गुरुपूर्णिमा पर होता है महर्षि वेदव्यास का पूजन

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महर्षि वेदव्यास : भगवान के अवतार

महर्षि वेदव्यास जी भगवान के अवतार हैं, वे अमर हैं। महान विभूति वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व में हुआ था। महर्षि व्यास का पूरा नाम कृष्णद्वैपायन है। उन्होंने वेदों का विभाग किया, इसलिए उनको व्यास या वेदव्यास कहा जाता है। उनके पिता महर्षि पराशर तथा माता सत्यवती है। 
 
भारत भर में गुरुपूर्णिमा के दिन गुरुदेव की पूजा के साथ महर्षि व्यास की पूजा भी की जाती है। महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के कालावतार माने गए हैं। द्वापर युग के अंतिम भाग में व्यासजी प्रकट हुए थे। उन्होंने अपनी सर्वज्ञ दृष्टि से समझ लिया कि कलियुग में मनुष्यों की शारीरिक शक्ति और बुद्धि शक्ति बहुत घट जाएगी। इसलिए कलियुग के मनुष्यों को सभी वेदों का अध्ययन करना और उनको समझ लेना संभव नहीं रहेगा।
 
व्यासजी ने यह जानकर वेदों के चार विभाग कर दिए। जो लोग वेदों को पढ़, समझ नहीं सकते, उनके लिए महाभारत की रचना की। महाभारत में वेदों का सभी ज्ञान आ गया है। धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, उपासना और ज्ञान-विज्ञान की सभी बातें महाभारत में बड़े सरल ढंग से समझाई गई हैं।
 
इसके अतिरिक्त पुराणों की अधिकांश कथाओं द्वारा हमारे देश, समाज तथा धर्म का पूरा इतिहास महाभारत में आया है। महाभारत की कथाएं बड़ी रोचक और उपदेशप्रद हैं। सब प्रकार की रुचि रखने वाले लोग भगवान की उपासना में लगें और इस प्रकार सभी मनुष्यों का कल्याण हो। इसी भाव से व्यासजी ने अठारह पुराणों की रचना की।
 
इन पुराणों में भगवान के सुंदर चरित्र व्यक्त किए गए हैं। भगवान के भक्त, धर्मात्मा लोगों की कथाएं पुराणों में सम्मिलित हैं। इसके साथ-साथ व्रत-उपवास को की विधि, तीर्थों का माहात्म्य आदि लाभदायक उपदेशों से पुराण परिपूर्ण है।
 
वेदांत दर्शन के रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास ने वेदांत दर्शन को छोटे-छोटे सूत्रों में लिखा गया है, लेकिन गंभीर सूत्रों के कारण ही उनका अर्थ समझने के लिए बड़े-बड़े ग्रंथ लिखे हैं। 
 
धार्मिक मान्यता के अनुसार ही गुरुपूर्णिमा पर गुरुदेव की पूजा के साथ ही महर्षि व्यास की पूजा भी की जाती है। हिन्दू धर्म के सभी भागों को व्यासजी ने पुराणों में भली-भांति समझाया है। महर्षि व्यास सभी हिन्दुओं के परम पुरुष हैं। 
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