पवित्र गोदावरी का दूसरा नाम गौतमी गंगा है। पुराण के अनुसार, महर्षि गौतम ने सूखे से पीड़ित प्राणियों की जीवन रक्षा के लिए कठोर तप किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने प्रकट होकर उनसे वरदान मांगने को कहा।

सभी प्राणियों के कष्ट दूर करने को आतुर ऋषि ने यह वरदान मांगा कि गंगा, स्वयं उनके तपोवन में आए। वे अपनी धारा से इस क्षेत्र के सभी प्राणियों को धन-धान्य और सुख-सम्पदा का वरदान दें। गौतम ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा को उस क्षेत्र में प्रकट होना पड़ा, इसीलिए उन्हें गौतमी गंगा नाम दिया गया।

पुराणों के अनुसार तीर्थराज प्रयाग में सभी तीर्थ निवास करते हैं। खासतौर से माघ महीने में उन्हें अपने राजा के पास आना पड़ता है। गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है-

देव, दनुज, किन्नर नर श्रेनी।
सादर मज्जहिं सकल त्रिवेणी॥

त्रिवेणी के पवित्र जल में स्नान करके देवता भी धन्य हो जाते हैं। अर्धकुंभ और कुंभ योग की पुण्यगरिमा ऐसी है, जिससे प्रभावित होकर सभी देवताओं को तीर्थराज प्रयाग में आना पड़ता है। गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है-

माघ मकरगति जब रवि होई।
तीरथपतिहिं आव सब कोई॥

यह अंतरसम्बन्ध बहुदेववादी हिन्दू तीर्थों का संस्कृति में एकता का परिचायक है। विविधता में एकता का यह अनूठा सांस्कृतिक उदाहरण है।
- वेबदुनिया संदर्भ

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