Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(कामदा एकादशी)
  • तिथि- चैत्र शुक्ल एकादशी
  • शुभ समय- 7:30 से 10:45, 12:20 से 2:00 तक
  • व्रत/मुहूर्त-कामदा एकादशी, दादा ठनठनपाल आनंद महो.
  • राहुकाल-प्रात: 10:30 से 12:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

संत ज्ञानेश्वर पुण्यतिथि : जानिए 7 रोचक जानकारी

हमें फॉलो करें संत ज्ञानेश्वर पुण्यतिथि : जानिए 7 रोचक जानकारी

अनिरुद्ध जोशी

, सोमवार, 25 अक्टूबर 2021 (11:17 IST)
ज्ञानेश्वर का जन्म 1275 ईस्वी में महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले में पैठण के पास आपेगांव में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था। मात्र 21 वर्ष की उम्र में संसार का परित्याग कर समाधि ग्रहण की तथा 1296 ई. में उनकी मृत्यु हुई।
 
 
1. इन 21 वर्षीय संत के 1400 वर्षीय संत चांगदेव महाराज शिष्य थे।
 
2. ऐसी किंवदंती है कि एक बार किसी नटखट व्यक्ति ने ज्ञानेश्वर जी का अपमान कर दिया। उन्हें बहुत दुख हुआ और वे कक्ष में द्वार बंद करके बैठ गए। जब उन्होंने द्वार खोलने से मना किया, तब मुक्ताबाई ने उनसे जो विनती की वह मराठी साहित्य में ताटीचे अभंग (द्वार के अभंग) के नाम से अतिविख्यात है।
 
3. ज्ञानेश्वर ने मराठी भाषा में भगवद्‍गीता के ऊपर एक 'ज्ञानेश्वरी' नामक दस हजार पद्यों का ग्रंथ लिखा है। 'ज्ञानेश्वरी', 'अमृतानुभव' ये उनकी मुख्य रचनाएं हैं। भारत के महान संतों एवं मराठी कवियों में संत ज्ञानेश्वर की गणना की जाती है।
 
4. महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत नामदेव जी संत ज्ञानेश्वर के शिष्य थे।
 
5. एक बार चांगदेवजी बाघ पर सवार होकर और उस बाघ को सर्प की लगाम लगाकर संत ज्ञानेश्‍वर से मिलने के लिए निकले। यह सोचकर की ज्ञानेश्‍वरजी प्रभावित जाएंगे। उनके साथ उनके शिष्य भी थे। चांगदेव को अपनी सिद्धि का बढ़ा गर्व था। जब संत ज्ञानेश्वरजी को ज्ञात हुआ कि चांगदेव मिलने आ रहे हैं। तब उन्हें लगा कि आगे बढकर उनका स्वागत-सत्कार करना चाहिए।  उस समय सन्त ज्ञानेश्वर जिस भीत पर (चबूतरा) बैठे थे, उस भीत को उन्होंने चलने का आदेश दिया। उस चबूतरे पर उनकी बहिन मुक्ताबाई और दोनों भाई निवृत्तिनाथ एवं सोपानदेव भी बैठे थे। चबूतरा खुद-ब-खुद चलने लगा। जब चांगदेव ने चबूतरे को चलते देखा, तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। तब उन्हें विश्वास हो गया कि संत ज्ञानेश्वर मुझसे श्रेष्ठ हैं क्योंकि, उनका निर्जीव वस्तुओं पर भी अधिकार है। मेरा तो केवल जीवित प्राणियों पर अधिकार है। उसी पल चांगदेव महाराज के ज्ञानेश्वरजी के चरण छुए और वे उनके शिष्य बन गए। कहते हैं कि ऐसा दृश्य देखकर चांगदेव के शिष्य उनसे रुष्ठ होकर उन्हें छोड़कर चले गए थे।

6. ‘ज्ञानेश्वरी’ नाम का यह ग्रंथ मराठी भाषा का अद्वितीय ग्रंथ माना जाता है। यह ग्रंथ 10,000 पद्यों में लिखा गया है।
 
7. 28 अभंगों (छंदों) की इन्होंने 'हरिपाठ' नामक एक पुस्तिका लिखी है। इसके अतिरिक्त संत ज्ञानेश्वर के रचित कुछ अन्य ग्रंथ हैं- ‘अमृतानुभव’, ‘चांगदेवपासष्टी’, ‘योगवसिष्ठ टीका’ आदि। 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Deepawali Decoration : घर को बनाना है खूबसूरत तो अपनाएं वास्तु-फेंगशुई के ये 5 टिप्स