कुंभ मेला : हिंदू संगम का उत्सव

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सनातन हिंदू धर्म में कुंभ मेले का बहुत महत्व है। वेदज्ञों अनुसार यही एकमात्र मेला, त्योहार और उत्सव है जिसे सभी हिंदुओं को मिलकर मनाना चाहिए। धार्मिक सम्‍मेलनों की यह परंपरा भारत में वैदिक युग से ही चली आ रही है जब ऋषि और मुनि किसी नदी के किनारे जमा होकर धार्मिक, दार्शनिक और आध्‍यात्मिक रहस्यों पर विचार-विमर्श किया करते थे। यह परंपरा आज भी कायम है।

कुंभ मेले के आयोजन के पीछे बहुत बड़ा विज्ञान है। जब-जब इस मेले के आयोजन की शुरुआत होती है सूर्य पर हो रहे विस्फोट बढ़ जाते हैं और इसका असर धरती पर भयानक रूप में होता है। देखा गया है प्रत्येक ग्यारह से बारह वर्ष के बीच सूर्य पर परिवर्तन होते हैं।

कुंभ को विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन या मेला माना जाता है। इतनी बड़ी संख्या में सिर्फ हज के दौरान ही मक्का में मानव समुदाय इकट्ठा होता है। कुंभ लोगों को जोड़ने का एक माध्यम है जो प्रत्येक बारह वर्ष में आयोजित होता है।

कुंभ का आयोजन प्रत्येक बारह साल में चार बार किया जाता है अर्थात हर तीन साल में एक बार चार अलग-अलग स्‍थानों पर लगता है। अर्द्धकुंभ मेला प्रत्येक छह साल में हरिद्वार और प्रयाग में लगता है जबकि पूर्णकुंभ हर बारह साल बाद केवल प्रयाग में ही लगता है। बारह पूर्ण कुंभ मेलों के बाद महाकुंभ मेला भी हर 144 साल बाद केवल इलाहाबाद में ही लगता है।

' भारत' से मिलना हो तो कुंभ में जरूर जाएं। तरह-तरह के लोग, भांति-भांति के नजारे देखने को मिलते हैं। करतबी साधु, तपस्वी योगी, चमत्कारिक बाबा, सामान्य गृहस्थजन, बाजीगर, स्नान-अखाड़े, ढोल-ढमाके, गाजे-बाजे और लोगों के हुजूम का दुर्लभ नजारा मंत्रमुग्ध कर देता है।

सशरीर उपस्थित होकर इस हलचल में भागीदारी करना, इस तिलिस्म का जायजा लेना एक रोमांचकारी अनुभव होता है जिसकी बराबरी किसी भी आभासी अनुभव से शायद ही हो सकती है।

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