Hanuman Chalisa

महाप्रभु वल्लभाचार्य का प्राकट्य‍ दिवस

Webdunia
महाप्रभुजी श्री वल्लभाचार्य का प्राकट्य वैशाख कृष्ण एकादशी को चम्पारण्य (रायपुर, छत्तीसगढ़) में हुआ था। सोमयाजी कुल के तैलंग ब्राह्मण लक्ष्मण भट्ट और माता इलम्मागारू के यहां जन्मे वल्लभाचार्य का अधिकांश समय काशी, प्रयाग और वृंदावन में ही बीता। काशी में ही उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई और वहीं उन्होंने अपने मत का उपदेश भी दिया। 
 
मात्र 7 वर्ष की उम्र में यज्ञोपवीत धारण करने के बाद 4 माह में ही वेद, उपनिषद आदि शास्त्रों का अध्ययन किया तथा 11 वर्ष की आयु में अपनी अद्भुत प्रतिभा का प्रमाण देते हुए दक्षिणांचल में विजय नगर के राजा कृष्णदेव की राज्यसभा में उपस्थित होकर संपूर्ण विद्वानों को निरुत्तर कर दिया था।

उनके अलौकिक तेज एवं प्रतिभा से प्रभावित होकर राजा ने उन्हें आचार्य पद पर प्रतिष्ठापित किया। इसका राज्यसभा में उपस्थित सभी संप्रदाय के आचार्यों ने अनुमोदन किया। आचार्य पद प्राप्त करने के बाद आपने तीन बार भारत भ्रमण कर शुद्धाद्वैत पुष्टिमार्ग संप्रदाय का प्रचार कर शिष्य सृष्टि की अभिवृद्धि की तथा 84 भागवत पारायण की। जिन-जिन स्थानों पर पारायण की थी वे आज भी 84 बैठक के नाम से जानी जाती हैं तथा वहां जाने पर शांति का अनुभव होता है।
 
वल्लभाचार्य ने अपना दर्शन खुद गढ़ा था लेकिन उसके मूल सूत्र वेदांत में ही निहित हैं। समष्टिगत चेतना का अवतरण जिस स्थूल तनधारी में होता है तो वह सामान्य न रहकर भगवत्सस्वरूप ही हो जाता है। उसी श्रेणी में आचार्य वल्लभ का स्वरूप आता है। आचार्य वल्लभ की प्रत्येक कृति लोक हितार्थ के लिए है।

आपने मानवी अस्तित्व में एक नए केन्द्र का स्पर्श किया और वह केन्द्र बिंदु था भगवत्सेवा। अतः आचार्य वल्लभ ने भवत्सेवा में नियामक तत्व स्नेह के आधार पर विशिष्ट सेवा क्रम अपना कर जीवों को एक नया आयाम दिया, जिसमें जीवंत जीवन की कला भरपूर एवं संपूर्ण रूप से विद्यमान रहती है। ऐसा आचार्य वल्लभ का प्रेमात्मक स्वरूप था।
 
उनकी पत्नी का नाम महालक्ष्मी था तथा उनके दो पुत्र थे गोपीनाथ और श्रीविट्ठलनाथ। रुद्र संप्रदाय के विल्वमंगलाचार्यजी द्वारा इन्हें अष्टादशाक्षर गोपालमंत्र की दीक्षा दी गई और त्रिदंड संन्यास की दीक्षा स्वामी नारायणेन्द्रतीर्थ से प्राप्त हुई। वल्लभाचार्य के 84 शिष्य थे जिनमें प्रमुख हैं सूरदास, कृष्णदास, कुंभनदास और परमानंद दास है।
 
वल्लभाचार्य के प्रसिद्ध ग्रंथ उत्तरमीमांसा, सुबोधिनी टीका और तत्वार्थदीप निबंध है। इसके अलावा भी उनके अनेक ग्रंथ हैं। उन्होंने 52 वर्ष की आयु में काशी के हनुमान घाट पर गंगा में प्रविष्ट होकर जल-समाधि ले ली। वेद, गीता, ब्रह्मसूत्र एवं समाधि भाषा को अपना प्रमाण मानते हुए भागवत धर्म का प्रचार किया।

आचार्य महाप्रभु वल्लभाचार्य के दिव्य संदेश किसी जाति विशेष या धर्म विशेष के लिए न होकर प्राणीमात्र के कल्याण के लिए हैं। प्रतिवर्ष वैशाख कृष्ण एकादशी को जगद्गुरु श्रीमद्‍ वल्लभाचार्यजी का प्राकट्य उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। 

 
 
Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Mangal gochar: मंगल का धनु में गोचर, 5 राशियों के लिए शुरू होगा शानदार समय

Dhanu sankranti 2025: धनु संक्रांति कब है, क्या है इसका महत्व, पूजा विधि और कथा?

Guru gochar 2025: बृस्पपति का मिथुन में प्रवेश, 12 राशियों का दो लाइन में भविष्यफल

Weekly Numerology Horoscope: साप्ताहिक अंक राशिफल: 08 से 14 दिसंबर 2025 तक, क्या कहते हैं आपके मूलांक के सितारे?

2026 Horoscope: 100 साल बाद मकर राशि में महासंयोग: 2026 में 5 राशियां होंगी मालामाल

सभी देखें

धर्म संसार

वर्ष 2026 में होंगे भारत में ये 5 बड़े काम, जिनकी हो गई है अभी से शुरुआत

Saphala Ekadashi 2025 Date: सफला एकादशी व्रत कैसे रखें और कब होगा इसका पारण?

Kharmas 2025: खरमास क्यों रहता है क्या करना चाहिए इस माह में?

माघ मेला 2026: संगम तट पर बस भव्य तंबुओं का शहर, जानिए स्नान, कल्पवास का महत्व

Budh Gochar: बुध का वृ‍श्चिक राशि में गोचर, 5 राशियों को रहना होगा संभलकर

अगला लेख