पाण्डुरंग शास्त्री अठावले प्रसिद्ध भारतीय दार्शनिक तथा समाज सुधारक थे। उनका जन्म 19 अक्टूबर 1920 को मुंबई में और निधन 25 अक्टूबर 2003 को मुंबर में ही हुआ था। उन्हें समाज में 'दादा' (बड़ा भाई) के नाम से भी जाना जाता था। आओ जानते हैं उनका परिचय।
1. पाण्डुरंग अठावले जी ने स्वाध्याय के माध्यम से समामज में आत्म चेतना जगाने कार्य किया। अठावले ने वेदों, उपनिषदों तथा हिंदू संस्कृति की में निहित आत्मा के महत्व को जागृत करके सामाजिक रूपांतरण में उस ज्ञान तथा विवेक का प्रयोग सम्भव बनाया।
2. 1954 में पाण्डुरंग को शिम्त्सु जापान में 'दूसरा विश्व धर्म सम्मेलन' में भाग लेने का अवसर मिला था जहां पर उन्होंने भारतीय दर्शन, संस्कृति, धर्म और वैदिक ज्ञान पर पर व्याख्यान दिया था।
3. अठावले के आह्वान पर 1958 में उनके भक्तों ने गांव-गांव जाकर स्वाध्याय की महिमा सबको बतानी शुरू की।
4. 1964 में पोप पॉल चतुर्थ भारत आए और उन्होंने दादा से उनके दर्शन को लेकर चर्चा की।
5. उन्हें वर्ष 1988 में उन्हें 'महात्मा गांधी पुरस्कार' और सन 1997 में उन्हें धर्म के क्षेत्र में उन्नति के लिए 'टेम्पल्टन पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
6. 1999 में 'रेमन मैग्सेसे पुरस्कार' और 1999 में ही 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया गया।
7. पाण्डुरंगजी ने वर्ष 1956 में 'तत्व ज्ञान विद्यापीठ' नामक एक विद्यालय की स्थापना की थी।