कुंभ में प्रयाग का विशेष महत्व क्यों?

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प्रयाग- प्र- अर्थात बड़ा एवं याग- अर्थात यज्ञ जहां पर हुआ उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ गया। इस स्थान के अति सुरक्षित होने के कारण ही रावण जैसा बलशाली भी समस्त प्रयाग क्षेत्र के पास फटक भी नहीं पाया। उसने कैलाश पर्वत पर जाने के लिए बहुत घूमकर अंग-उड़ीसा, बंग-बंगाल एवं श्याम देश होकर रास्ता अपनाया। सीधे काशी, प्रयाग अथवा अयोध्या आदि का रास्ता नहीं अपनाया।

इसी परम पावन स्थल पर देवताओं ने मिलकर तप एवं सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए आराधना की। सूर्य देव प्रसन्न हुए। तथा उन्होंने वरदान दिया कि मेरे अपने पुत्र के घर में अर्थात मकर एवं कुंभ राशि में रहते जो भी व्यक्ति इस अति पवित्र संगम स्थल पर मेरी आराधना करेगा उसे कभी कोई कष्ट अथवा व्याधि नहीं सताएगी।

वेद में प्रयाग का महत्व :

सितासिते सरिते यत्र संगते तत्राअप्लुप्तअसो दिवमुत्पन्ति।
ये वै तन्वं विसृजन्ति धोरास्ते जनाऽसो ऽमृतत्वं भजन्ते।।

जिनके जल श्वेत और श्याम वर्ण के हैं, जहां गंगा और यमुना मिलती है, उस प्रयाग संगम में स्नान करने वालों को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। और धीर पुरूष वहां शरीर का त्याग करते हैं, उन्हें अमृत्व अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति होती है।

- वेबदुनिया संदर्भ
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